नहीं सुनी मन की बात, यहां पढ़ो आज क्या कहा पीएम ने
नहीं सुनी मन की बात, यहां पढो आज क्या कहा पीएम ने
समाचार सेवा
नमस्कार ! ‘मन की बात’ के माध्यम से फिर एक बार आप सबसे रूबरू होने का अवसर मिला है। आप लोगों को भलीभांति याद होगा नौ-सेना की 6 महिला कमांडरों, ये एक दल पिछले कई महीनों से समुद्र की यात्रा पर था। ‘नाविका सागर परिक्रमा’ – जी मैं उनके विषय में कुछ बात करना चाहता हूँ।
भारत की इन 6 बेटियों ने, उनकी इस team ने Two Hundred And Fifty Four Days- 250 से भी ज़्यादा दिनसमुद्र के माध्यम से INSV तारिणी में पूरी दुनिया की सैर कर 21 मई को भारत वापस लौटी हैं और पूरे देश ने उनका काफी गर्मजोशी से स्वागत किया। उन्होंने विभिन्न महासागरों और कई समुद्रों में यात्रा करते हुए लगभग बाईस हज़ार nautical miles की दूरी तय की।
यह विश्व में अपने आप में एक पहली घटना थी। गत बुधवार को मुझे इन सभी बेटियों से मिलने का, उनके अनुभव सुनने का अवसर मिला। मैं एक बार फिर इन बेटियों कोउनके adventure को, Navy की प्रतिष्ठा को बढ़ाने के लिए, भारत का मान-सम्मान बढ़ाने के लिये और विशेषकर दुनिया को भी लगे कि भारत की बेटियाँ कम नहीं हैं – ये सन्देश पहुँचाने के लिए बहुत-बहुत बधाई देता हूँ।
Sense of adventure कौन नहीं जानता है। अगर हम मानव जाति की विकास यात्रा देखें तो किसी-न-किसी adventure की कोख में ही प्रगति पैदा हुई है। विकास adventure की गोद में ही तो जन्म लेता है। कुछ कर गुजरने का इरादा, कुछ लीक से हटकर के करने का मायना, कुछ extra ordinary करने की बात, मैं भी कुछ कर सकता हूँ – ये भाव,करने वाले भले कम हों, लेकिन युगों तक, कोटि-कोटि लोगों को प्रेरणा मिलती रहती है।
पिछले दिनों आपने देखा होगा Mount Everest पर चढ़ने वालों के विषय में कई नयी-नयी बातें ध्यान में आयी हैं और सदियों से Everest मानव जाति को ललकारता रहा और बहादुर लोग उस चुनौती को स्वीकारते भी रहे हैं ।
16 मई को महाराष्ट्र के चंद्रपुर के एक आश्रम-स्कूल के 5 आदिवासी बच्चों ने tribal students – मनीषा धुर्वे, प्रमेश आले, उमाकान्त मडवी, कविदास कातमोड़े, विकास सोयाम – इन हमारे आदिवासी बच्चों के एक दल ने दुनिया की सबसे ऊँची चोटी पर चढ़ाई की। आश्रम-स्कूल के इन छात्रों ने अगस्त 2017 में training शुरू की थी।
वर्धा, हैदराबाद, दार्जिलिंग, लेह, लद्दाख – इनकी training हुई। इन युवाओं को ‘मिशन शौर्य’ के तहत चुना गया थाऔर नाम के ही अनुरूप Everest फतह कर उन्होंने पूरे देश को गौरवान्वित किया है। मैं चंद्रपुर के स्कूल के लोगों को, इन मेरे नन्हे-मुन्हे साथियों को, ह्रदय से बहुत-बहुत बधाई देता हूँ। हाल ही में 16 वर्षीय शिवांगी पाठक, नेपाल की ओर से Everest फ़तह करने वाली सबसे कम उम्र की भारतीय महिला बनी। बेटी शिवांगी को बहुत-बहुत बधाई।
