पत्थर की मूरत से लड़ना सीखा देती है मजबूरियां – कविता पालीवाल
बीकानेर, (समाचार सेवा)। पत्थर की मूरत से लड़ना सीखा देती है मजबूरियां – कविता पालीवाल, राजीव गांधी र्माग स्थित भ्रमण पथ पर रविवार को हुई राष्ट्रीय कवि चौपाल में ‘‘दीपावली स्नेह मिलन समारोह आयोजित किया गया। समारोह में कवयित्री कपिला पालीवाल की रचना पत्थर की मूरत से लड़ना सीखा देती है मजबूरियां को सभी की सराहना मिली।
समारोह की अध्यक्षता साहित्य सरदार अली परिहार ने की। मुख्य अतिथि बाबूलाल छंगाणी रहे। विशिष्ट अतिथि जुगलकिशोर पुरोहित रहे। कार्यक्रम का शुभारंभ बाबूलाल छंगाणी ने सरस्वती प्रार्थना से किया। स्रदार अली परिहार ने झिलमिल झिलमिल करे दिवटा कृमधरी चालै पूनमड़ली रचना पेश की।
कार्यक्रम में कवि जुगल किशोर पुरोहित ने कतरा कतरा बिखरा हूं टुकड़ा टुकड़ा टुटा हूं। कपिला पालीवाल ने पत्थर की मूरत से लड़ना सीखा देती है मजबूरियां। कृष्णा पालीवाल ने ये दोहरी बात हमसे ना कीजिए। वली मोहम्मद वली ने ज़िन्दगी हमें और क्या देगी रास्ते में दगा ही देगी।
कैलाश टाक ने दिल का हाल बताकर क्या करना। हनुमंत गौड ने जाते हैं इंसान बस उनकी याद नहीं जाती। शिवप्रकाश दाधीच ने कोयल ने कौए से कहा चलो आज शादी कर लेते हैं। अंशुमल ने मेरी आँख गिली होने लगी है महफिल में।
धर्मेन्द्र राठोड ने बेटा हो या बेटी कोई भेद ना करे। मधुरिमा सिंह ने जो इस माटी को चंदन मानते वे इस माटी को बंजर नहीं कहते। डा. कृष्णलाल विशनोइ ने फैला है अंधकार आंतक का। शमीम अहमद शमीम ने प्यार में जो सम्मान है वो तकरार में नहीं। तुलसीराम मोदी ने मैं हथेली पर सूर्य रखता हूँ क्या कमाल करता हूँ।
राजू लखोटिया ने तू मुझसे इतना ना प्यार बढा कि मैं हो जाउं दिवाना. बांसुरी धून से गीत सुनाया। संचालन सुश्री कपिला पालीवाल ने किया।
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