हेे राम, इन्हे क्षमा करना ‘बापू’ ये खुद नहीं जानते ये क्या कर रहे हैं
नीरज जोशी
बीकानेर, (समाचार सेवा)। हेे राम,इन्हे क्षमा करना ‘बापू’ ये नहीं जानते ये क्या कर रहे हैं। इस सामाचार को लिखते समय मेरी ये भावना हो सकती है कि में श्री मोहनदास कर्मचंद गांधी को ‘बापू’ मानू, राष्ट्रपिता लिखूं या कहूं, यह बाध्यता नहीं, किसी को सम्मान देने की बात है।
मगर ‘बापू’ को लेकर कुछ लोग अपनी राजनीति चमकाने, मीडिया में छपने व दिखने के लिये ‘बापू’ के अस्तित्व पर सवाल उठाने लगे हैं, लोगों के मन में ‘बापू’ को लेकर जो सम्मान की भावना है उसे मिटाने के लिेय कुछ भी करने पर आमादा है।
शनिवार की सुबह जब अपना व्हाट़स एप चेक कर रहा था तो मित्र दिनेश सिंह भदोरिया की शुक्रवार की रात को मुझे भेजी गई पोस्ट पर नजर पडी। भदोरिया सरकारी सेवा में रहे तब से अपने बुलंद होंसलें, एक रक्तदाता तथा लोगों की मदद करने को तत्पर रहने वाले एक व्यक्त्िा के रूप में अपनी पहचान बनाई है, मगर आज ‘बापू’ को लेकर उनके विचार जानने के बाद लगा कि कहीं भदोरिया छपने दिखने के लिये कुछ भी करने वाला व्यक्ति बनने की ओर तो अग्रसर नहीं है।
इस जवाब की तलाश मैने शुरू की है, प्राथमिक तौर पर मैं यह मानकर भी चल रहा हूं कि शायद ऐसा है भी। इस के बावजूद भदौरिया का यह स्टैंड मेरे गले नहीं उतर रहा है। हालांकि उन्हें अपनी बात रखने की आजादी का में समर्थन करता हूं।
आज तक के जीवन में मुझे किसी ने आगे आकर महात्मा गांधी को ‘बापू’ अथवा राष्ट्रपिता करने के लिये बाध्य नहीं किया है। आजादी के आंदोलन में ‘बापू’ के योगदान से मुझे भी उन्हे सम्मान देने की प्रेरणा अपने बुजुर्गों व गुरुओं से मिली।
मेरा मानना है कि हम किसी भी बुजुर्ग के अनुभव से प्रेरित होते हैं तो उसे सम्मान रूप में पिता तुल्य होने का दर्जा देते हैं। देश की आजादी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने पर मोहनदास कर्मचंद गांधी को भी उस समय के आजादी के दिवानों ने पिता तुल्य मानकर बापू कहा, उन्हें महात्मा भी पुकारा गया और राष्ट्रपिता भी।
पूरे भारत ने महात्मा गांधी को यह सम्मान देते हुए बाबू अथवा राष्ट्रपिता माना। ये भावना की बात है। सम्मान की बात है। दिल की बात है। मगर आज भदोरिया व इसके जैसे कुछ लोग इस भावना, दिल की बात, सम्मान को खतम करने पर उतारू हैं तो ऐसे लोगों के लिये प्रार्थना ही की जा सकती है।
किसी भी सरकार ने मोहनदास कर्मचंद गांधी को राष्ट्रपिता मानने के लिये किसी को बाध्य नहीं किया। ये लोगों की भावना की बात है कि वे किसी को देश व समाज के लिये उसके किए गए योगदान को लेकर किस नाम से पुकारते है अथवा याद करते हैं। और क्या कहूं, लिखूं, भदोरिया का वीडियो देखिये, खुद ही निर्णय कीजिये।
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