राज्यपाल द्वारा विधानसभा सत्र बुलाने के लिए विधिक राय लेने का कथन पूर्णतया असंवैधानिक : मानिकचंद सुराना

Manikchand Surana
Manikchand Surana

बीकानेर, (samacharseva.in)। राज्यपाल द्वारा विधानसभा सत्र बुलाने के लिए विधिक राय लेने का कथन पूर्णतया असंवैधानिक : मानिकचंद सुराना, लूणकरनसर (बीकानेर) के पूर्व विधायक तथा राज्य के पूर्व वित्त मंत्री मानिक चन्द सुराना ने राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्र के विधानसभा सत्र बुलान के लिये विधिक राय के कथन को पूर्णतया असंवैधानिक बताया है।

सुराना ने रविवार को जारी अपने बयान में कहा कि राजस्थान में गहलोत-पायलट विवाद का पटाक्षेप हो इसके लिये राजस्थान विधानसभा का सत्र आहूत किया जाना चाहिये। इससे दूध का दूध और पानी का पानी हो जायेगा और संवैधानिक सभी प्रश्न समाप्त हो जायेंगे। पूर्व मंत्री सुराना ने अपने बयान में कहा कि राज्य के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपने समर्थक विधायकों को लेकर राजभवन में राज्यपाल से मिल चुके हैं।

विधायकों ने राज्यपाल के सामने अपनी परेड भी कर ली है। सभी विधायकों ने भी राज्यपाल से विधानसभा का सत्र तत्काल बुलाने का आग्रह किया है। ऐसे में राज्यपाल द्वारा राजस्थान मंत्री मंडल व विधायकों के आग्रह का तुरंत स्वीकर नहीं कर विधिक राय लेने की बात करना सही नहीं है। पूर्व मंत्री सुराना के अनुसार राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्र ही पहले राज्यपाल है जिन्होंने सत्र बुलाने के लिए विधिक राय लेने की बात कही है।

उन्होंने कहा कि राजस्थान ही नहीं देश में संविधान निर्माण के 70 सालों में ऐसा कभी नहीं हुआ। यही कारण रहा कि कांग्रेस के सभी 88 विधायकों, 10 निर्दलीय विधायकों व अन्य पार्टियों बीटीपी, सीपीएम व राएलडी के चार विधायकों को राज्यपाल भवन में अनिश्चितकालीन धरना देना पड़ा। पूर्व मंत्री सुराना ने कहा कि भाजपा को सन 1993 का इतिहास नहीं भूलना चाहिये,

जब भाजपा के 95 विधायक थे और करीब 10-12 निर्दलीय विधायकों ने समर्थन के पत्र दिये थे। सुराने कहा, मैं स्वयं उस सारे घटनाक्रम का साक्षी हूँ, जबकि तत्कालीन राज्यपाल के ना नुकुर ने भैरोंसिंह शेखावत को राज भवन पर धरना करना पड़ा था।

सुराना ने बयान में बताया कि कर्नाटक विधानसभा विवाद में उच्चतम न्यायालय ने सरकार का बहुमत सिद्ध करने के लिए विधानसभा बुलाने को कहा। मध्यप्रदेश के विवाद में भी यही हुआ। सुराना के अनुसार इन संवैधानिक उदाहरणों को मध्यनजर रखते हुए राज्यपाल का संवैधानिक दायित्व है कि वे बहुमत राजस्थान मंत्रीमण्डल व विधायकगणों के निवेदन पर तत्काल सदन को आहूत कर राजस्थान की जनता के समक्ष उत्पन्न हुए विवाद में दूध का दूध और पानी का पानी हो सके।

सुराना के अनुसार राजस्थान में कोरोना को राज्यपाल होवा नहीं बनाये। उन्होंने कहा कि राज्यपाल को स्पष्ट होना चाहिए कि कोरोना के कारण सविंधान का उलंघन और अतिक्रमण नहीं किया जा सकता।