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विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने राजस्था्नी पत्रिका “जागती जोत” को दी मान्यता

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बीकानेर, (समाचार सेवा)। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग नई दिल्ली ने राजस्थानी की पत्रिका “जागती जोत”  को मान्यता देते हुए अपनी अनुमोदित पत्रिकाओं की सूची में शामिल किया। राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी के सचिव डॉ. नितिन गोयल ने बताया कि “जागती जोत”  विवि अनुदान आयोग की प्रतिष्ठित सूची में जगह पाने वाली बीकानेर की एक मात्र पत्रिका है।

उन्‍होंने बताया कि राजस्थानी साहित्य जगत की लोकप्रिय पत्रिका “जागती जोत” निरंतर प्रकाशित हो रही है। वरिष्ठ राजस्थानी साहित्यकार की सम्पादकीय देखरेख में पत्रिका के प्रकाशन एवं प्रसार में अभिवृद्धि हुई है जिसकी, गूंज राष्ट्रीय स्तर तक सुनाई दी। डॉ. गोयल ने बताया कि “जागती जोत”  पत्रिका प्रदेश ही नहीं, देश के 18 राज्यों एवं अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर रूस देश में भी राजस्थानी साहित्य का ध्वज लहरा रही है, जो एक गौरव का विषय है।

jagati-jot-1-Copy-747x1024 विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने राजस्था्नी पत्रिका “जागती जोत” को दी मान्यता

उन्‍होंने कहा कि किसी भी भाषा का उन्नयन एवं प्रसार तभी संभव है जब भाषा से संबंधित साहित्य सरल, सहज रुप से उपलब्ध एवं पठनीय हो।

विश्व पटल पर भाषा साहित्य की सहज उपलब्धता के लिए सूचना तकनीक वर्तमान युग में एक प्रमुख वाहक है से इसी क्रम में राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी बीकानेर नें राजस्थानी के प्रसार हेतु जनमानस को जोड़ने के लिए सूचना तकनीक का उपयोग करते हुए कई नवाचारों को अंजाम दिया है।

 डॉ. गोयल ने कहा कि इतिहास हमें बताता है कि मानव सभ्यता के उत्थान में सर्वप्रथम कृषि क्रान्ति, तदउपरान्त औद्योगिक क्रान्ति एवं वर्तमान में तकनीकी क्रान्ति नें अभूतवपूर्व योगदान दिया है।

सूचना तकनीक के इस युग में राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ने जो नवाचार एवं नव पहल की है, वह आप सब से साझा करने योग्य है।

उन्‍होंने बताया कि अकादमी द्वारा प्रकाशित राजस्थानी जगत की मुख पत्रिका “जागती जोत” के वर्ष 1973 से आज तक के सभी अंक ई-जागती जोत के रूप में भ्पही त्मेवसनजपवद उच्च तकनीक के प्रयोग से अकादमी वेबसाईट पर आनॅलाईन कर दिए गए हैं। रचनाकार, शोधार्थी कभी भी अकादमी की वेबसाईट के माघ्यम से किसी भी अंक की कोई भी रचना-लेखक, विषय, वर्ष, माह के आधार पर अपने घर बैठे-बैठे देख सकता है, पढ़ सकता है, डाउनलोड कर सकता है एवं प्रिंट भी ले सकता है, और वह भी सब निःशुल्क। ना कोई रजिस्ट्रेशन, ना कोई पासवर्ड एवं ना ही कोई शुल्क की बाधा, सीधी आप तक पहुंच।

 राजस्थानी के अनेक रचनाकार हैं, जिनकी रचनाए तो राजस्थानी साहित्य में अपना योगदान देती है परन्तु स्वयं रचनाकार के पास ही उस रचना की कोई प्रति नहीं होती।

