आइए दुखी होते हैं
आचार्य ज्योति मित्र
आइए दुखी होते हैं, जब से समझ पकड़ी है एक बात मेरे गहरे तक बैठी हुई है कि आदमी इस दुनिया मे खुश होने के लिए नही वरन दुखी होने के लिए जीता है।
इस जगत को मिथ्या मानने वाले भारत देश में प्रार्थना तो प्रसन्नता के लिए की जाती है लेकिन प्रयास हमेशा दुखी होने के लिए ही होते हैं।
आप सोच रहे होंगे मैं सटक गया हूं। सटका नही हूँ मुझे आत्मज्ञान हुआ है। अब कोई क्या कर ले मुझ जैसे अदने आदमी को आत्मज्ञान कैसे प्राप्त हो सकता है इस पर भी दुखी हो रहे हैं।
दुख हमारे हिन्दुस्तानियो की रग रग में बसा हुआ है। हर तरह के दुख के लिए हमारी हिंदी में अलग अलग शब्द है पीड़ा, व्यथा, कष्ट, संकट, शोक, क्लेश, वेदना, यातना, यंत्रणा, खेद, उत्पीडन, विषाद, संताप, क्षोभ आदि लेकिन अंग्रेजी में दुख को सैड जैसे इक्के दुक्के शब्दो मे समेट दिया।
दुखी होने में हम अंग्रेजों से आगे है। मानवीय जीवन के लिए दुख का महत्व किसी से छुपा हुआ नहीं है।
आज तक जितना साहित्य रचा गया है अथवा रचा जा रहा है उसका एक बहुत बड़ा हिस्सा दुख के कागज़ पर आंसुओं की स्याही से लिखा गया है।
हम तो इस बात से सौ फीसदी सहमत हैं कि दुखी होना ही जीवित होने की निशानी है। हम चाहें स्वीकार करें या न करें लेकिन एक कवि ने संसार के सत्य को सटीक बयान किया है
‘ कोई तन दुखी कोई मन दुखी, कोई धन बिन रहत उदास, थोड़े थोड़े सब दुखी, सुखी राम को दास।हिंदी फिल्मों में भी इसी सत्य का ढोल पीटा गया है।
गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी ने वर्षो पहले लिखा था ,’राही मनवा दुःख की चिंता क्यो सताती है, दुःख तो अपना साथी है।
सुख है एक छाँव ढलती आती है, जाती है, दुःख तो अपना साथी है। गलत नही कह रहे ये गीतकार साहब आप खुद ही देख लीजिए हमारे दिन की शुरुआत चाय के साथ अखबार पढ़ने से होती है।
अखबार अपने आप में दुखी होने का पूरा सामान लिए होते हैं। किसी लेखक की रचना अखबार में छप गई तो दुखी खुद की नही छपी तो दुखी।
एक लेखक जी सिर्फ अखबारों के पन्ने काले कर रहे है उससे दुखी। उन्होंने इतना लिखकर किताब नही छपवाई तो दुखी। किसी की बीसियों किताबे छप गई तो दुखी।
कोई मुख्य अतिथि बन कर तो कोई न बनकर दुखी है। अब कोई वक्त का मारा मंदिर चला गया तो हम दुखी होते हैं। तो कहीं किसी के मस्जिद से जाने पर दुखी हो जाते है।
चुनावी दौर में कोई किसी के टिकट कटने से दुखी है तो कोई किसी के टिकट मिलने से दुखी है।
कोई हार गया तो हम दुखी होते हैं तो किसी को जीता कर भी हम दुखी ही होते हैं । सार तो यह है की बिना दुखी हुए हम जी ही नही सकते।
दुख हमारे जीवन मे प्राणवायु की तरह काम करता है। दुख के अपने-अपने कारण है। कुछ देर रात तक जाग कर दुखी है तो कोई भला आदमी सुबह जल्दी उठकर भी दुखी होता है।
कोई व्यापारी लेन-देन का हिसाब ना कर पाने पर दुखी है तो कोई हिसाब करके वापिस उगराही ना होने से दुखी है। जनता किसी नेता या पार्टी पर विश्वास करके दुखी है तो किसी नेताजी पर समय रहते विश्वास ना करके दुखी है।
इस देश में बिना मांगे सलाह देना सनातनी परंपरा है यदि सलाह मान ली तो दुखी सलाह ना मानी तो भी दुखी।
कुछ भोले व भले आदमी सत्य बोल कर परेशान है। दुनिया भर के धर्म ग्रंथ कहते हैं की कोई भी झूठ बोल कर कभी भी सुखी नहीं हो सकता।
इसमे एक बीच का रास्ता निकाला गया है सत्य परेशान हो सकता है लेकिन पराजित नही । सीधी सी बात है जब तक सफलता नही मिलती दुखी होते रहे।
दुख पर चिंतन कर शोध करने वालो का कहना है आदमी दुखी होने के लिए अपने पुराने अच्छे समय को याद कर करके ज्यादा दुखी होता है।
चलिए आप भले ही हमारे कहने से दुख रूपी अनमोल और सर्वव्यापी तत्व को न पहचानें परन्तु गुरु नानक देव की वाणी को तो किसी भी सूरत में नकार नहीं सकते हैं जिन्होंने कहा था कि ‘ नानक दुखिया सब संसार’।
तो भाईयों अगर आप जीवन का वास्तविक सुख लेना चाहते हैं तो वह आपको दुखी होने पर ही मिलेगा।
आचार्य ज्योति मित्र
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