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Neeraj Joshi
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घर-घर गूंजे अमर शहीद बीरबल सिंह जीनगर अमर रहे के नारे
बीकानेर, (samacharseva.in)। जीनगर समाज के प्रथम शहीद, अमर शहीद बीरबल सिंह जीनगर की 74वीं पुण्यितिथि पर मंगलवार 30 जून को गोपेश्वर बस्ती में श्रद्धांजलि सभा आयोजित की गई। साथ ही बस्ती के जीनगर के समाज के लोगों के घरों में शहीद बीरबल सिंह को श्रद्धांजलि दी गई।
इस अवसर पर शहीद बीरबल सिंह जीनगर की के तैल चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित कर श्रद्धा सुमन अर्पित किए। घर घर में अमर शहीद बीरबल सिंह जीनगर अमर रहे के नारे लगाये गए। जीनगर समाज के भामाशाह मदनलाल जीनगर, समाज संस्था के पूर्व अध्यक्ष ताराचंद सिरोही (जीनगर), मीना जीनगर, जुगल किशोर जीनगर, करण जीनगर, नवीन जीनगर, रिद्धि जीनगर, सिद्धि जीनगर, पूनम जीनगर, नियति जीनगर आदि बच्चों ने भी शहीद को श्रद्धांजलि अर्पित की।
वक्ताओं ने कहा कि शहीदों के जीवन से प्रेरणा लेकर हमें देश की सेवा तथा समाज के विकास का काम करना चाहिये। वक्ताओं के अनुसार अमर शहीद बीरबल सिंह जीनगर ने समाज में चेतना की जो लौ जलाई है उसे हमेशा रोशन रखा जाएगा।
तिरंगा यात्रा के दौरान हुए शहीद बीरबल
जीनगर समाज के वीर सपूत जीनगर बीरबल सिंह ढालिया का जन्म रायसिंहनगर (श्रीगंगानगर) में जीनगर परिवार में हुआ। बीरबल सिंह बचपन से ही देश प्रेमी थे। 1942 के आजादी के आंदोलन के दौरान बीरबल सिंह बीकानेर प्रजा मंडल के सदस्य थे।
तब आंदोलन के दौरान बीरबल सिंह ने राज्यादेश की अवहेलना कर 30 जून को रायसिंह नगर में तिरंगा यात्रा निकाली आप जलूस के आगे तिरंगा हाथ मे लेके चल रहे थे। विरोधियों ने बीरबल सिंह की भुजा पे लाठियों का वार किया। गोलियों की बौछार हुई। 3 गोलियां बीरबल सिंह की जांघ में लगी।
इस प्रकार 30 जून 1946 को बीरबल सिंह ने देश के लिये अपने प्राणों की आहुति दे दी। शहीद होते समय भी उनके मुंह से समाज और देश के लिए अंतिम शब्द ये ही निकले थे “जाने ना पाये तिरंगे झंडे की शान, चाहें चली जाए मेरी जान”।
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