मैं इधर जाउं या उधर जाउं…
पंचनामा : उषा जोशी
* मैं इधर जाउं या उधर जाउं…
आम चुनाव सर पर हैं मगर कुछ खादीधारी अभी तक तय नहीं कर पाये हैं कि वे इधर जाएं या उधर जाएं।
अपनी इसी उहापोह की स्थिति को दूर करने के लिये कई खादीधारी ज्योतिषियों व तांत्रिकों की शरण में हैं, तो कईयों ने ऊपर वाले के हर ठिकाने पर नियमित पहुंचना शुरू कर दिया है।
सवाल पूछने पर ऐसे खादीधारियों का जवाब भी यही होता है, बड़ी मुश्किल में हैं जी किधर जाएं।
सबकी एक ही इच्छा है किसी भी पार्टी से बस टिकट मिल जाए। पांच साल में एक बार आने वाले आम चुनाव के पर्व का हर कोई अपने-अपने तरीके से फायदा या आनंद लेना चाहता है।
कई खादीधारी ऐसे भी हैं जिन्होंने सभी प्रमुख दलों को अपनी उम्मीदवारी का आवेदन भेजा हुआ है। साथ ही लाल, हरी, नीली, पीली सभी तरह की फरियां व झंडे का भी स्टाक जमा किया हुआ है।
अब जब तक इन दलों की टिकटें फाइनल नहीं होती उहापोह वाले खादीधारी जी धार्मिक स्थानों के चक्कर लगाते रहेंगे। जै जै कार है।
* गंदा है पर धंधा है ये..
सोशल मीडिया के माध्यम से अपनी पत्रकारिता की दुकान चलाने वाले कई लोगों के लिये आम चुनाव धंधे का टाइम है।
भले ही चुनाव आयोग ने सोशल मीडिया पर भी निगरानी शुरू कर दी हो मगर ये सोशल मीडिया ही है जिसने इस आम चुनाव में हर छोटे-बडेÞ नेता को विधायक बनने का ख्वाब दिखा दिया है।
सोशल मीडिया में न्यूज वेबसाइटों, लोकल यूट्यूब चैनलों, फेस बुक पर हर दिन नये नये विधायक बनने के उम्मीदवारों के नाम सामने आ रहे हैं।
इन नये उम्मीदवारों का इंटरव्यू, समाचार चलाकर उम्मीदवारों से ही खबरों को वायरल कराने, लाइक कराने व अपने चैनल को सब्सक्राइब कराने का काम कराया जा रहा है।
नये नेता भी सोचते हैं कि जी इतने से काम में कोई नेता बना रहा है तो अपना क्या जाता है।
भाई लोग अपने परिवार वालों व दोस्तों को वीडियो शेयर कर करके खुद को नेता बनाने की कोशिश में जुटे हुए हैं।
* आबाद हुए शहर के पाटे
ज्यों ज्यों चुनाव की तारीख पास आती जा रही है शहर के पाटे कुछ अधिक ही आबाद हो रहे हैं।
इन पाटों पर रोज एमएलए तय होते हैं और उस एमएलए के जीतने व हारने की सभी बातों पर चर्चा की जाती है।
पाटेबाजों ने भी राज्य में पिछले 25 सालों से हर बार सरकार के बदलने के रुख को देखते हुए ही वर्तमान सरकार के जाने तथा अभी विपक्ष में बैठने वालों की सत्ता में वापसी की घोषणा कर रखी है।
हालांकि वर्तमान सत्ताधारी दल से जुडे पाटेबाज इस बार चमत्कारी निर्णय आने की घोषणा कर रहे हैं।
इन समर्थक पाटेबाजों का कहना है कि जब हाथ वाले कई-कई सालों तक लगातार राज कर सकते हैं तो फूल वाले क्यों नहीं।
हां ये बहस 11 दिसंबर तक कई रूप धरेगी मगर अंत में सभी को जनता का ही निर्णय शिरोधार्य करना होगा।
* ‘प्रेस’ वालों की कमाई जोरों पर
अजी साहब हम उस प्रेस की बात नहीं कर रहे जो इन दिनों किसी भी मुद्दे पर गरम ही नहीं होती है।
हम तो हमारे धोबीजी की उस प्रेस की बात कर रहे हैं जो कि चुनाव की घोषणा होने के बाद से ठंडी ही नहीं हो रही है।
हमारे धोबीजी अपनी जोड़ायत के साथ दिन रात लोगों के सफेद कुर्ते, पाजामें धोने व उनको प्रेस करने में बिजी हैं।
कई खादीधारियों ने उनसे नियमित कांट्रेक्ट कर लिया है कि वे उनके चुनावी सीजन के कपड़े लगातार वहीं धोयेंग, निचोडेंगे और प्रेस करेंगे।
वैसे हमारे धोबीजी तो इस बात से ही खुश है कि उन्हें नेताओं के दाग धोने का मौका मिल रहा है। वह भी रोज का रोज।
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