Home film “सरकार हाजिर हो“ फ़िल्म का राजनीति से नहीं कोई वास्ता  

“सरकार हाजिर हो“ फ़िल्म का राजनीति से नहीं कोई वास्ता  

समाचार सेवा

सेंसर बोर्ड से यूए केटेगरी में पास हुई फ़िल्म “सरकार हाज़िर हो“ का किसी भी राज्‍य सरकार, केन्‍द्र सरकार अथवा राजनीति से भी दूर का भी वास्ता नही है।

देश की दो सच्ची व क्रूर घटनाओं जिन्होंने पूरे देश को दहला दिया था पर आधारित फ़िल्म “सरकार हाजिर हो“ आगामी 13 जुलाई को देशभर में रिलीज की जाएगी। पंडित व्यास प्रॉडक्शन्स कृत इस फ़िल्म लेखक- निर्देशक पंडित व्यास हैं।

एम एम गुप्ता प्रस्तुत “सरकार हाज़िर हो  इस फिल्म में मनोज मल्होत्रा, करिश्मा कंवर, अमित कुमार, आरती जोशी अनुपमा शर्मा, पृथ्वी जुत्सी, शशि रंजन, पूजा दीक्षित और हेमंत शर्मा ने प्रमुख भूमिका निभाई है।

छायाकार हीरा सरोज, कार्यकारी निर्माता हरीश व्यास व ध्वनि मिश्रण शानू शेठ का है। वही पंडित व्यास के गीतों को संगीत से संवारा है एन के नंदन ने।

“सरकार हाजिर हो“ के लेखक निर्माता निर्देशक पंडित व्यास का कहना है कि अदालत के रोमांचक  ड्रामे हमेशा दर्शक पसंद करते हैं। मिसाल के तौर पर ““कानून““, ““ ये रास्ते है प्यार के“, “एत्तेफाक“, “इंसाफ का तराजू“, “दामिनी“, “वक्त“  तथा और भी कई फिल्में।

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* ये है फ़िल्म कहानी

दर्शक फ़िल्म के प्रारंभ में ही समझ चुका होता है कि यहाँ किन घटनाओं का जिक्र हो रहा है। एक वाकिये में एक बहन अपने भाई (वह दोनों कैसे भाई बहिन हैं, इसे फ़िल्म देखकर ही समझा जा सकता है) के साथ शादी करना चाहती हैं।

उसका यह भी कहना है कि वो कथित रूप से उसके बच्चे की माँ बनने वाली है। दुनियावालों का वास्ता देकर  माँ (अनुपमा शर्मा) अपनी बेटी को ऐसा करने से बहुत रोकती है पर बेटी अपनी जिद पर अड़ जाती है।

बेटी भी माँ के लगातार पति बदलने से दुखी है और बात बेटी की हत्या तक जा पहुँचती है। बेटी (करिश्मा कंवर) ने जिस तरह अपने मरने के सीन में जान डाली है, वह देखने लायक है।

बेटी के साथ ही घर के नौकर (एन के पंत) का भी कत्ल हुआ है। बाद में पुलिस इंकवायरी में माता पिता  दोनों अपनी ही बेटी की हत्या के आरोप में गिरफ्तार भी कर लिए जाते हैं।

एक लंबे समय तक जेल में रहने के बाद उन्हें जमानत मिली है। इसी के साथ केस कोर्ट में दाखिला पा जाता है। जब ये केस कोर्ट मे शुरू होता है वहां एक अलग ही स्टोरी जन्म लेती है।

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होता यह है कि कोर्ट में इन दोनों का केस लड़ने के लिए जो वकील अनुबंधित किये गए हैं,  वो लॉ की पढ़ाई के समय के साथी हैं। पब्लिक प्रोसिक्यूटर (अमित कुमार) के साथ बरसो पहले एक दूसरे से प्यार करने के बावजूद डिफेंस लॉयर (आरती जोशी) शादी नही कर पाई।

वह वर्तमान में विधवा है और सरकारी वकील कुँआरा होते हुए भी आज भी उससे शादी करने के सपने संजोए है। यहाँ एक जबरदस्त ड्रामा व एक सामाजिक संदेश से दर्शकों को रूबरू होना पड़ता है। जो इस फ़िल्म का सर्वाधिक महत्वपूर्ण पक्ष है।

ऐसा होने के बावजूद दोनों वकीलों की कोर्ट में गर्मागर्म बहस दर्शकों को झकझोरने के साथ ही मजा भी देती है। कोर्ट में वकीलों व जज के बीच खूब हंसी मजाक होती है जो दर्शकों का भरपूर मनोरंजन करती है।