रंग-मल्हार में कलाकारों ने लालटेन पर बिखेरे रंग
बीकानेर, (समाचार सेवा)। रंग-मल्हार में कलाकारों ने लालटेन पर बिखेरे रंग। बीकानेर की सांस्कृतिक संस्था “लोकायन” तथा “भोज कला प्रन्यास” के की ओर से रविवार 15 जुलाई को सूरसागर पर ” रंग मल्हार” कार्यक्रम का आयोजन किया गया।
शहर के वरिष्ठ व युवा कलाकारों के साथ मिलकर आयोजित किये गए इस कार्यक्रम में चित्रकारों ने लालटेन को विभिन्न रचनात्मक तरीकों से सजाया तथा मानसून का आह्वान किया।
लगभग 50 से अधिक कलाकारों ने सुबह 9 बजे से शाम 6 बजे तक आयोजित हुई कार्यशाला में नए एवं पुराने लालटेन को रंग, सूतली एवं मिट्टी से सजाया गया. कलाकारों ने लालटेन पर बीकानेर की पारम्परिक चित्र शैलियों जैसे मिनिएचर, मथेरण, उस्ता कला एवं आला गिला को भी उकेरा।
कार्यक्रम संयोजक अनुराग स्वामी ने बताया कि इस अनूठे आयोजन में शाम को 6 बजे से 8 बजे तक आम जनता के लिए इन कलाकृतियों की प्रदर्शनी का भी आयोजन किया गया।
प्रदर्शनी का उद्घाटन नगर विकास न्यास अध्यक्ष महावीर रांका ने किया। उन्होंने इस आयोजन के लिए बीकानेर के सभी कलाकारों को बधाई देते हुए नगर विकास न्यास द्वारा भविष्य में भी इस तरह के कार्यक्रम के लिए सहयोग का आश्वाशन दिया।
लोकायन के अध्यक्ष चित्रकार महावीर स्वामी ने नगर विकास न्यास के चेयरमैन महावीर रांका को अपनी बनायीं हुई पेंटिंग भेट कर आभार जताया।
भोज कला प्रन्यास के मनोज सोलंकी ने बताया कि कार्यक्रम में बीकानेर के वरिष्ठ चित्रकार मुरली मनोहर माथुर, हनीफ उस्ता, पृथ्वी सिंह राजपुरोहित के अलावा अनेक नवोदित चित्रकारों ने हिस्सा लिया. इसके अलावा साहित्यकार अनिरुद्ध उमट, इतिहासविद कृष्णचन्द्र शर्मा, असित, अमित गोस्वामी एवं संजय पुरोहित ने भी हिस्सा लिया। कार्यक्रम के अंत में सभी चित्रकारों को प्रशस्ति पत्र भी प्रदान किये गए।
ये पधारो म्हारे देश की…पर्यटनी गुंजल से बाहर का कोई राग है – उमट
जब सब कुछ बाज़ार हुआ जा रहा हो (उदाहरण के लिए जैसलमेर) तब बीकानेर की हठी भूमि संवेदनात्मक सत्याग्रह (नन्दकिशोर आचार्य के शब्दानुसार) करती रचाव को समर्पित होती है।
और साम्प्रदायिक भेद प्रेमी विचार धारा जब सब कुछ निगल रही हो, उसी वक्त भाईचारे का चरखा कातता एक शहर बीकानेर जीवित रहता है।
अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त मिनिएचर पेंटिंग के कलाकार महावीर स्वामी के सान्निध्य में युवा गोपाल सिंह मिलते हैं और हैरिटेज को सहेजते हैं।
वे हवेलियों की चिंता करते हैं। वे सद्भाव की चिंता करते हैं। तब शहर में दुनिया भर कबीर रागी आ उमड़ते हैं। आज जूनागढ़ किला के सामने सूर सागर तालाब के पास लाल पत्थर से बने सुरम्य स्थल पर बेहद उमस में भी कनात लगाते हैं।
वरिष्ठ और नवोदित कलाकार आते हैं। लालटेन को मूल थीम बना एक दिन गुजारते हैं। ये पधारो म्हारे देश की…पर्यटनी गुंजल से बाहर का कोई राग है।
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