NEERAJ JOSHI बीकानेर, (समाचार सेवा)। मोहम्मद इकबाल भक्तों को करवा रहा है बप्पा के कई रूपों दर्शन, शहर में गणेश महोत्वस का दौर है। हर कोई भगवान गणेश को अपने-अपने तरीके से पूज रहा है।
लक्ष्मीनाथ घाटी इलाके में पानी के टंकी के पास के निवासी मोहम्मद इकबाल देवडा माचिस बॉक्स कवर के संग्रहकर्ता हैं।
इकबाल ने अपने 11 हजार माचिस कवर कलेक्शन में से भगवान गणेश के चित्रों वाले माचिस कवर निकालकर रखे हैं और वह अपने दोस्तों को बप्पा के विभिन्न रूपों के दर्शन करवा रहा है।
पेशे से मेहनत मजदूरी के काम में लगा इकबाल पिछले 10 सालों से माचिस बॉक्स का संग्रह कर रहा है।
उसके पास ग्यारह हजार से अधिक देशी-विदेशी माचिस का कलेक्शन है। उसके पास गोल माचिस, लकडी. माचिस, लोहे की माचिस एवं विभिन्न प्रकार की थीम वाइज माचिस बॉक्स है।
इकबाल बताते हैं कि माचिस का आविष्कार 1827 को ब्रिटेन के एक वैज्ञानिक जॉन वाकर ने किया।
भारत में विदेशी माचिस का निर्माण 1895 में तथा देशी माचिस का निर्माण 1927 में अहमदाबाद में शुरू किया गया।
विभिन्न भाषा में माचिस
इकबाल बताते हैं कि देश विदेश में माचिस को विभिनन नामों से पुकारा जाता है। हिन्दी में माचिस को दिया सलाई कहते हैं।
इसी प्रकार बांगला-देश लाई नेपाली-मने सलाई तमिल-पिति कशमीरी-मदक डब्यू मराठी-कडयाती पेटी कहते हैं।
साथ ही माचिस को तेलगु-में अगिनपुतल, गुजराती-दिवासली, असामिया-जुड़शला, पंजाबी-तीलीपतीला, अरबी-केड्रिला, जर्मन-सेल्जेन तथा मेड्रीन (चीन) में यांगहो कहा जाता है।
दो पैसे में मिलती थी माचिस
इकबाल बताते हैं कि 1940 में जो माचिस दो पैसे में मिलती थी वही माचित 1950 में 5 पैसा, कीमत 1940 में 2 पैसा, 1960 में 10 पैसा,
1970 में 15 पैसा, 1980 में 25 पैसा, 1994 में 50 पैसा, 2000 में 75 पैसा, 2008 में 01 रूपीया तथा 2021 से 02 रुपये हो चुकी है।