हंस रहा हूँ ना रो रहा हूँ मैं, कैसी मन्जिल पे आ गया हूँ मैं : कादरी
बीकानेर, (समाचार सेवा)। हंस रहा हूँ ना रो रहा हूँ। मैं कैसी मन्जिल पे आ गया हूँ मैं! पर्यटन लेखक संघ महफिले अदब के तत्वावधान में रविवार को होटल मरुधर हेरिटेज में त्रिभाषा काव्य गोष्ठी का आयोजन रखा गया। जिसमें हिंदी, उर्दू और राजस्थानी के रचनाकारों ने एक से बढ़कर एक रचनाएँ सुना कर वाह वाही लूटी।
318 वीं गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए भीनासर के शिवकुमार वर्मा ने गमेरा गाँवग कविता सुना कर गाँवों की मनमोहक संस्कृति का नकशा खींचा- वादियाँ बिखरी हैं,जर्रा जर्रा मुस्कराता है दिशाएं महकी हैं, यह गाँव गुनगुनाता है झील के आगोश में परिंदों की बस्तियाँ समन्दर में अनगिनत शिकारे जो चले हैं।
मुख्य अतिथि मोहनलाल जांगीड़ ने गसेरोगेट मदरग शीर्षक से हाइकू सुना कर एक माँ का दर्द बयान किया- माँ की ममता/कठिन इम्तेहान/नहीं निस्बत नहीं रसायन/ना ही अमृतपान/है उधारी माँ आयोजक संस्था के डॉ जिया उल हसन कादरी ने गजल सुना कर दाद हासिल की- हंस रहा हूँ ना रो रहा हूँ। मैं कैसी मन्जिल पे आ गया हूँ मैं,
रंग उड़ने लगा है क्यूँ तेरा तेरी महफिल से जा रहा हूँ मैं असद अली असद ने वतन से मुहब्बत की बात कही- मैं हूँ वतन के वास्ते मेरे लिए वतन मेरा तो जीना मरना वतन ही के साथ हैं रहमान बादशाह ने इन्सानियत का पैगाम दिया-हैवानियत के ढोल को चूल्हे में डालिये, इंसानियत के नाम का डंका बजाइये।
कार्यक्रम में शिवप्रकाश शर्मा,राजकुमार ग्रोवर,डॉ जगदीश दान बारहठ, विजयचन्द डागा, पूनमचन्द गोदारा,सोनू लोहमरोड़, इरशाद ए सैय्यद सहित अनेक कवियों ने कविताएँ सुना कर समाँ बाँध दिया। सञ्चालन डॉ जिÞया उल हसन कÞादरी ने किया।प्रो टी के जैन ने आभार किया।
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