रेगिस्तान का जहाज़ ऊंट और राईका

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डॉ ज़िया उल हसन क़ादरी

बीकानेर, (समाचार सेवा)। ऊंट एक मज़बूत लेकिन उज्जड जानवर है। ये बोझा ढोने और बिना कुछ खाये पिए लम्बा सफर करने में माहिर है।

ये किसी ज़माने में रेगिस्तानी ज़िन्दगी की जान होता था और बहुत हद तक अब भी है। लेकिन कभी कभी ये खतरनाक भी हो जाता है।

खासकर सर्दियों में जब इसको मादा की ज़रूरत महसूस होती है। तब इस पर एक जूनून सवार हो जाता है। मुंह से झाग निकलते हैं और खाना पीना तक छोड़ देता है।

इसको “झूठ” में आना कहते हैं। ऐसी हालत में ये कई बार अपने मालिक ही की जाना ले लेता है। राजस्थान में “राईका” एक ऐसी जाती है जो ऊंटों को इंसान के लायक बनाती है।

उनको ट्रेंड करती है।

ऊंट राईका के एक इशारे पर कण्ट्रोल होते हैं। एक राईका बीसों ऊंटों को कण्ट्रोल कर लेता है। राईका लोग ऊंटनी का दूध पीते हैं जिस की वजह से ये तन्दुरुस्त और मज़बूत रहते हैं। बहुत सी बीमारियां इनसे दूर रहती हैं। खासकर शूगर।

राईका को उमूमन शूगर नहीं होता। बीकानेर के गाड़वाला गांव में लगाये गए मेडिकल केम्प में राईका जाती के किसी भी मर्दो औरत में शूगर नहीं पाया गया।

आजकल तो केन्सर में भी ऊंट के खून से बनी दवा कारगर साबित हो रही है। इसके अलावा बीकानेर के केमल इंस्टिट्यूट में ऊंटनी के दूध से बनी कुल्फी और आइसक्रीम और कॉफी भी बेचीं जा रही है। यहाँ पर सुबह शाम ऊंटनी का दूध भी फरोख्त (विक्रय) किया जाता है।

एक ज़माना था जब राईका लोगों के पास 100 ऊंटों तक का टोला (झुण्ड) रहता था लेकिन अब चारागाह की कमी और मांग में गिरावट के चलते इनके लिए ये घाटे का सौदा साबित हो रहा है।

इसलिए इनके पास कम ही ऊंट बचे हैं। सरकार ने जब से ऊंट को “राज्य पशु” बनाया है तब से राजस्थान के बाहर के लोग ऊंट खरीद नहीं सकते है।

जिससे ऊंटों की मांग और कीमत में भारी गिरावट आई है। फिलहाल ऊंटों के मास्टर तो अब भी राईका ही हैं।

साभार- डॉ ज़िया उल हसन क़ादरी की फेसबुक वाल से