इसलिये याद आते हैं कवि लालचंद भावुक
बीकानेर, (समाचार सेवा)। इसलिये याद आते हैं लालचंद भावुक। शाइर ज़ाकिर अदीब ने कहा कि कवि स्व. लालचंद भावुक ने अपने समय की सच्चाई को अपनी कविताओं में ढाला। उन्होंने सामाजिक राजनितिक खराबियों को अपनी रचनाओं में निशाना बनाया। इसीलिए उनका लिखा काव्य आज भी प्रासंगिक है।
जनाब अदीब रविवार को होटल हैरिटेज के विनायक सभागार में पर्यटन लेखक संघ महफिले अदब के साप्ताहिक अदबी कार्यक्रम की 221 वीं कड़ी की अध्यक्षता करते हुए दिवगंत कवि लालचन्द भावुक को उनकी रचनाओं पर आयोजित गोष्ठी को संबोधित कर रहे थे। मुख्य अतिथि कवि मोहनलाल जांगीड़ ने कहा कि भावुक छंदमुक्त कविताएँ लिखते थे फिर भी उनकी कविताओं में गजब का प्रवाह है, सरसता है।उनकी कविताएँ असरदार हैं।
आयोजक संस्था के डॉ ज़िया उल हसन क़ादरी ने कहा कि भावुक गरीबों, मज़दूरों, शोषितों और किसानों की आवाज़ बन कर उभरे। वह समानता और न्याय के पक्षधर थे। भावुक अपनी बात बेबाकी और निडरता से कहते थे। साफगोई उनकी पहचान थी। इस अवसर पर मौजूद कवियों ने भावुक का चुनिंदा कलाम पढ़ उनकी याद ताज़ा की। शुरू में रहमान बादशाह ने भावुक की कविता तरन्नुम के साथ पेश कर के माहोल को संगीतमय कर दिया-
अभी तक भाषाएँ लड़ती हैं, जातिगत परिवेश, वाह रे मेरे देश,वाह रे मेरे देश। जुगल किशोर पुरोहित ने भावुक को यूं याद किया- लालचन्द जी कवि ओज के, शोषण के खिलाफ लड़ते थे नित नई लिख कर वो रचनाएँ हम को जागृत वो करते थे जगदीश दान बारहठ ने “शब्द”,शिवप्रकाश शर्मा ने “कल जो उलझा है,” देवेन्द्र कोचर ने “हाँ क़ुबूले जंग है”,डॉ ब्रह्मराम चौधरी ने”आज़ादी खिलौना नहीं” और युवा कवि श्रीराम उपाध्याय ने “एक गीत”कविता सुना कर भावुक के काव्य की बानगी पेश की।
प्रारम्भ में असद अली असद ने भावुक के काव्य संसार पर रौशनी डाली।सञ्चालन डॉ ज़िया उल हसन क़ादरी ने किया। हेमचन्द बांठिया ने आभार माना।
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