उर्मूल ट्रस्‍ट के अरविन्‍द ओझा का निधन

Arvinda Ojha dies, Bad news in the morning
Arvinda Ojha dies, Bad news in the morning

श्री ओम थानवी की फेसबुक वॉल से

बीकानेर, (samacharseva.in) उर्मूल ट्रस्‍ट के अरविन्‍द ओझा का निधन, सुबह-सुबह बुरी ख़बर, कोरोना ने मेरे सबसे अज़ीज़ दोस्तों में एक अरविंद ओझा को भी छीन लिया।  प्यार में मैं और अन्य करीबी मित्र उन्हें गुरुजी कहते थे। बीकानेर में संजय घोष और अरविंद ओझा ने उर्मूल न्यास के माध्यम से सामाजिक कार्य में कई नवाचार किए। किसानों-ग्वालों को संगठित करने के साथ अकाल में गड्ढे खोदने को मजबूर हो गए दलित बुनकरों को वे वापस कला की दुनिया में लिवा लाए।

उनकी संस्थाएँ खड़ी कीं और उन्हीं को सौंप दीं। अहमदाबाद से विशेषज्ञ बुलाकर उन ग्रामीण कलाकारों को रंग और डिज़ाइन के अधुनातन परिवेश से भी परिचित करवाया।  संजय बाद में असम के माजुली द्वीप में सामाजिक कार्य की मुहिम चलाने चले गए, और अल्फ़ा के हाथों अकारण मारे गए। अरविंद अकेले रह गए। पर उन्होंने काम बख़ूबी संभाल लिया।  यह अस्सी के दशक की बात है।

तब मैं भी वापस बीकानेर आ गया था। तभी उनका काम नज़दीक से देखा। उनके साथ अक्सर लूणकरणसर जाता था, जहाँ संजय ने न्यास का एक छोटा मगर सुंदर परिसर स्थापित किया था। अभी कोरोना की मार से मिलकर जूझने वाली उनकी दो बेटियाँ और बेटा तब छोटे थे। हमारे बच्चे भी। सबसे छोटी चीनू तो तब हरदम सुशीलाजी की गोद में रहती थी। मैंने अनिल अग्रवाल और सुनीता नारायण के कहने पर राजस्थान के पारंपरिक जल-संचय स्रोतों का जो अध्ययन किया, उसमें अरविंदजी ने काफ़ी मदद की थी।

अनिलजी और सुनीता बीकानेर आए भी। अरविंदजी के साथ मैं गाँव-गाँव ढाणी -ढाणी उन्हीं के वाहनों में भटका किया।  उन्होंने — और सुशीलाजी ने भी — बाद में प्रौढ़ शिक्षा के क्षेत्र में बहुत दिलचस्पी ली। राजस्थान प्रौढ़ शिक्षण समिति के वे सचिव थे।  अभी बीकानेर में उनकी तबीयत बिगड़ी। पीबीएम में भरती करवाया। फिर जयपुर फ़ोर्टिस में लाए। लेकिन तब तक शायद देर हो चुकी थी। उन्होंने अस्पताल में भी शनिवार 7 नवंबर की सुबह तक मौत से हँसते-हँसते लम्बा संघर्ष किया। लेकिन इस बीमारी का, हम जानते हैं, क्या भरोसा।

बहुत बुरा हुआ।

वरिष्‍ठ संपादक व पत्रकार श्री ओम थानवी जयपुर स्थित हरिदेव जोशी पत्रकारिता और जनसंचार विश्वविद्यालय कुलपति हैं।