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मुगलकालीन लेखकों ने हल्दीघाटी युद्ध में एकपक्षीय चित्रण किया :- डॉ दिलबाग सिंह

Mughal writers made one sided portrayal in Haldighati war - Dr. Dilbagh Singh

महाराणा प्रताप: पुराण पुरुष अंतरराष्ट्रीय ऑनलाइन संगोष्ठी में बीकानेर की डॉ. मेघना रहीं सह–संयोजक

बीकानेर, (समाचार सेवा)। मुगलकालीन लेखकों ने हल्दीघाटी युद्ध में एकपक्षीय चित्रण किया :- डॉ दिलबाग सिंह, जेएनयू दिल्ली के इतिहासकार प्रो दिलबाग सिंह ने महाराणा प्रताप और अकबर के बीच हुए हल्दीघाटी युद्ध में मुगलों की विजय को पक्षपात से प्रेरित बताते हुए इसे मुगलकालीन लेखकों का एकपक्षिय चित्रण बताया है। प्रो. दिलबाग गुरुवार को मेवाड़ क्षत्रिय महासभा मेवाड़ एवम् महाराज शत्रु दमनसिंह शिवरती विद्यापीठ संस्थान  उदयपुर के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित ऑनलाइन अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी  महाराणा प्रताप: पुराण पुरुष को संबोधित कर रहे थे।

उन्‍होंने कहा कि मेवाड़ के ऐतिहासिक ग्रंथो अमरकाव्य आदि साक्ष्यों के आधार पर प्रताप की निश्चय ही विजय हुई थी। इस संगोष्‍ठी में बीकानेर की इतिहासकार डॉ. मेघना शर्मा ने सह संयोजक की भूमिका को निर्वाह किया। मेवाड़ क्षत्रिय महासभा के अध्यक्ष शक्तिसिंह कारोही ने स्वागत उद्बोधन दिया। इतिहासकार डॉ जी एल मेनारिया ने प्रताप पुराण पुरुष पर विषय प्रवर्तन किया।

पद्मश्री महाराव रघुवीर सिंह सिरोही ने कहा कि महाराणा प्रताप ने विदेशी दासता से मुक्ति पाने के लिए मुगल सत्ता के विरुद्ध पच्चीस वर्षो तक सम्राट अकबर से टककर ली। आयोजन सचिव डॉ अजात शत्रु सिंह शिवरती ने बताया कि गोष्ठी मे कार्यक्रम की सह संयोजिका बीकानेर के महाराजा गंगासिंह विश्वविद्यालय एमजीएसयू की इतिहासकार डॉ. मेघना शर्मा ने प्रताप पर लब्ध प्रतिष्ठित साहित्यकारों की पंक्तियों के उद्घोष के साथ अपनी भावनाएं अभिव्यक्त करते हुए संगोष्ठी को संचालित किया।

ऑस्ट्रेलिया से डॉ. रूपाबा जडेजा ने कहा कि महाराणा प्रताप राष्ट्र धर्म का जीवन पर्यन्त पालन किया। नॉर्वे के टॉर गुलब्रेडसेन ने हल्दीघाटी को भारत की थरमोपल्ली कहा। शिक्षाविद प्रो दरियाव सिंह चूंडावत ने कहा कि महाराणा प्रताप क्षत्रिय जाती के गौरव एवम् गरिमा का निर्वाह करते रहे है। जयपुर से डॉ करन मीणा ने कहा कि हल्दीघाटी दिवेर के युद्ध में सभी जातियों ,धर्म यहां तक की जनजाति की अहम भूमिका रही है।

उत्तर प्रदेश की डॉ प्रतिमा शुक्ला ने बताया कि चित्तौड़ वीर भूमि  तथा हल्दीघाटी तीर्थस्थल है, जहां की मिटटी चंदन है। काठियावाड़ डॉ प्रधुमन खाचर ने कहा कि प्रताप का घोड़ा चेतक ओर नाटक जी जूनागढ़ (काठियावाड़) चोटिला के नस्ल के थे। हम गुजरात वासियो को इससे गर्व है। आंध्रप्रदेश एलोरू से डॉ इस्थर कल्याणी, हिमाचल प्रदेश से डॉ शारदा देवी, मीडिया प्रभारी रणवीर सिंह जोलवास ने भी विचार रखे।

ओडिशा के डॉ हेमंत परिदा ने बताया कि प्रताप के चरित्र मूल्य ओर उसके उज्वल कार्यों का गुजराती, मराठी, बंगला,कन्नड़, तेलगु, राजस्थानी, उर्दू इत्यादि भाषाओं मै मिलता है। देवी अहिल्या विश्वविद्यालय  इंदौर के प्रोफेसर जेसी उपाध्याय ने बताया कि महाराणा प्रताप के चितौड़ छोड़ने से गाडियां लोहार भी चित्तौड़ छोड़कर भारत के अन्य भागों में चले गए। संगोष्ठी के संयोजक व मेवाड़ क्षत्रिय महासभा के अध्यक्ष यादवेंद्र सिंह रलावता ने धन्यवाद ज्ञापित किया।

संगोष्ठी में इतिहासकार सलिला मोहंती, डॉ अनुराधा पत्रे ( ओडिशा), इंदौर राजपूत क्लब से रघुराज चौहान, लेफ्टिनेंट जनरल वीके सिंह, डॉ संभवी जाधव महाराष्ट्र, डॉ सुधीर कुमार  गोरखपुर, प्रो अरविंद कुमार उत्तराखंड, डॉ धनंजय सिंह अमेठी, डॉ के एस राठौड़ उत्तरप्रदेश, प्रीतम सिंह चूंडावत हरिद्वार, डॉ हरीश राव गुजरात, डॉ जीशान अहमद मुंबई, डॉ नमामि शंकर आचार्य बीकानेर, डॉ गोपाल व्यास, डॉ देव कोठारी, डॉ ललित पाण्डेय, डॉ राजेंद्र नाथ पुरोहित, इंदर सिंह राणावत, मुकेश मेनारिया, परेश्वर साहू ओडिशा भी शामिल रहे।

 

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