अजीत बजाज और उनकी बेटी दीयाEverest की चढ़ाई करने वाली पहली भारतीय पिता-पुत्री की जोड़ी बन गयी। ऐसा ही नहीं कि केवल युवा ही Everest की चढ़ाई कर रहे हैं। संगीता बहल ने 19 मई को Everest की चढ़ाई की और संगीता बहल की आयु 50 से भी अधिक है। Everest पर चढ़ाई करने वाले कुछ ऐसे भी हैं, जिन्होंने दिखाया कि उनके पास न केवल skill है बल्कि वे sensitive भी हैं।
अभी पिछले दिनों ‘स्वच्छ गंगा अभियान’ के तहत BSF के एक group ने Everest की चढ़ाई की,पर पूरी team Everest से ढ़ेर सारा कूड़ा अपने साथ नीचे उतार कर लायी। यह कार्य प्रशंसनीय तो है ही, साथ-ही-साथ यह स्वच्छता के प्रति, पर्यावरण के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को भी दर्शाता है। वर्षों से लोग Everest की चढ़ाई करते रहे हैं और ऐसे कई लोग हैं, जिन्होंने सफलतापूर्वक इसे पूरा किया है। मैं इन सभी साहसी वीरों को, ख़ासकर के बेटियों को ह्रदय से बहुत-बहुत बधाई देता हूँ।
मेरे प्यारे देशवासियो और ख़ासकर के मेरे नौजवान दोस्तो ! अभी दो महीने पहले जब मैंने fit India की बात की थी तो मैंने नहीं सोचा था कि इस पर इतना अच्छा response आएगा। इतनी भारी संख्या में हर क्षेत्र से लोग इसके support में आगे आएँगे। जब में fit India की बात करता हूँ तो मैं मानता हूँ कि जितना हम खेलेंगे, उतना ही देश खेलेगा। social media पर लोग Fitness Challenge की videos share कर रहे हैं, उसमें एक-दूसरे को tag कर उन्हें challenge कर रहे हैं।
Fit India के इस अभियान से आज हर कोई जुड़ रहा है। चाहे फिल्म से जुड़े लोग हों, sports से जुड़े लोग हों या देश के आम-जन, सेना के जवान हों, स्कूल की टीचर हों, चारों तरफ़ से एक ही गूँज सुनाई दे रही है – ‘हम fit तो India fit’। मेरे लिए खुशी की बात है कि मुझे भी भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान विराट कोहली जी ने challenge किया है और मैंने भी उनके challenge को स्वीकार किया है। मैं मानता हूँ कि ये बहुत अच्छी चीज है और इस तरह का challenge हमें fit रखने और दूसरों को भी fit रहने के लिए प्रोत्साहित करेगा ।
मेरे प्यारे देशवासियो!
‘मन की बात’ में कई बार खेल के संबंध में, खिलाडियों के संबंध में, कुछ-न-कुछ बातें आपने मेरे से सुनी ही हैं और पिछली बार तो Commonwealth Games के हमारे नायक, अपनी मन की बातें, इस कार्यक्रम के माध्यम से हमें बता रहे थे –
“नमस्कार सर ! मैं छवि यादव नोएडा से बोल रही हूँ, मैं आपकी ‘मन की बात’ की regular listener हूँ और आज आपसे अपनी मन की बात करना चाहती हूँ. आजकल गर्मी की छुट्टियाँ शुरू हो गयी हैं और एक माँ होने के नाते मैं देख रही हूँ कि बच्चे ज़्यादातर समय इंटरनेट games खेलते हुए बिताते हैं, जब कि जब हम छोटे थे तो हम Traditional Games जो कि ज़्यादातर Outdoor gamesहोते थे, वो खेलते थे, जैसा कि एक game था जिसमें 7 पत्थर के टुकड़े एक के ऊपर एक रखके उसे ball से मारते थे और ऊँच-नीच होता था, खो-खो, ये सब gameजो आजकल खो से गए हैं।
मेरा ये निवेदन है कि आप आजकल की generation को कुछ traditional games के बारे में बताएं, जिससे उनकी भी रूचि इस तरफ़ बढ़े, धन्यवाद । ”
