गुरु पुष्य अमृत योग गुरुवार को, गुरु और शनि का बना दुर्लभ संयोग – पं. ज्योतिप्रकाश
बीकानेर, (समाचार सेवा)।गुरु पुष्य अमृत योग गुरुवार को, गुरु और शनि का बना दुर्लभ संयोग – पं. ज्योतिप्रकाश, बीकानेर के ज्योतिषाचार्य पंडित ज्योति प्रकाश श्रीमाली के अनुसार इस बार 60 वर्ष के बाद गुरु और शनि के दुर्लभ संयोग में बन रहा है गुरु पुष्य अमृत योग। ऐसे में 28 अक्टूबर के दिन गुरु पुष्य अमृत योग पर लोग चल अचल संपत्ति, आभूषण भूमि भवन की खरीदारी कर सकते हैं।
पंडित श्रीमाली के अनुसार इस दिन निर्मल मन से दान व जप करने वालों को हजार गुना लाभ मिलेगा। इस दिन यदि कोई रोगी व्यक्ति गाय व ब्राहम्णको दान देता है तो उसका रोग जल्द दूर हो जाता है। पंडित श्रीमाली के अनुसार इस समय देव गुरु ब्रहस्पति व शनि देव शनि की मकर राशि में एक साथ विराजमान हैं।
पुष्यन नक्षत्र के स्वामी शनि देव व देवता देवगुरु ब्रहस्प ति हैं। ऐसा संयोग दशियों वर्षों में एक बार बनता है। पंडित श्रीमाली के अनुसार इस दिन यदि कोई रोगी व्यक्ति गाय व ब्राहम्ण को दान देता है तो उसका रोग जल्द दूर हो जाता है।
उन्होंने बताया कि 28 अक्टूबर गुरुवार को प्रातः 9:41 पर चंद्रमा पुष्य नक्षत्र में प्रवेश करेगा जो कि शुक्रवार को 11:38 तक पुष्य नक्षत्र में रहेगा। 28 अक्टूबर को पूरे दिन सर्वार्थ सिद्धि योग है।
पंडित श्रीमाली के अनुसार पुष्य नक्षत्र को नक्षत्रों का राजा कहा गया है,पुष्य नक्षत्र का स्वामी ग्रह शनि देव है व देव गुरु बृहस्पति इसके देवता है। उन्होंने बताया कि इस दिन गुरुमंत्र लेना और लिया हुआ गुरुमंत्र जपना व रत्न धारण करना अतिश्रेष्ठ है।
आकाश में पुष्य नक्षत्र की आकृति गाय के थन के समान है, जिस प्रकार गाय का दूध हमे पोषण देता है उसी प्रकार पुष्य नक्षत्र भी पोषण का कारक है।
जिन जातको का जन्म पुष्य नक्षत्र में जन्म हुआ है व जिन जातको के जीवन मे नीरसता आ गई है, शक्ति व ऊर्जा की कमी महसूस करते है व बीमार रहते है अधिकांश तो पुष्य नक्षत्र के दिन गो माता की सेवा करे हरा चारा खिलाए, पाठ पूजा करने वाले ब्राह्मणों को दान दे क्योकि वह गुरु ग्रह का प्रतिनिधित्व करते है!
देवगुरु बृहस्पति का मंत्र जपे व विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें।
चौघड़िया:-
28 अक्टूबर को दोपहर 12:20 से 1:44 तक लाभ का
1:44 से 3:08 तक अमृत का
4:32से 5:56 तक शुभ का व
5:56 से 7:32 तक पुनः अमृत का चौघड़िया रहेगा।
यह समय मंत्र जप व दान पुण्य व रत्न धारण करने के लिए श्रेष्ठ है। मोती व नीलम गोमेद लहसुनिया सांयकाल में वही अन्य रत्न मध्यान में धारण किया जा सकता है।
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