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क्या, अब नहीं चलेगी दादागिरी?

PANCHNAMA -USHA JOSHI DAINIK NAJYOTI IKANER

पंचनामा : उषा जोशी

* क्या, अब नहीं चलेगी दादागिरी?

घाट-घाट का पानी पी चुके जांगळ देश के तीन खादीधारी दादाओं की दादागिरी या कहें विधायकी इस बार खतरें में हैं।

कहने को तो इन दादाओं ने विधायक बनने की चाह रखने वाले पोतों, बेटों, बहुओं के सामने लगभग हथियार डाल दिये हैं मगर पार्टी से पोतों, बेटों व बहुओं को टिकट दिये जाने की हरी झंडी नहीं मिलने से विधायक दादाओं को अब भी फिर विधायक बनने की आस बनी हुई है।

जांगळ देश की बीकानेर पश्चिम के विधायक दादा डॉ. गोपाल जोशी, लूणकरनसर से विधायक दादा मानिकचंद सुराणा तथा श्रीडूंगरगढ से विधायक दादा किशनाराम नाई राजनीती में भी विभिन्न दलों के घाटों का पानी पीये हुए और मंझे हुए नेता हैं।

भाजपा नेता विधायक डॉ. जोशी का पुत्र तथा पौत्र उनकी ही सीट से विधायक बनने की दौड़ में शामिल हैं।

भाजपा नेता विधायक किशनाराम नाई की एक पुत्रवधु तथा पौत्र भी परिवार की सीट मानकर विधायकी का दावा ठोक चुके हैं।

लूणकरनसर के निर्दलीय विधायक सुराणा का पौत्र भी एमएलए का दावेदार है। वहीं कोलायत के पूर्व विधायक देवीसिंह भाटी के पौत्र को भी लोग एमएलए देखना चाहते थे मगर उसकी उम्र अभी विधायक बनने की नहीं हुई है।

पूर्व विधायक भाटी की पुत्रवधु की जरूर एमएलए की दावेदारी है।

* मेरा दिल ये पुकारे आ जा…

एक अदद टिकट के इंतजार में बैठे खादीधारियों का दिन तो जनसंपर्क में जैसे-तैसे गुजर जाता है मगर रातें उनको तारे गिन-गिन बितानी पड़ रही है।

टिकट पाने की चाह रखने वाले कई खादीधारी खामोश रातों में बार-बार गाने लगते हैं, मेरा दिल ये पुकारे आ जा मेरे, गम के सहारे आ जा.., ये दिल तुम बिन कहीं लगता नहीं, हम क्या करें..,

मगर टिकट है कि उनके पास आ ही नहीं रहा है। टिकट के लिये प्रदेश व देश दोनों की राजधानियों के अनेकोनेक चक्कर निकाल चुके अनेक खादीधारी तो थक हार कर भगवान के भरोसे पर टिकट के इंतजार में धार्मिक स्थलों के चक्कर निकालने को मजबूर हैं।

हद तो यह हो गई है कि हमेशा बिना टिकट रेल व बस में यात्रा करने वाले, अपने को खादीधारी बताकर, खादी की धौंस दिखाकर सिनेमा, मेला, सर्कस, रंगमंच आदि में भी बिना टिकट प्रवेश पाने वाले कई खादीधारी भी इन दिनों टिकट की लाइन में कई-कई दिनों से खड़े नजर आ रहे हैं।

* अब तक छप्पन

चुनाव के दिनों में रूठने व मनाने वालों की कोई कमी नहीं है। एक ढूंढ़ों हजार मिलते हैं। छह ढूंढ़ो तो छप्पन मिलते हैं।

हर रूठने वाले को यह वहम है कि उसे नहीं मनाया तो उसके क्षेत्र के नेता को बड़ा भारी नुकसान उठाना पडेÞगा।

रूठे हुए को मनाने आने वाले नेताजी भी रूठे सज्जन के इस दावे को सही बताते हुए उसे मनाने का पूरा प्रयास करते हैं।

जैसे ही मनाने का नेताजी का ऑपरेशन पूरा हो जाता है नेताजी के लोग उस रूठे हुए को मना लिये जाने का एक नंबर देकर फ्री हो जाते हैं।

अगले ऑपरेशन के लिये निकलने वाले नेताजी भी यह कबूल करते हैं कि चुनाव के दिनों में तो ऐसे छप्पन लोग मिलेंगे। सबको मनाने का ऑपरेशन करना ही पड़ता है।

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