छवि यादव जी, आपके phone call के लिए आपका बहुत धन्यवाद। ये बात सही है कि जो खेल कभी गली-गली, हर बच्चे के जीवन का हिस्सा होते थे, वे आज कम होते जा रहे हैं। ये खेल ख़ासकर गर्मी की छुट्टियों का विशेष हिस्सा होते थे।
कभी भरी दोपहरी में, तो कभी रात में खाने के बाद बिना किसी चिंता के, बिल्कुल बेफिक्र होकर के बच्चे घंटो-घंटो तक खेला करते थे और कुछ खेल तो ऐसे भी हैं,जो पूरा परिवार साथ में खेला करता था – पिट्ठू हो या कंचे हो, खो-खो हो,लट्टू हो या गिल्ली-डंडा हो, न जाने…..अनगिनत खेल कश्मीर से कन्याकुमारी, कच्छ से कामरूप तक हर किसी के बचपन का हिस्सा हुआ करते थे।
हाँ, यह हो सकता है कि अलग-अलग जगह वो अलग-अलग नामों से जाने जाते थे, जैसे अब पिट्ठू ही यह खेल कई नामों से जाना जाता है। कोई उसे लागोरी, सातोलिया, सात पत्थर, डिकोरी, सतोदिया न जाने कितने नाम हैं एक ही खेल के। परंपरागत खेलों में दोनों तरह के खेल हैं। out door भी हैं, indoor भी हैं। हमारे देश कीविविधताके पीछे छिपी एकता इन खेलों में भी देखी जा सकती है।
एक ही खेल अलग-अलग जगह, अलग-अलग नामों से जाना जाता है। मैं गुजरात से हूँ मुझे पता है गुजरात में एक खेल है, जिसे चोमल-इस्तो कहते हैं। ये कोड़ियों या इमली के बीज या dice के साथ और 8×8 के square board के साथ खेला जाता है। यह खेल लगभग हर राज्य में खेला जाता था।
कर्नाटक में इसे चौकाबारा कहते थे, मध्यप्रदेश में अत्तू। केरल में पकीड़ाकाली तो महाराष्ट्र में चम्पल, तो तमिलनाडु में दायाम और थायाम, तो कहीं राजस्थान में चंगापो न जाने कितने नाम थे लेकिन खेलने के बाद पता चलता है, हर राज्य वाले को भाषा भले न जानता हो – अरे वाह! ये खेल तो हम भी करते थे।
हम में से कौन होगा, जिसने बचपन में गिल्ली-डंडा न खेला हो। गिल्ली-डंडा तो गाँव से लेकर शहरों तक में खेले जाने वाला खेल है। देश के अलग-अलग भागों में इसे अलग-अलग नामों से जाना जाता है। आंध्रप्रदेश में इसे गोटिबिल्ला या कर्राबिल्ला के नाम से जानते हैं। उड़ीसा में उसे गुलिबाड़ी कहते हैं तो महाराष्ट्र में इसे वित्तिडालू कहते हैं। कुछ खेलों काअपना एक season होता है।
जैसे पतंग उड़ाने का भी एक season होता है। जब हर कोई पतंग उड़ाता है जब हम खेलते हैं, हम में जो unique qualities होती हैं, हम उन्हें freely express कर पाते हैं। आपने देखा होगा कई बच्चे, जो शर्मीले स्वभाव के होते हैं लेकिन खेलते समय बहुत ही चंचल हो जाते हैं। ख़ुद को express करते हैं, बड़े जो गंभीर से दिखते हैं, खेलते समय उनमें जो एक बच्चा छिपा होता है, वो बाहर आता है।
पारंपरिक खेल कुछ इस तरह से बने हैं कि शारीरिक क्षमता के साथ-साथ वो हमारी logical thinking, एकाग्रता, सजगता, स्फूर्ति को भी बढ़ावा देते हैं। और खेल सिर्फ खेल नहीं होते हैं, वह जीवन के मूल्यों को सिखाते हैं। लक्ष्य तय करना, दृढ़ता कैसे हासिल करना!, team spirit कैसे पैदा होना, परस्पर सहयोग कैसे करना।
