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जानिये क्‍यों राष्‍ट्रपति कोविन्‍द ने आज बाबा भलकु को याद किया

Baba-Bhalku-Rail-Museum

शिमला, (समाचार सेवा)। जानिये क्‍यों राष्‍ट्रपति कोविन्‍द ने आज बाबा भलकुु को याद किया। राष्ट्रपति श्री राम नाथ कोविन्द ने सोमवार को सोलन में डॉक्टर वाई. एस. परमार यूनिवर्सिटी ऑफ हार्टिकल्चर एंड फोरेस्ट्री के 9वें दीक्षांत समारोह में भाग लिया। यहां राष्‍ट्रपति ने सोलन क्षेत्र के ही एक साधारण ग्रामवासी बाबा भलकु के असाधारण योगदान को याद किया।

आपको बतायें कि 112 वर्ष पुरानी कालका-शिमला रेलवे लाइन को बिछाने में ब्रिटिश इंजीनियरों को सफलता नहीं मिल पा रही थी। यहाँ की दुर्गम पहाड़ियों में बाबा भलकु ने ब्रिटिश इंजीनियरों को रेल ट्रैक का रास्ता सुझाया था। ब्रिटिश इंजीनियरों ने बाबा भलकु के सुझावों को सम्मानपूर्वक स्वीकार किया। आज पहाड़ी रेलमार्ग कालका-शिमला यूनेस्को की सूची में शुमार होने पर दुनिया भर में चर्चित है।

बाद में बाबा भलकु के नाम से शिमला में 7 जुलाई 2011 को रेल म्यूजियम’ की स्थापना की गई। यह संग्रहालय सोमवार को छोड़कर रोजाना सुबह 9.30 बजे शाम 4.30 बजे तक खुला रहता है। इस म्‍यूजियम में पीतल की टोपी सहित अग्निशमन यंत्र, कोयले का बक्सा, चिमटा, छड़, बेलचा, मशाल पॉट, हथकरघा लीवर, लाइन बदलने का लीवर, हस्त संकेत दीपक, बड़ोग सुरंग का मॉडल, गुमशुदा संपत्ति रजिस्टर सहित और भी कई पुरानी वस्तुएं हैं।

हालांकि इस संग्रहालय में भी बाबा भलकु के बारे में अधिक जानकारी नहीं मिलती है। यहां केवल भलकु बाबा का एक चित्र है।  संग्रहालय में आने वालों के सवाल बाबा भलकु के बारे में ही होते हैं, पर उनको जवाब देने वाला यहां कोई नहीं। उत्तर रेलवे के अधिकारी भी बाबा भलकु की असली कहानी नहीं जानते हैं। वैसे यह भी कहा जाता है कि बाबा भलकु के किस्से केवल किवदंतियों में ही हैं।

बाबा की आध्यात्मिक दृष्टि के कई किस्से कहते हैं कि जब अंग्रेज इंजीनियर बड़ोग को सुरंग का दूसरा मुहाना नहीं मिला, तो उसने खुदकुशी कर ली थी। रेलवे में श्रमिक बाबा भलकु ने ही अपनी लाठी से इस पहाड़ी के नीचे प्रस्तावित सुरंग का दूसरा मुहाना निकाला। इसकी लंबाई एक किलोमीटर 143 मीटर और 61 सेंटीमीटर है।

 

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