”ऐसे नेता की प्रशंसा न करें जिसने एक पार्टी छोड़कर दूसरी पार्टी जॉइन कर ली हो”
अलवर, (samacharseva.in)। ”ऐसे नेता की प्रशंसा न करें जिसने एक पार्टी छोड़कर दूसरी पार्टी जॉइन कर ली हो”, आचार्य पण्डित श्रीराम शर्मा की एक सूक्ति “ऐसे किसी व्यक्ति की प्रशंसा कदापि न करें जिसने अनुचित साधनों से धन कमाया हो।” आज नये रूप में प्रासंगिक है। आज के हालात में कह सकते हैं कि ”ऐसे किसी नेता/व्यक्ति की प्रशंसा कदापि न करें जिसने निष्ठाओं को ताक में रखकर एक पार्टी छोड़कर दूसरी पार्टी जॉइन कर ली हो।”
आचार्य पण्डित श्रीराम शर्मा (20 सितम्बर 1911 -जून 1990) भारत के एक युगद्रष्टा मनीषी थे जिन्होने अखिल भारतीय गायत्री परिवारकी स्थापना की। उनहोंने अपना समस्त जीवन समाज की भलाई तथा सांस्कृतिक व चारित्रिक उत्थान के लिये समर्पित कर दिया। उन्होने आधुनिक व प्राचीन विज्ञान व धर्म का समन्वय करके आध्यात्मिक नवचेतना को जगाने का कार्य किया ताकि वर्तमान समय की चुनौतियों का सामना किया जा सके। उनका व्यक्तित्व एक साधु पुरुष, आध्यात्म विज्ञानी, योगी, दार्शनिक, मनोवैज्ञानिक, लेखक, सुधारक, मनीषी व दृष्टा का समन्वित रूप था।
हमारे कॉलेज के प्रिंसिपल साहब, जो अब इस संसार में नहीं रहे, पंडितजी के परम अनुयायी थे। अपने ड्राइंग रूम में उन्होंने आचार्य पण्डित श्रीराम शर्मा के कई सारे ‘आप्त-वचन’ यानी सूक्तियां दीवारों पर चिपका रखे थे। एक सूक्ति मैं अभी तक भूला नहीं हूँ। जब भी मैं उनसे मिलने जाता तो सब से पहले इस शिक्षाप्रद सूक्ति पर मेरी नजर चली जाती:- “ऐसे किसी व्यक्ति की प्रशंसा कदापि न करें जिसने अनुचित साधनों से धन कमाया हो।”
आचार्यजी की उक्त उक्ति से प्रेरणा लेकर आज की तारीख में एक अन्य सूक्ति अनायास ही इस तरह से बन सकती है: ”ऐसे किसी नेता/व्यक्ति की प्रशंसा कदापि न करें जिसने निष्ठाओं को ताक में रखकर एक पार्टी छोड़कर दूसरी पार्टी जॉइन कर ली हो।”
(डॉ० शिबन कृष्ण रैणा)
पूर्व सदस्य हिंदी सलाहकार समिति,विधि एवं न्याय मंत्रालय भारत सरकार।
पूर्व अध्येता भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान राष्ट्रपति निवास शिमला
तथा पूर्व वरिष्ठ अध्येता (हिंदी) संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार।
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