पिछले दिनों मैं देख रहा था कि Business Management से जुड़े हुए training programmes में भी overall personality development और interpersonal skills के improvement के लिए भी हमारे जो परंपरागत खेल थे, उसका आजकल उपयोग हो रहा है और बड़ी आसानी से overall development में हमारे खेल काम आ रहे हैं और फिर इन खेलों को खेलने की कोई उम्र तो है ही नहीं।
बच्चों से ले करके दादा-दादी, नाना-नानी जब सब खेलते हैं तो यह जो कहते हैं न generation gap,अरे वो भी छू-मंतर हो जाता है। साथ-ही-साथ हम अपनी संस्कृति और परम्पराओं को भी जानते हैं। कई खेल हमें समाज, पर्यावरण आदि के बारे में भी जागरूक करते हैं। कभी-कभी चिंता होती है कि कहीं हमारे यह खेल खो न जाएँ और वह सिर्फ खेल ही नहीं खो जाएगा, कहीं बचपन ही खो जाएगा और फिर उस कविताओं को हम सुनते रहेंगे –
यह दौलत भी ले लो
यह शौहरत भी ले लो
भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी
मगर मुझको लौटा दो बचपन का सावन
वो कागज की कश्ती, वो बारिश का पानी
यही गीत हम सुनते रह जाएँगे और इसीलिए यह पारंपरिक खेल, इसको खोना नहीं हैआज आवश्यकता है कि स्कूल, मौहल्ले,युवा-मंडल आगे आकर इन खेलों को बढ़ावा दें। crowd sourcing के द्वारा हम अपने पारंपरिक खेलों का एक बहुत बड़ा archive बना सकते हैं। इन खेलों के videos बनाए जा सकते हैं, जिनमें खेलों के नियम, खेलने के तरीके के बारे में दिखाया जा सकता है। Animation फ़िल्में भी बनाई जा सकती हैं ताकि हमारी जो नई पीढ़ी है, जिनके लिए यह गलियों में खेले जाने वाले खेल कभी-कभी अज़ूबा होता है – वह देखेंगे, खेलेंगे, खिलेंगे।
मेरे प्यारे देशवासियो !
आने वाले 5 जून को हमारा देश भारत आधिकारिक तौर पर World Environment Day Celebration विश्व पर्यावरण दिवस को भारत host करेगा। यह भारत के लिए एक बहुत महत्वपूर्ण उपलब्धि है और यह जलवायु परिवर्तन को कम करने की दिशा में विश्व में भारत के बढ़ते नेतृत्व को भी स्वीकृति मिल रही है – इसका परिचायक है। इस बार की theme है ‘Beat Plastic Pollution’।
मेरी आप सभी से अपील है, इस theme के भाव को, इसके महत्व को समझते हुए हम सब यह सुनिश्चित करें कि हमpolythene, low grade plastic का उपयोग न करें और Plastic Pollution का जो एक negative impact हमारी प्रकृति पर, wild life पर और हमारे स्वास्थ्य पर पड़ रहा है, उसे कम करने का प्रयास करें।
World Environment Day की website wed-india2018 पर जाएँ और वहाँ ढ़ेर सारे सुझाव बड़े ही रोचक ढ़ंग से दिए गए हैं – देखें, जानें और उन्हें अपने रोजमर्रा के जीवन में उतारने का प्रयास करें। जब भयंकर गर्मी होती है, बाढ़ होती है। बारिश थमती नहीं है। असहनीय ठंड पड़ जाती है तो हर कोई expert बन करके global warming, climate change इसकी बातें करता है लेकिन क्या बातें करने से बात बनती है क्या? प्रकृति के प्रति संवेदनशील होना, प्रकृति की रक्षा करना, यह हमारा सहज स्वभाव होना चाहिए, हमारे संस्कारों में होना चाहिए।
