राजस्थानी भाषा को शिक्षा से जोड़ने के लिए ठोस कदम उठाने की जरूरत
* शंकरसिंह राजपुरोहित
बीकानेर, (samacharseva.in)। राजस्थानी भाषा को शिक्षा से जोड़ने के लिए ठोस कदम उठाने की जरूरत21 फरवरी को ‘अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस’ है। विश्व की तमाम मातृभाषाओं के हिमायती इस अवसर पर मातृभाषा के प्रति अपना प्रेम और अनुराग प्रकट करेंगे। राजस्थान की मातृभाषा राजस्थानी के प्रति भी इस बार कुछ विशेष होने जा रहा है। राजस्थानी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में जोड़ने की 60 वर्षों से चली आ रही मांग पूरे प्रदेश में पुरजोर तरीके से उठाई जा रही है।
विशेष रूप से विद्यार्थी
वर्ग में पहली बार आक्रोश और उत्साह एक साथ नजर आ रहा है। राजस्थानी की संवैधानिक मान्यता
के लिए प्रदेश के सभी जिला मुख्यालयों पर राजस्थानी
के विद्यार्थी और हिमायती एक साथ धरना देने के लिए बेताब हैं। सोशल मीडिया से इस आंदोलन
को पूरे राजस्थान का समर्थन भी मिल रहा है।
इसी बात को ध्यान में रखते हुए राजस्थान सरकार
ने भी पहली बार प्रदेश के सभी सरकारी और गैर सरकारी महाविद्यालयों में
20 फरवरी को (21 फरवरी को महा शिवरात्रि के अवकाश के कारण) ‘राजस्थानी भाषा दिवस’ मनाने का आदेश जारी किया।
इसके लिए उच्च शिक्षा मंत्री भंवरसिंह भाटी के प्रति राजस्थानी विद्यार्थियों ने तहेदिल
से आभार प्रकट किया है। परंतु राजस्थानी
को प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा से जोड़ने के लिए ठोस कदम उठाने की जरूरत है।
शिक्षा के क्षेत्र में राजस्थानी भाषा की दयनीय स्थिति का अंदाजा इसी बात से लगाया
जा सकता है कि वर्तमान में प्रदेश के करीब 200 सरकारी महाविद्यालयों में से केवल 2
महाविद्यालयों में स्नातक स्तर पर राजस्थानी विषय पढ़ाया जा रहा है। इसी प्रकार प्रदेश
के करीब 2500 राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालयों में से केवल 80 विद्यालयों में ही राजस्थानी
विषय स्वीकृत है। जरूरत इस बात की है कि कम से कम सरकारी महाविद्यालयों और विद्यालयों
में तो राजस्थानी साहित्य को एक विषय के रूप में शामिल किया ही जाना चाहिए।
वर्तमान में राजस्थान के सभी सरकारी विश्वविद्यालयों में राजस्थानी भाषा और साहित्य को स्नातक और स्नातकोत्तर विषय के रूप में पढ़ाया जा रहा है। इस विषय में शोध उपाधियां और शोधकार्य भी हो रहे हैं। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा राजस्थानी विषय में ‘व्याख्याता पात्रता परीक्षा’ (नेट) में भी राजस्थानी विषय वर्षों से शामिल है। परंतु जब तक प्राथमिक और उ च माध्यमिक शिक्षा में रा य सरकार द्वारा राजस्थानी को एक विषय के रूप में शामिल नहीं किया जाएगा तब तक उगा शिक्षा में राजस्थानी साहित्य को गति नहीं मिल पाएगी।
जिस विद्यार्थी ने दसवीं कक्षा तक राजस्थानी विषय की पाठ्य पुस्तक आंख से ही न देखी हो, उगा शिक्षा में राजस्थानी विषय के प्रति उसकी रुचि कैसे उत्पन्न हो सकती है? इसलिए राजस्थानी भाषा को प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षा में एक विषय के रूप में शामिल करना इसकी संवैधानिक मान्यता से भी महत्त्वपूर्ण कदम साबित होगा।
इधर राजस्थान सरकार के स्वायत्तशासी उपक्रम राजस्थानी
भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर में पिछले 7 वर्षों से अध्यक्ष मनोनीत
नहीं किए जाने से इस अकादमी सहित राजस्थान की लगभग सभी अकादमियों की साहित्यिक गतिविधियां
ठप्प हैं। रा य की पिछली वसुंधरा सरकार ने भी अपने पांच साल के पूर्ण कार्यकाल में राजस्थानी अकादमी का अध्यक्ष मनोनीत नहीं
किया।
सत्ता परिवर्तन के साथ
आई गहलोत सरकार के भी दो वर्ष के कार्यकाल
में अभी तक किसी प्रकार की राजनीतिक
नियुक्तियां नहीं की गई हैं, जिसके चलते इस अकादमी की पांडुलिपि प्रकाशन, पत्र-पत्रिकाओं को सहायता, साहित्यिक पुरस्कार और समारोह आदि के आयोजन
की सभी गतिविधियां पिछले सात वर्षों
से ठप्प हैं। इसलिए अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस को सरकारी महाविद्यालयों में मनाने तक सीमित रहने से कोई विशेष फायदा होने
वाला नहीं है।
रा य की गहलोत सरकार से राजस्थानी भाषा के संरक्षण और संवर्द्धन की उम्मीद की जा
सकती है। क्योंकि उन्हीं की सरकार ने वर्ष 2003 में राजस्थान विधानसभा से राजस्थानी की संवैधानिक मान्यता का सर्वसम्मत
संकल्प प्रस्ताव पारित कर केंद्र सरकार को भेजा था। पिछले दिनों मुख्यमंत्री अशोक गहलोत
ने इस प्रस्ताव के संबंध में केंद्र सरकार को पत्र भेजकर पिछले 16 वर्ष से केंद्र सरकार के गृह मंत्रालय में लंबित इस प्रस्ताव पर कार्रवाई
का संज्ञान भी लिया है।
साथ ही इस वर्ष अंतरराष्ट्रीय राजस्थानी लिटरेचर फेस्टीवल मनाने का निर्णय भी प्रदेश सरकार ने लिया है, जिसके लिए अलग से बजट स्वीकृत किया गया है। इस प्रस्तावित आयोजन से राजस्थानी के लेखक और साहित्यकार तो प्रसन्न हो सकते हैं, लेकिन राजस्थानी के विद्यार्थियों के लिए सकारात्मक निर्णय लेते हुए रा य सरकार को मातृभाषा में शिक्षा देने पर बल देना चाहिए। राजस्थानी भाषा के लिए ऐसे कुछ ठोस कदम उठाने पर ही मातृभाषा दिवस मनाना सार्थक होगा।
(लेखक साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली से पुरस्कृत एवं ‘राजस्थानी भाषा मान्यता समिति’ के जिला अध्यक्ष हैं)