जल की हर एक बूँद को संरक्षित करने का समय
– डॉ. ऋचा पन्त
बीकानेर, (समाचारसेवा)। जल की हर एक बूँद को संरक्षित करने का समय,प्रकृति से हर पल कर रहे खिलवाड़, जननी को बस चाहिए थोड़ा सा लाड़-दुलार, सिर्फ सुविधाओं के बारे में सोचकर चलने से, आने वाली पीढियों को होगा संकट अपार, एक नन्हें से वायरस ने चेताया है अभी, आगे क्या हो अंदाज़ा लगाना है मुश्किल, मात्र ईको-फ्रेंडली जीवनशैली से ही स्थितियों में हो सकता है सुधार।
विश्व पर्यावरण दिवस (05 जून) पर सन्देश
जिस प्रकार राजा भगीरथ अपने पूर्वजों के तारण के लिए गंगा मैय्या को इस धरती पर लेकर आये, ठीक उसी प्रकार बीकानेर ज़िले के तारण या यूँ कहें कि संपूर्ण विकास के लिए महाराजा गंगासिंह जी इंदिरा गाँधी नहर के पानी के माध्यम से गंगा मैया को इस मरू-प्रदेश में लेकर आये।
इसे महाराजा गंगासिंह जी की दूर-दृष्टि ही कहेंगे जिसमें उन्होंने जल के महत्व को समझते हुए इस मरू-भूमि की काया ही पलट कर रख दी। धीरे-धीरे इस क्षेत्र में कृषिक्षेत्र बढ़ा और हरियाली छाने लगी। किन्तु समय के साथ-साथ जिस प्रकार जनसँख्या वृद्धि का जैसा प्रभाव अन्य क्षेत्रों में पड़ा, ठीक उसी प्रकार पेय-जल और सिंचाई हेतु जल की आपूर्ति यहाँ भी कम पड़ने लगी।
इसका एक कारण जनसँख्या तो है ही, किन्तु साथ साथ लोगों की जल-संरक्षण की आदतों में आया बदलाव भी है। इस वर्ष 68 दिन की नहरबंदी ने शहर और ग्रामीण इलाकों में पानी का हाहाकार मचा दिया, सोचिये अगर वर्ष-दर-वर्ष यह अवधि बढ़ती रही तो क्या स्थिति होगी।
पूर्व में जब इस मरुभूमि में जल का सर्वथा अभाव था, उस समय एक-एक बूँद को बचाकर रखने की कोशिश की जाती थी, उदहारण के रूप में पहले लोग परात में बैठकर नहाते थे, फिर उस जल में कपड़े धो लेते थे और बचे हुए जल को पौधों में डाल देते थे।
किन्तु आज परिस्थितियां भिन्न हैं, आज के परिप्रेक्ष्य में घरों में इस्तेमाल होने वाले उपकरणों जैसे वाशिंग मशीन, पानी का फ़िल्टर आदि से जल की बहुत अधिक बर्बादी हो रही है। अकेले RO वाटर फ़िल्टर से ही 2 से 3 लीटर साफ़ पानी प्राप्त करने के एवज़ में 7-8 लीटर पानी बर्बाद हो जाता है, तो सोचिये हर दिन, हर हफ्ते, हर साल हम कितना पानी बर्बाद कर रहे हैं, जिसकी हमें सुध ही नहीं है।
साथ ही, चलते हुए नल में बर्तन और गाड़ियां साफ़ करने से भी बहुत अधिक जल बर्बाद होता है तथा पानी की निकासी भी सीधे नालियों में कर दी जाती है।
कुछ सुझाव-
- घरेलु स्तर पर सर्वप्रथम, RO वाटर फ़िल्टर से निकलने वाले पानी को एकत्रित करने का प्रबंध करें, तथा इस पानी को कपड़े धोने या पौधों की सिंचाई हेतु उपयोग करें।
- बर्तन और गाड़ियों को धोने के लिए बाल्टी में पानी भरकर प्रयोग करें। यह बेहद ज़रूरी है, और अपने अनुभव के आधार पर मैं ये कह सकती हूँ कि पानी भरकर प्रयोग करना बेहद सुविधाजनक है, और इससे लगभग 60 प्रतिशत पानी की बचत की जा सकती है।
- घर बनवाते समय इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि घर से निकलने वाले पानी सीधे नालियों में न जाकर एक टैंक में जाए, जहाँ पत्थर, बालू, मिटटी की सतहों से गुजरने के बाद वह फिर से कपड़े और बर्तन धोने जैसे कार्यों में प्रयुक्त हो सके।
- साथ ही, वर्षा जल संरक्षण के लिए भी छतों पर टाइल्स लगाकर उस जल को भी उसी टैंक में संरक्षित कर सकते हैं।
- ग्लोबल वार्मिंग जैसी समस्या से वर्षा की कमी न हो, इसके लिए हर व्यक्ति को संकल्प करना होगा कि कम से कम पांच पेड़ अवश्य लगाएं और उनकी नियमित देखभाल भी करें।
दूसरा प्रकृति का सबसे बड़ा शत्रु है प्लास्टिक, जो हमारे जीवन का अभिन्न अंग बन चुका है। घर में लगने वाले PVC पाइप हों चाहे पानी की टंकी, बर्तन हों चाहे सामान रखने के डब्बे भी प्लास्टिक के ही अधिकतर प्रयोग किये जा रहे हैं। प्लास्टिक यह भी हानिकारक है, किन्तु इसके प्रयोग की अवधि (लाइफ) अधिक होने से इसके नुक्सान को कम माना जा सकता है।
किन्तु प्रतिदिन इस्तेमाल किये जा रहे सिंगल-यूज़ प्लास्टिक से पर्यावरण को बहुत अधिक हानि हो रही है। सिंगल-यूज़ प्लास्टिक का अर्थ है कोई भी प्लास्टिक जिसे हम एक बार इस्तेमाल करके फेंक देते हैं, जैसे- कोल्ड-ड्रिंक और सोडा की बोतलें, डिस्पोजेबल बर्तन, पॉलिथीन, पैकिंग में प्रयोग की गयी प्लास्टिक आदि।
इस तरह के प्लास्टिक के प्रबंधन के लिए 3R रिड्यूस (कम प्रयोग करना), रीयूज़ (दोबारा प्रयोग करना) और रीसायकल पर बल देने की आवश्यकता है। इसके लिए सिंगल-यूज़ प्लास्टिक जैसे बोतलों और पॉलिथीन को अन्य कार्यों जैसे गार्डनिंग आदि में उपयोग कर सकते हैं और प्लास्टिक को रीसायकल करने के उद्देश्य से कबाड़ वाली दुकानों तक पहुँचाना श्रेयस्कर है।
ये सभी सुझाव शुरुआत में कुछ जटिल अवश्य लग सकते हैं, किन्तु आने वाले समय में यही जीवनशैली हमें पीढ़ियों को हस्तांतरित करनी होगी, अन्यथा विषम जल और पर्यावरण संकट उत्पन्न हो जायेगा। इस विश्व पर्यावरण दिवस पर आईये प्रकृति के प्रति कृतज्ञता का भाव रखते हुए अपनी जीवनशैली में बदलाव लाते हुए उसे ईको-फ्रेंडली बनाने का संकल्प लें।
– डॉ. ऋचा पन्त
विषय विशेषज्ञ, खाद्य एवं पोषण
कृषि विज्ञान केंद्र, लूणकरनसर
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