रेतीले इलाकों में सब्जी उत्पादन के लिये गोबर व अन्य खाद से बेहतर है ऊनी कचरा : कुलपति
बीकानेर, (समाचार सेवा)। रेतीले इलाकों में सब्जी उत्पादन के लिये गोबर व अन्य खाद से बेहतर है ऊनी कचरा : कुलपति, स्वामी केशवानंद राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर आर.पी. सिंह ने कहा कि रेतीले इलाकों में फसलों के उत्पादन के लिए उर्वरक के रूप में ऊनी अपशिष्ट/कचरा गोबर एवं अन्य खादों से बेहतर है।
उन्होंने बताया कि ऊनी कचरे के प्रयोग से फसल की उत्पादकता के साथ-साथ भूमि की भौतिक रासायनिक एवं जैविक गुणों में सुधार पाया गया है। प्रो. सिंह ने बीकानेर में बीछवाल स्थित कृषि अनुसधांन केन्द्र में ऊनी अपशिष्ट के उपयोग पर विगत 4 वर्षों से मे प्रयोग जारी है। निदेशक अनुसंधान डॉ. पी.एस. शेखावत एवं परियोजना प्रभारी डॉ एस आर यादव के अनुसार इसके बेहतर परिणाम भी आ रहे है। कुलपति प्रो. सिंह ने बताया कि रासायनिक उर्वरकों के अंधाधुंध व असंतुलित प्रयोग और जैविक खादों के कम उपयोग के कारण फसलों की उत्पादकता कम हो रही है। उन्होंने कहा कि शुष्क क्षेत्रों की अधिकांश मृदाओं का उर्वरता का स्तर काफी निम्न है।
संतुलित पादप पोषक तत्व प्रबंधन अति आवश्यक
इसलिए इन क्षेत्रों की फसलों की उत्पादकता बढ़ाने के लिए संतुलित पादप पोषक तत्व प्रबंधन अति आवश्यक है। कुलपति ने कहा कि मिट्टी की गुणवत्ता में गिरावट संसाधनों के अनुचित प्रबंधन के परिणामों में से एक है। पौधों के पोषक तत्वों के स्रोतों के रूप में उनकी क्षमता का पूरी तरह उपयोग नहीं किया जा रहा है।ऊनी कचरे के विभिन्न स्रोतों को संभावित संसाधनों के रूप में उपयोग करने पर जोर दिया जाना चाहिए और उन्हें डंप की गई सामग्री के रूप में नहीं माना जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि अधिकांश मामलों में अच्छी तरह से विघटित कार्बनिक कचरे का उपयोग नहीं किया जाता है। जिसके कई दुष्परिणाम सामने आ रहे है।
बीकानेर जिला देश में सबसे अधिक भेड़ और ऊन उत्पादक क्षेत्र
कुलपति ने कहा कि राजस्थान विशेष रूप से बीकानेर जिला देश में सबसे अधिक भेड़ और ऊन उत्पादक क्षेत्र है। बीकानेर में लगभग 163 वूलन मिल हैं और प्रति दिन 1.5 लाख किलोग्राम कालीन वूलेन यार्न का निर्माण होता है ऊन की कुल मात्रा का लगभग 4-5 प्रतिशत ऊनी कचरा निकलता है।ऊन के कचरे के महीन बालों से सांस लेने में तकलीफ होती है, गढ्ढ़ो में ऊनी अपशिष्ट को भरना एक वांछनीय विकल्प नहीं है अत: ऊन को पुन: प्रयोज्य में परिवर्तित करना एक बेहतर अपशिष्ट प्रबंधन विकल्प हो सकता है।
भेड़ के ऊन के अपशिष्ट ज्यादातर लैंडफिल (गढ्ढ़ा) में जमा किया जाता है और इसमें पोषक तत्वों का उपयोग नहीं किया जा सकता है।ऊन के अपशिष्ट को उर्वरक के रूप में उपयोग करने से पर्यावरण सुधार का एक बेहतर विकल्प हो सकता है।जैविक नत्रजन (2.5 प्रतिशत से अधिक), गन्धक (2.2 प्रतिशत) और कार्बन (18 प्रतिशत) पाया जाता है जो कि गोबर एवं अन्य खादों से बेहतर है।इसके प्रयोग से फसल की उत्पादकता के साथ-साथ भूमि की भौतिक रासायनिक एवं जैविक गुणों में सुधार पाया गया है।
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