पिछले कुछ हफ़्तों में हम सभी ने देखा कि देश के अलग-अलग क्षेत्रों में धूल-आँधी चली, तेज़ हवाओं के साथ-साथ भारी वर्षा भी हुई, जो कि unseasonal है। जान-हानि भी हुई, माल-हानि भी हुई। यह सारी चीज़ें मूलतः weather pattern में जो बदलाव है, उसी का परिणाम है हमारी संस्कृति, हमारी परंपरा ने हमें प्रकृति के साथ संघर्ष करना नहीं सिखाया है। हमें प्रकृति के साथ सदभाव से रहना है, प्रकृति के साथ जुड़ करके रहना है। महात्मा गाँधी ने तो जीवन भर हर कदम इस बात की वकालत की थी। जब आज भारत climate justice की बात करता है।
जब भारत ने Cop21 और Paris समझौते में प्रमुख भूमिका निभाई। जब हमनें International Solar Alliance के माध्यम से पूरी दुनिया को एकजुट किया तो इन सबके मूल में महात्मा गाँधी के उस सपने को पूरा करने का एक भाव था। इस पर्यावरण दिवस पर हम सब इस बारे में सोचें कि हम अपने planet को स्वच्छ और हरित बनाने के लिए क्या कर सकते हैं? किस तरह इस दिशा में आगे बढ़ सकते हैं? क्या innovative कर सकते हैं? बारिश का मौसम आने वाला है,हम इस बार record वृक्षारोपण का लक्ष्य ले सकते हैं और केवल वृक्ष लगाना ही नहीं बल्कि उसके बड़े होने तक उसके रख-रखाव की व्यवस्था करना।
मेरे प्यारे देशवासियो और विशेषकर के मेरे नौजवान साथियो !
आप 21 जून को बराबर अब याद रखते हैं, आप ही नहीं, हम ही नहीं सारी दुनिया 21 जून को याद रखती है। पूरे विश्व के लिए 21 जून अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मनाया जाता है और ये सर्व-स्वीकृत हो चुका है और लोग महीनों पहले तैयारियाँ शुरू कर देते हैं।
इन दिनों ख़बर मिल रही है, सारी दुनिया में 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाने की भरसक तैयारियाँ चल रही हैं। Yoga For Unity और harmonious society का ये वो सन्देश है, जो विश्व ने पिछले कुछ वर्षों से बार-बार अनुभव किया है। संस्कृत के महान कवि भर्तृहरि ने सदियों पहले अपने शतकत्रयम् में लिखा था –
धैर्यं यस्य पिता क्षमा च जननी शान्तिश्चिरं गेहिनी
सत्यं सूनुरयं दया च भगिनी भ्राता मनः संयमः।
शय्या भूमितलं दिशोSपि वसनं ज्ञानामृतं भोजनं
एते यस्य कुटिम्बिनः वद सखे कस्माद् भयं योगिनः।।
सदियों पहले ये कही गई बात का सीधा-सीधा मतलब है कि नियमित योगा अभ्यास करने पर कुछ अच्छे गुण सगे-सम्बन्धियों और मित्रों की तरह हो जाते हैं। योग करने से साहस पैदा होता है जो सदा ही पिता की तरह हमारी रक्षा करता है। क्षमा का भाव उत्पन्न होता है जैसा माँ का अपने बच्चों के लिए होता है और मानसिक शांति हमारी स्थायी मित्र बन जाती है।
भर्तृहरि ने कहा है कि नियमित योग करने से सत्य हमारी संतान, दया हमारी बहन, आत्मसंयम हमारा भाई, स्वयं धरती हमारा बिस्तर और ज्ञान हमारी भूख मिटाने वाला बन जाता है। जब इतने सारे गुण किसी के साथी बन जाएँ तो योगी सभी प्रकार के भय पर विजय प्राप्त कर लेता है। एक बार फिर मैं सभी देशवासियों से अपील करता हूँ कि वे योग की अपनी विरासत को आगे बढ़ायें और एक स्वस्थ, खुशहाल और सद्भावपूर्ण राष्ट्र का निर्माण करें।
मेरे प्यारे देशवासियो !
