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कृषि वैज्ञानिकों ने बनाई फसल का कचरा काटने व खेत में फैलाने की मशीन, यूके से मिला पेटेंट

Agricultural scientists created a machine to cut crop waste and spread it in the field, got patent from UK

पराली व फसल कटाई के बाद के बचे कचरे की समस्‍या का हो सकेगा समाधान

NEERAJ JOSHI बीकानेर, (समाचार सेवा) स्वामी केशवानंद राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय (एसकेआरएयू) बीकानेर के वैज्ञानिकों ने फसल का कचरे को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर खेत में फैलाने की एक मशीन स्टबल चॉपर कम स्प्रेडर तैयार की है। इस मशीन के उपयोग से पराली व फसल कटाई के बाद बचे हुए कचरे का बेहतर निस्‍तारण किया जा सकेगा।

विवि वैज्ञानिकों की इस स्टबल चॉपर कम स्प्रेडर मशीन को यूके (यूनाइटेड किंगडम) से पेटेंट मिल गया है। भारत में भी इस मशीन के पेटेंट के लिये आवेदन किया हुआ है। इस मशीन के उपयोग से फसल के कचरे को जलाने की बजाय, उसे मशीन से छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर खेत मैं फैला देने उसे नमी देने से कचरा जैविक खाद बन जाएगा।

फसल के कचरे को जलाने से जो कृषि भूमि की उर्वरा तथा फसल की उत्‍पादकता में होने वाली कमी की समस्‍या भी मिट सकेगी। कृषि विश्वविद्यालय बीकानेर की डॉ. मनमीत कौर, डॉ. वाई. के. सिंह, सुश्री शौर्या सिंह, डॉ. अरुण कुमार एवं डॉ. पी. के. यादव को इस स्टबल चॉपर कम स्प्रेडर मशीन का पेटेंट मिला है।

एसकेआरएयू के कुलपति डॉ. अरुण कुमार ने बताया कि फसल अवशेष, पराली व कचना आदि प्रबंधन के लिये वर्तमान में जो मशीनें हैं वे सब्सिडी के बाद भी काफी महंगी हैं। लिहाजा आम किसान उसका उपयोग नहीं कर पाता लेकिन स्टबल चॉपर कम स्प्रेडर मशीन उनसे करीब चार गुना कम कीमत पर ही उपलब्ध हो सकेगी। उन्‍होंने बताया कि इस मशीन का व्यावसायिक निर्माण विश्वविद्यालय अपने स्तर पर निजी फर्म के साथ टाईअप कर जल्द ही शुरू करेगा। लिहाजा कृषि विश्वविद्यालय की यह उपलब्धि अब पराली एवं अन्य फसल अवशेषों के प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर पाएगी।

वैज्ञानिकों को बुके भेंट कर दी बधाई 

कुलपति डॉ. अरुण कुमार ने मंगलवार को विश्वविद्यालय सचिवालय कॉन्फ्रेंस हॉल में संबंधित वैज्ञानिकों को बुके भेंट कर स्वागत किया और बधाई दी। उन्होंने कहा कि वैज्ञानिकों द्वारा निरन्तर किए जा रहे शोध विश्वविद्यालय को विश्व स्तर पर ख्याति दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेंगें। विदित है कि इससे पूर्व पिछले वर्ष ही एसकेआरएयू को बाजरा बिस्किट पर फेडरल रिपब्लिक ऑफ जर्मनी से पेटेंट मिला था।

देश में हर साल होते हैं 650 मिलियन टन फसल अवशेष-डॉ. मनमीत कौर

सहायक आचार्य डॉ. मनमीत कौर ने बताया कि जुलाई 2023 में नीति आयोग द्वारा प्रकाशित एक वर्किंग पेपर के अनुसार भारत प्रतिवर्ष करीब 650 मिलियन टन फसल अवशेष उत्पन्न करता है। किसानों द्वारा अधिक फसल पैदा करने की प्रतिस्पर्धा के चलते फसल अवशेषों को अपशिष्ट मानकर त्वरित निपटान के लिए जला देना आम बात हो गई है।

जबकि फसल अवशेष जलाने से ना केवल महत्वपूर्ण बायोमास का नुकसान होता है बल्कि यह प्रदूषण वृद्धि में भी महत्वपूर्ण योगदान देता है। फसल अवशेष दहन से मृदा की उर्वरता भी कम हो रही है एवं मानव स्वास्थ्य पर भी दुष्प्रभाव पड़ रहा है।

देश की ज्वलंत समस्या का हो सकेगा समाधान- डॉ. पीके यादव

कृषि महाविद्यालय अधिष्ठाता डीन डॉ. पीके यादव के अनुसार फसल अवशेष प्रबंधन लम्बे समय से देश में ज्वलंत समस्या बनी हुई है। विभिन्न प्रयासों के बाद भी इसका निराकरण नही हो पाया।  उन्‍होंने बताया कि फसल अवशेष प्रबंधन पर लम्बे समय तक शोध के उपरांत स्टबल चॉपर कम स्प्रेडर का डिजाइन तैयार किया गया है।

ऐसे में कृषि विश्वविद्यालय द्वारा बेहद कम कीमत पर निर्मित मशीन ‘स्टबल चॉपर कम स्प्रेडर आने वाले समय में फसल अवशेष प्रबंधन के क्षेत्र में क्रांतिकारी प्रभाव ला सकती है।

फसल अवशेष जैविक खाद में होगें परिवर्तित-डॉ. वाई के सिंह

सह आचार्य. डॉ वाई.के.सिंह ने बताया कि यूके से मशीन को एक महीने में पेटेंट प्रदान कर दिया गया। उन्‍होंने बताया कि फसल कटने के बाद जो फसल अवशेष रह जाते हैं उसे ये मशीन छोटे छोटे टुकड़ों में काट कर पूरे क्षेत्र में फैला देती है। जो जैविक खाद में परिवर्तित होकर फसलों को आवश्यक पोषक तत्व उपलब्ध कराता है।

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