यादवेंन्द्र शर्मा ‘चंद्र’ के साहित्य से मिली दलित स्त्री विमर्श को नई दिशा : डॉ. मेघना शर्मा
बीकानेर, (समाचार सेवा)। एमजीएसयू के सेंटर फॉर वीमेन्स स्टडीज़ की डायरेक्टर डॉ. मेघना शर्मा ने कहा कि यदि डॉ. भीमराव अंबेडकर ने महिला वर्ग को आगे बढ़ने में कानूनी सुरक्षा प्रदान की तो बीकानेर निवासी यादवेंन्द्र शर्मा ‘चंद्र’ सरीखे ख्यातनाम साहित्यकारों ने अपने उपन्यासों ‘लुगाईजात’ और ‘गुलाबारी’ के ज़रिए दलित स्त्री विमर्श को समाज के चिंतन का विषय बनाने के प्रयास किए और उस वर्ग की स्त्रियों को अपने अधिकारों के प्रति सजग कर दृढ बनाने में योगदान दिया।
डॉ. मेघना रविवार को उदयपुर के जनार्दन राय नागर विश्वविद्यालय में इंडियन काउंसिल ऑफ सोशल रिसर्च की ओर से आयोजित छठी उत्तर क्षेत्रिय समाज विज्ञान परिषद के अंतिम दिन रविवार को प्रथम सत्र को संबोधित कर रही थी।
डॉ. मेघना ने “दलित वीमन डिस्कोर्स (हिस्ट्री, ग्लोबलाइज़ेशन एंड कंटेपररी सीनेरियो)” विषय पर जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रो. भगत ओनियम की अध्यक्षता व साहित्य संस्थान के निदेशक प्रो. खड़कवाल की सह-अध्यक्षता में अपना वक्तव्य देते हुए कहा कि दलित महिला जागृति के तीन चरण 1956 के धर्म परिवर्तन, 1975 के महिला आंदोलनों और 1990 के उदारवाद ने इस चिंतन को देश दुनिया तक पहुंचाया और इस विषय में नए आयाम स्थापित किए।
डॉ. मेघना ने बताया कि 18, 19 और 20 जनवरी की इस त्रिदिवसीय समाज विज्ञान परिषद् में दिल्ली विश्वविद्यालय, अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय, लखनऊ विश्वविद्यालय, सुखाडिया विश्वविद्यालय, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, नेताजी सुभाष खुला विश्वविद्यालय, गुजरात केंद्रीय विश्वविद्यालय, राजस्थान के केंद्रीय विश्वविद्यालय, कश्मीर विश्वविद्यालय, हैदराबाद विश्वविद्यालय,
राजस्थान विश्वविद्यालय, जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय, जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय, दयालबाग विश्वविद्यालय आगरा, मनिपाल विश्वविद्यालय आदि के विद्वानों व प्रतिभागियों ने भी मंच से अपने विचार साझा किए।
इससे पूर्व डॉ. मेघना ने साहित्य संस्थान व संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार, नई दिल्ली द्वारा साउथ एशियन यूनिवर्सिटी, नई दिल्ली की प्रो. कविता शर्मा के साथ प्रोजैक्ट निदेशक बी. एम. मल्ला व जनार्दन राय नागर विश्वविद्यालय के कुलपति कर्नल प्रो. सारंगदेवोत की अध्यक्षता में तीस से चालीस हज़ार वर्ष पुरानी विश्व स्तरीय शैलचित्रों की प्रदर्शनी के
उद्घाटन समारोह में भी शिरकत की जिसमें बीजभाषण प्रो. जीवनसिंह द्वारा “अरावली पर्वत श्रृंखलाओं के शैल चित्र” विषय पर दिया गया।
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