खर्चे का बोझ कम करने के लिये एमए राजस्थानी बंद करने की तैयारी
बीकानेर, (समाचार सेवा)। खर्चे का बोझ कम करने के लिये एमए राजस्थानी बंद करने की तैयारी, महाराजा गंगासिंह विश्वविद्यालय बीकानेर ने विश्वविद्यालय में बढ़ते खर्च के बोझ को कम करने के लिये विवि में राजस्थानी में स्रातकोत्तर कक्षाओं में प्रवेश बंद करने की पूरी तैयारी कर ली है।
हालांकि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. विनोद कुमार सिंह यह आश्वासन भी दे रहे हैं कि यदि राजस्थानी एमए के इस सेल्फ फाइनेंस कोर्स में एमए प्रीवियस की 40 सीटों में से 20 सीटों पर भी विद्यार्थी प्रवेश लेते हैं तो एमए राजस्थानी का भविष्य बचा रहेगा अन्यथा विवि में एमए राजस्थानी की कक्षाएं नहीं लगायी जाएंगी।
मिली जानकारी के अनुसार महाराजा गंगासिंह विश्वविद्यालय बीकानेर में सत्र 2018-2019 में एमए राजस्थानी की कक्षाएं शुरू की गई थी। पहले वर्ष में एमए राजस्थानी प्रीवियस में 13 विद्याथियों ने ही प्रवेश लिया। इसके बाद सत्र 2019-2020 में एमए प्रीवियस व फाइनल दोनों मिलाकर कुछ 50 विद्यार्थी अध्ययनरत थे।
इसका एक कारण था कि कोलकाता के एक सेठजी ने एमए राजस्थानी में अध्ययन करने वाले विद्यार्थियों को स्कॉलरशिप देने की घोषणा की थी मगर बाद में सेठ जी वादे से मुकर गए। यही कारण रहा कि सत्र 2021 में एमए प्रीवियस व फाइनल दोनों में ही मात्र 22 विद्यार्थी पंजीकृत हुए।
विश्वविद्यालय में राजस्थानी विषय की प्रभारी डॉ. मेघना शर्मा ने अपने स्तर पर एमए राजस्थानी कोर्स को जारी रखने के लिये तमाम प्रयास किए मगर लगता है विश्वविद्यालय प्रशासन ठान चुका है कि एमए राजस्थानी पर ताला लगाना ही है।
विश्वविद्यालय का कहना है कि तय संख्या में विद्यार्थियों के प्रवेश नहीं लेने से इस कोर्स को विश्वविद्यालय के खर्च पर जारी रखना संभव नहीं है। विश्वविद्यालय के मीडिया प्रभारी डॉ. बिठठल बिस्सा ने मीडिया से बात में कहा कि जब तक सरकार राजस्थानी का विभाग गठित नहीं करता है तब तक राजस्थानी के एमए कोर्स को सुचारु रखना मुश्किल है।
बहरहाल महाराजा गंगासिंह विश्विद्यालय छात्रसंघ के उपाध्यक्ष कन्हैया उपाध्याय ने विवि प्रशासन को ज्ञापन देकर राजस्थानी विभाग शुरू करने की मांग की है। हकीकत यह है कि राजस्थानी भाषा को मान्यता दिलाने के लिये संघर्ष का बिगुल लगातार बीकानेर में बजता है, इस बिगुल को बजाने वाले झण्डाबरदारों के परिवारों से भी कोई राजस्थानी भाषा में अपना अध्ययन जारी रखना नहीं चाहता है।
बीकानेर के साहित्यकारों व बुद्धिजीवियों की मांग को ध्यान में रखते हुए ही तीन वर्ष पहले महाराजा गंगासिंह विश्वविद्यालय ने एमए राजस्थानी का सेल्फ फाइनेंस कोर्स शुरू किया। दो साल के इस कोर्स के लिये एक विद्यार्थी को वर्तमान में 15 हजार रुपये खर्च करने होते हैं।
अनेक विद्यार्थी इस खर्च को देखते हुए भी राजस्थानी में एमए इसलिये नहीं करता क्यूंकि आगे इससे कोई रोजगार मिलने की संभावना नहीं है। शिक्षा विभाग ने एक समय में राजस्थानी भाषा की वेकेन्सी निकालने की घोषणा की थी मगर वह घोषणा कागजों से बाहर नहीं निकली।
विश्वविद्यालय के निर्णय से राजस्थानी प्रेमियों में रोष
राजस्थानी भाषा के विद्यार्थी प्रशांत जैन कहते हैं, 12 करोड़ लोगों द्वारा बोली जाने राजस्थानी भाषा बाजारवाद की भेंट चढ़ रही है। वे कहते हैं, बीकानेर संभाग के सबसे बड़े महाविद्यालय डूंगर कॉलेज में सत्र 2020-21 में एमए राजस्थानी प्रीवियस में 18 तथा एमए फाइनल में 25 कुल 43 विद्यार्थी नियमित अध्ययनरत रहे जो कि उर्दू, संस्कृत और संस्कृत से कहीं अधिक हैं। ऐसे में एमजीएस विवि केवल राजस्थानी पर ही सवाल क्यों उठा रहा है।
योगेश व्यास राजस्थानी के अनुसार आज रीट की परीक्षा में हिन्दी, अंग्रेजी, संस्कृत, उर्दू, पंजाबी, सिंधी भाषाओं में से दो भाषाएं लेनी जरूरी हैं। एक गांव का विद्यार्थी हिन्दी लेगा और बाकी दूसरी भाषा उसके लिये कठिन डगर के समान है। प्रीति राजपुरोहित कही हैं आज आवश्यकता है कि विश्वविद्यालय राजस्थानी भाषा के अध्ययन को नियमित रखे। इससे जेआरएफ उर्तीण विद्यार्थियों को पीएचडी करने का मौका मिल सकेगा।
राजस्थानी प्रेमी विमला हर्ष कहती हैं यह प्रश्न केवल संस्कृति बचाने का नहीं है बल्कि सीधा सीधा रोजगार से जुड़ा है। बाहर के राज्यों में सरकारी नौकरी पानी है तो मार्कशीट में उस राज्य की भाषा में शिक्षा प्राप्त करने का फरमान होना चाहिये लेकिन राजस्थान को तो नाथी का बाड़ा बनाया हुआ है।
विद्यार्थी राजेश राजपुरोहित कहते हैं राजस्थानी भाषा की पत्रिका जागती जोत जब यूजीसी से एप्रूव हुई तब बहुत से विद्यार्थी और महाराजा गंगासिंह विवि के प्रोफेसरों ने अपने शोध पत्र इस पत्रिका में प्रकाशित करवाये। लाभ मिलते ही उनमें राजस्थानी के प्रति लगाव हुआ तब ऐसा लाभ विश्वविद्यालय से विद्यार्थियों को क्यों ना मिले।
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