इसी तरह अनेकों लब्ध प्रतिष्ठित राजस्थानी रचनाकार को यह भी पता नहीं है कि उनकी रचना किस वर्ष में किस अंक में छपी होगी? ऐसी स्थिति में कितना सरल हो गया उन्हें रचना को ढंूढना व उसकी निःशुल्क प्रति प्राप्त करना। साहित्य में सूचना तकनीक का ऐसा सफल प्रयोग पहली बार देखने को मिला है।

यहां तक ही नहीं, अकादमी ने आगे बढ़ते हुए आदिनंाक तक स्वयं प्रकाशित सभी पुस्तकों को ई-बुक्स के रूप में अकादमी की वेबसाइट पर निःशुल्क उपलब्ध करवा दिया है। इन पुस्तकों में विश्वविद्यालय के पाठयक्रम में लगी उकरास, राजस्थान के कवि, तीड़ोराव जैसी पाठय पुस्तकें भी सम्मिलित हैं। इस सुविधा से राजस्थानी के वरिष्ठ साहित्यकार ही नहीं, परंतु युवा विद्यार्थी भी लाभान्वित होंगे।

देश की पहली भाषाई अकादमी के रुप में एवं राजस्थानी के प्रसार के उदे्श्य से ओत-प्रोत यह अकादमी हर कम्प्यूटर, मोबाईल तक अपनी पहुंच बनानें मे सक्षम हो रही है।

वर्षों से अकादमी का अपना पुस्तकालय है, जिसमें शोधपरक एवं पठन योग्य महत्वपूर्ण पुस्तकों का संकलन है। प्रथम बार इन सैकडों पुस्तकों को डिजिटल रूप में सूचीबद्ध किया गया है और इस सूची को आमजन के लिए ई-कैटलॉग के माध्यम से अकादमी की वेबसाइट पर निःशुल्क उपलब्ध करवा दिया गया है।

इंटरनेट के माध्यम से देश-प्रदेश मे कहीं भी बैठा शोधार्थी, पाठक, आम राजस्थानी इस सेवा का निःशुल्क लाभ ले सकता है। कितनी सुगमता-कितनी सरलता। अकादमी द्वारा किया गया यह कार्य भी सकारात्मक एवं जनउपयोगी कदम है।

प्रदेश की यह पहली भाषाई अकादमी है, जिसने इस सूचना तकनीक का सदुपयोग कर अकादमी को हर दृष्टिकोण से अपडेट कर दिया।

यह राजस्थानी एवं उसके सभी समर्थकों के लिए एक सुखद सूचना है। अकादमी की वेबसाईट है। नये युग की नई तकनीक से कदमताल मिलाती राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर अपने इस नवाचार एवं नई पहल के लिए साधुवाद की पात्र है।

वेबसाईट देखने पर पता चला कि आमजन तक पहुचने के लिए प्रयासरत अकादमी द्वारा अपना फेसबुक पेज भी बनाया गया है, जो आज के युग की जरूरत है।

कुल मिलाकर देखें तो अब हमें 46 वर्षों के जागती जोत के अंक, अकादमी के आज तक के समस्त प्रकाशन, अकादमी का 10 हजार से अधिक पुस्तकों का संदर्भ पुस्तकालय सभी आनॅलाइन होना सभी के लिए अच्छी खबर के साथ-साथ बहुपयोगी भी है।

अकादमी इस नये दौर में नई तकनीक के हर नये पहलू से हमेशा अपडेट होकर राजस्थानी जगत को नई-नई सुविधायें सुलभ करवाती रहेगी, यही कामना है।

अकादमी की जागती जोत पत्रिका के साथ-साथ यु.जी.सी. नई दिल्ली से भी अनुमोदित पत्रिका है एवं हार्डकॉपी के साथ-साथ सॉफटकॉपी के रूप मे भी पाठको तक पहूचाई जाती है। इसमें प्रकाशित होने वाली रचनाओं के लेखको को मानदेय सीधे उनके बैंक खातो मे भिजवाया जाता है।

पत्रिका का  सालाना शुल्क मात्र 120/-  रुपये है। ज्यादा से ज्यादा राजस्थानी हित्तालुओं को पत्रिका से जुड़ना चाहिये।

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