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साहित्यकार करते हैं लोक क्षेत्र की चिकित्सा : सोमगिरिजी

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बीकानेर, (समाचार सेवा)शिवबाड़ी मंदिर से जुड़े संवित सोमगिरिजी महाराज ने कहा कि लोक क्षेत्र की चिकित्सा साहित्यकार ही करते हैं।

सोमगिरिजी सोमवार को महाराजा गंगा सिंह विश्वविद्यालय बीकानेर परिसर में राजस्थानी कहानी : परंपरा की दृष्टि  और आधुनिकता की पहचान विषयक दो दिवसीय संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र को मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित कर रहे थे।

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साहित्य अकादमी नई दिल्ली द्वारा बीकानेर के महाराजा गंगासिंह विश्वविद्यालय के सहयोग से आयोजित इस संगोष्ठी में महाराजजी ने मंत्रोचारण के साथ अपनी बात आरम्‍भ की।

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उन्होंने  राजस्थानी भाषा को लेकर पीड़ा व्यक्त करते हुए कहा कि दूसरे सभी राज्य अपनी मातृभाषा में संवाद करते है व उन्हें मान्यता भी प्राप्त है, परन्तु राजस्थानी भाषा को अभी तक मान्यता प्राप्त नही हुई है।

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सोमगिरिजी महाराज ने कहा कि राजस्थानी बहुत गहरी भाषा है और यही व्यक्ति की पहचान भी होती है। 

उद्घाटन सत्र में कार्यक्रम समन्वयक विश्वविद्यालय की राजस्थानी विभाग की प्रभारी डॉ. मेघना शर्मा ने मंच से अतिथियों का परिचय दिया।  डॉ. मेघना ने राजस्थानी को विश्व की सबसे समृद्ध भाषाओं में से एक बताया। 

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स्वागत भाषण देते हुए अकादमी प्रतिनिधि ज्योति कृष्ण वर्मा ने कहा कि मान्यता प्राप्त 24 भाषाओं के साहित्य पर अनेक पुस्तकों के प्रकाशन पर काम किया जाता है।

उन्होंने बताया कि अकादमी प्रतिवर्ष 400 से अधिक पुस्तकों का प्रकाशन करवाती है।

साथ ही देशभर मे विभिन्न प्रकार के आयोजन करवाती है जिसमे संगोष्ठी आदि कार्यक्रम सम्मिलित होते हैं। संस्कृत की त्रैमासिक पत्रिका भी अकादमी द्वारा प्रकाशित की जाती है। 

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विषय प्रवर्तन करते हुए साहित्य अकादमी दिल्ली के राजस्थानी भाषा परामर्श मण्डल के संयोजक मधु आचार्य ‘आशावादी’ ने कहा कि मनुष्यता को बचाने के लिए भाषा का योगदान बहुत अधिक है।

उन्होंने कहा कि बाल साहित्य, लोक कला साहित्य जैसी अनेक विद्या से राजस्थानी भरी पडी है। कन्नड, बंगाली, मराठी आदि भाषा के साथ कही भा राजस्थानी पीछे नही है न के बराबर राजस्थानी भाषा भी खडी है।

आचार्य ने कहा कि समारोह में उपस्थित अनेक साहित्यकारों के पास कहानियों का भण्डार है। पत्रवाचन बहुत ही महत्वपूर्ण है। दो दिन राजस्थानी कहानियो का गहनता से मंथन करेंगे। समारोह में वरिष्ठ साहित्यकार मालचंद तिवाडी, डॉ. नीरज दईया, कृष्ण कमार आशु, देवकिसन राजपुरोहित, बुलाकी शर्मा, राजेन्द्र जोशी, हरीश बी शर्मा, डॉ. अजय जोशी, कमल रंगा,

राजकुमार घोटड, डॉ. नितिन गोयल, इरशाद अजीज, नगेन्द्र किराडू, अरूण शर्मा, डॉ. विक्रमजीत, डॉ. सीमा शर्मा, डॉ. बिट्ठल बिस्सा व डॉ. अभिषेक वशिष्ठ आदि शामिल रहे।

धन्यवाद ज्ञापन विश्‍वविधालय की राजस्‍थानी विभाग की प्रभारी डॉ. मेघना शर्माने दिया।

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मान्यता के लिये सरकार पर दबाव जरूरी : कुलपति

समारोह के विशिष्ट अतिथि कुलपति प्रो. भगीरथ सिंह ने कहा कि राजस्थानी भाषा के विकास के लिए अनेक प्रकार की संकल्प यात्राओं की आवश्यकता है, जिससे राजस्थानी का विकास किया जाए।

उन्होंने कहा कि राजस्थानी भाषा के लिए सरकार पर दबाव बनाना चहिये। कुलपति सिंह ने कहा कि हमें यह संकल्प लेना होगा कि किसी भी अधिकारी या राजनेता से बात अपनी मातृभाषा राजस्थानी मे करेंगे जिससे भाषा से लोगो का जुड़ाव होगा। 

प्रो. सिंह ने कहा कि हर मनुष्य को मातृभाषा मे शिक्षा का अधिकार है, हमें यह अधिकार मिलना चाहिए।

उन्होंने बताया कि विश्वविद्यालय में राजस्थानी मे पीएच.डी. शुरू की गई है और जिसके सभी छात्रो को 5000 रू मासिक व स्रातकोत्तर के विद्यार्थियों को 3000/- मासिक आर्थिक सहायता मिलेगी। जिस भाषा मे संवेदना होती है वही आगे बढती है।  

कण्ठ से कलम तक है राजस्थानी कहानी का फैलाव : डॉ. चारण

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए  डॉ. सोहन दान चारण ने कहा कि परम्परा की दृष्टि से सोचते है तो ऐसा लगता है जैसे राजस्थानी कहानी का फैलाव कण्ठ से कलम तक है।

उन्होंने कहा कि कहानी का निर्धारण बहुत मुश्किल कार्य है। ‘बात सांची भली पोथी बांची भली’ के मूल मंत्र से अपने विचार रखते हुए उन्होंने पैरवी की कि किसी भी प्रदेश की आधुनिक कहानियो से राजस्थानी कहानियां पीछे नही है।

राजस्थानी कहानिकार अपनी सामाजिक सरोकार निभाते है, राजस्थानी कहानी में सामाजिक परिस्थितियों का एकल समायोजन है। कहानीकार का दायित्व होता है कि वह अपने समय का सत्य दिखाए।

उद्घाटन सहित आयोजित हुए तीन सत्र

प्रथम सत्र में मीठेश निर्मोही की अध्यक्षता में जितेन्द्र निर्मोही, मनोज स्वामी व अशोक व्यास ने राजस्थानी कहानी में परम्परा, संस्कृति और बदलाव के चिह्न दृष्टिगोचर बताते हुए आधुनिक राजस्थानी कहानी के विषय में भी चर्चा की।

भोजनोरान्त कमला कमलेश की अध्यक्षता में अरविन्द सिंह आसिया, भरत ओला, दिनेश पांचाल ने राजस्थानी कहानी में स्त्री विमर्श, दलित विमर्श व कहानी में संघर्ष व संवेदना की बात की।

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