आज 27 मई है। भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु जी की पुण्यतिथि है। मैं पंडित जी को प्रणाम करता हूँ। इस मई महीने की याद एक और बात से भी जुड़ी है और वो है वीर सावरकर। 1857 में ये मई का ही महीना था, जब भारतवासियों ने अंग्रेजों को अपनी ताकत दिखाई थी।
देश के कई हिस्सों में हमारे जवान और किसान अपनी बहादुरी दिखाते हुए अन्याय के विरोध में उठ खड़े हुए थे। दुःख की बात है कि हम बहुत लम्बे समय तक 1857 की घटनाओं को केवल विद्रोह या सिपाही विद्रोह कहते रहे। वास्तव में उस घटना को न केवल कम करके आँका गया बल्कि यह हमारे स्वाभिमान को धक्का पहुँचाने का भी एक प्रयास था। यह वीर सावरकर ही थे, जिन्होंने निर्भीक हो के लिखा कि 1857 में जो कुछ भी हुआ वो कोई विद्रोह नहीं था बल्कि आजादी की पहली लड़ाई थी।
सावरकर सहित लंदन के India House के वीरों ने इसकी 50वीं वर्षगांठ धूमधाम से मनाई। यह भी एक अद्भुत संयोग है कि जिस महीने में स्वतंत्रता का पहला स्वतंत्र संग्राम आरंभ हुआ, उसी महीने में वीर सावरकर जी का जन्म हुआ। सावरकर जी का व्यक्तित्व विशेषताओं से भरा था; शस्त्र और शास्त्र दोनों के उपासक थे।
आमतौर पर वीर सावरकर को उनकी बहादुरी और ब्रिटिशराज के खिलाफ़ उनके संघर्ष के लिए जानते हैं लेकिन इन सबके अलावा वे एक ओज़स्वी कवि और समाज सुधारक भी थे, जिन्होंने हमेशा सद्भावना और एकता पर बल दिया। सावरकर जी के बारे में एक अद्भुत वर्णन हमारे प्रिय आदरणीय अटल बिहारी वाजपेयी जी ने किया है।
अटल जी ने कहा था – सावरकर माने तेज़, सावरकर माने त्याग, सावरकर माने तप, सावरकर माने तत्व, सावरकर माने तर्क, सावरकर माने तारुण्य, सावरकर माने तीर, सावरकर माने तलवार। कितना सटीक चित्रण किया था अटल जी ने। सावरकर कविता और क्रांति दोनों को साथ लेकर चले। संवेदनशील कवि होने के साथ-साथ वे साहसिक क्रांतिकारी भी थे।
मेरे प्यारे भाइयो-बहनो !
मैं टी.वी. पर एक कहानी देख रहा था। राजस्थान के सीकर की कच्ची बस्तियों की हमारी ग़रीब बेटियों की। हमारी ये बेटियाँ, जो कभी कचराबीनने से लेकर घर-घर माँगने को मजबूर थीं – आज वें सिलाई का काम सीख कर ग़रीबों का तन ढ़कने के लिए कपड़े सिल रही हैं। यहाँ की बेटियाँ, आज अपने और अपने परिवार के कपड़ों के अलावा सामान्य से लेकर अच्छे कपड़े तक सिल रही हैं।
वे इसके साथ-साथ कौशल विकास का course भी कर रही हैं। हमारी ये बेटियाँ आज आत्मनिर्भर बनी हैं। सम्मान के साथ अपना जीवन जी रही है और अपने-अपने परिवार के लिए एक ताक़त बन गई है। मैं आशा और विश्वास से भरी हमारी इन बेटियों को उनके उज्ज्वल भविष्य की शुभकामनाएँ देता हूँ। इन्होंने दिखाया है कि अगर कुछ कर दिखाने का जज़्बा हो और उसके लिए आप कृतसंकल्पित हों तो तमाम मुश्किलों के बीच भी सफलता हासिल की जा सकती है और ये सिर्फ सीकर की बात नहीं है हिन्दुस्तान के हर कोने में आपको ये सब देखने को मिलेगा।
आपके पास, अड़ोस-पड़ोस में नज़र करोगे तो ध्यान में आएगा कि लोग किस प्रकार से परेशानियों को परास्त करते हैं। आपने महसूस किया होगा कि जब भी हम किसी चाय की दुकान पर जाते हैं, वहाँ की चाय का आनंद लेते हैं तो साथ के कुछ लोगों से चर्चा और विचार-विमर्श भी होता ही है। ये चर्चा राजनीतिक भी होती है, सामाजिक भी होती है, चलचित्र की भी होती है, खेल और खिलाड़ियों की भी होती है, देश की समस्याओं पर भी होती है – कि ऐसी समस्या है – इसका समाधान ऐसे होगा –
ये करना चाहिए लेकिन अक्सर ये चीज़ें सिर्फ चर्चा तक सीमित रह जाती हैं लेकिन कुछ लोग ऐसे होते हैं, जो अपने कार्यों से, अपनी मेहनत और लगन से बदलाव लाने की दिशा में आगे बढ़ते हैं, उसेहकीकत का रूप देते हैं। दूसरों के सपनों को अपना बना लेने वाले और उन्हें पूरा करने के लिए खुद को खपा देने की कुछ ऐसी ही कहानी उड़ीसा के कटक शहर के झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले डी. प्रकाश राव की।
कल ही मुझे डी. प्रकाश राव से मिलने का सोभाग्य मिला। श्रीमान् डी. प्रकाश राव पिछले पाँच दशक से शहर में चाय बेच रहे हैं। एक मामूली सी चाय बेचने वाला, आज आप जानकर हैरान हो जायेंगे 70 से अधिक बच्चों के जीवन में शिक्षा का उजियारा भर रहा है। उन्होंने बस्ती और झुग्गियों में रहने वाले बच्चों के लिए ‘आशा आश्वासन’ नाम का एक स्कूल खोला।
जिस पर ये ग़रीब चाय वाला अपनी आय का 50% धन उसी में खर्च कर देता है। वे स्कूल में आने वाले सभी बच्चों को शिक्षा, स्वास्थ्य और भोजन की पूरी व्यवस्था करते हैं। में डी. प्रकाश राव की कड़ी मेहनत, उनकी लगन और उन ग़रीब बच्चों के जीवन को नयी दिशा देने के लिए बहुत-बहुत बधाई देता हूँ। उन्होंने उनकी ज़िन्दगी के अँधेरे को समाप्त कर दिया है। ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ ये वेद-वाक्य कौन नहीं जानता है लेकिन उसको जी करके दिखाया है डी. प्रकाश राव ने।
उनकी जीवन हम सभी के लिए, समाज और पूरे देश के लिए एक प्रेरणा है। आप के भी अगल-बगल में ऐसी प्रेरक घटनाओं की श्रृंखला होगी। अनगिनत घटनाएँ होंगी। आइये हम सकारात्मकता को आगे बढाएं ।जून के महीने में इतनी अधिक गर्मी होती है कि लोग बारिश का इंतज़ार करते हैं और इस उम्मीद में आसमान में बादलों की ओर टकटकी लगाये देखते हैं। अब से कुछ दिनों बाद लोग चाँद की भी प्रतीक्षा करेंगे।
चाँद दिखाई देने का अर्थ यह है कि ईद मनाई जा सकती है। रमज़ानके दौरान एक महीने के उपवास के बाद ईद का पर्व जश्न की शुरुआत का प्रतीक है। मुझे विश्वास है कि सभी लोग ईद को पूरे उत्साह से मनायेंगे। इस अवसर पर बच्चों को विशेष तौर पर अच्छी ईदी भी मिलेगी। आशा करता हूँ कि ईद का त्योहार हमारे समाज में सद्भाव के बंधन को और मज़बूती प्रदान करेगा। सबको बहुत-बहुत शुभकामनाएँ ।
मेरे प्यारे देशवासियो ! आप सबका बहुत-बहुत धन्यवाद। फिर एक बार अगले महीने ‘मन की बात’ में मिलेंगे। नमस्कार !
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