Home MGS UNIVERSITY BIKANER इतिहासकार गलत लिखें तो पीढ़ियां भोगती हैं विष दंश – रवि भट्ट

इतिहासकार गलत लिखें तो पीढ़ियां भोगती हैं विष दंश – रवि भट्ट

If historians write wrong, generations suffer poison sting - Ravi Bhatt

बीकानेर, (samacharseva.in)। इतिहासकार गलत लिखें तो पीढ़ियां भोगती हैं विष दंश – रवि भट्ट, इतिहासकार एवं स्तम्भ लेखक रवि भट्ट ने कहा कि देश में इंजीनियर, डॉक्टर, साहूकार आदि की गलती का खामियाजा कुछ सौ या हजार लोग भोगते हैं किन्तु इतिहासकार गलत लिखता है तो इसका खामियाजा पीढ़ी दर पीढ़ी भोगा जाता है और हिन्दू मुस्लिम का मसला इसका ज्वलंत उदाहरण है।

If historians write wrong, generations suffer poison sting – Ravi Bhatt

श्री भट्ट शुक्रवार को महाराजा गंगासिंह विश्वविद्यालय में इतिहास विभाग द्वारा आयोजित राष्ट्रीय वेबिनार में ‘‘डायनेस्टिक इवोल्युशन ऑफ द नवाब्स ऑफ लखनऊ‘‘ विषय पर मुख्य अतिथि एवं वक्ता के रूप में व्याख्यान दे रहे थे। उन्‍होने अवध के राजनैतिक पहलू से हटकर सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक और कलात्मक पक्षों को विस्तारपूर्वक रखा।

Dr. Meghna Sharma

प्रोग्रामको-ऑर्डिनेटर डॉ. मेघना शर्मा ने बताया कि वेबिनार में 300 से अधिक पंजीकरण हुए जिनमें देश-विदेश से इतिहास प्रेमियों ने भाग लिया और प्रश्न भी पूछे। मुख्‍य अतिथि भट्ट ने कहा कि ऐसा माना गया है कि लखनऊ का नवाबी युग संस्कृति का स्वर्णिम युग रहा है। किन्तु हमें इसमें कुछ अन्य पहलू भी दिखाई देते हैं।

उन्होंने बताया कि लखनवी पुलाव, कबाब और पहनावे में अचकन विश्व प्रसिद्ध रहा है। भट्ट ने कहा कि हिन्दुस्तान के मशहूर शायर मिर्जा गालिब भी भ्रष्टाचार का शिकार हुए थे जब नवाब नसीरूददीन की शान में लिखे एक कशीदे की एवज में 5 हजार रूपये का पुरस्कार मिर्जा गालिब तक कभी नहीं पहुंच पाया। उन्‍होंने कि अवध तत्कालिक भारत का सबसे समृद्ध नगर या प्रांत था और यह वहां के नवाबों की धर्मनिरपेक्षता के कारण ही संभव हो पाया।

उन्होंने अवध में घटित एक वाकिये पर प्रकाश डालते हुए बताया कि जब कट्टरपंथी जिहादियों ने हनुमानगढी पर आक्रमण किया तब नवाब ने मुस्लिम होते हुवे भी जिहादियों से हनुमानगढी की रक्षा की। उन्होंने बताया कि नवाबों ने हिन्दु एवं मुस्लिम दोनों धर्म के लोगों के साथ सद्भाव रखा और होली के त्यौहार पर वे लगभग 5 लाख रूपये तक का धन व्यय करते थे।

बीकानेर से अवध के सम्पर्क के बारे में उन्होंने बताया कि जब नवाब वजीर अली शाह ने अंग्रेजों से अवध को मुक्त करवाने के लिए इरान से सम्पर्क साधा था उस समय अवध से भेजे गए धन को बीकानेर की सीमा में बीकानेर के राजा ने सुरक्षा एवं सेना प्रदान की थी। 1857 की क्रांति पर प्रकाश डालते हुए भट्ट ने बताया कि उस समय अंग्रेजों के विरूद्ध अपनी सीमा की सुरक्षा की जो युद्ध नीति नवाबों द्वारा अपनाई गई थी वह ना केवल भारत बल्कि पूरे विश्व के लिए अनुकरणीय रही।

भट्ट ने भाषा की समृद्धता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि लखनवी भाषा में अरबी, तुर्की, फारसी, पुर्तगाली एवं हिन्दी के शब्दों का मिश्रण देखने को मिलता है। उन्होंने उर्दू भाषा के विषय में कहा कि यह ‘‘रिक्ता‘‘ नाम से जानी जाती थी उसकी एक विधा ‘‘रेक्ती‘‘ अपने काल में आलोचना का विषय रही। उन्होंने बताया कि अवध के उमर खय्याम की रूबाईयों से प्रेरित होकर ही हरिवंश राय बच्चन ने ‘‘मधुशाला‘‘ की रचना की।

Prof. V.K. Singh

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. विनोद कुमार सिंह ने कहा कि इतिहास सामाजिक विज्ञान के विषयों में एक ऐसा गंभीर विषय है जो अपनी व्यापकता और सभी विषयों से एक कड़ी के रूप में जुड़ा हुआ है। प्रो. सिंह ने कहा कि लखनऊ के इतिहास की भारत के इतिहास में एक समृद्ध पृष्ठभूमि रही है जिसमें शोध के अनेक आयाम हैं। प्रोग्राम को-ऑर्डिनेटर डॉ. मेघना शर्मा ने

शर्मा ने बताया कि कार्यक्रम में डॉ. अनिला पुरोहित, डॉ. एस. एस. यादव, डॉ. सुखाराम, डॉ. उषा लामरोर, डॉ. शारदा शर्मा, भरतपुर से डॉ. सतीश त्रिगुणायत, दिल्ली से डॉ. अनिल कुमार, डॉ. संदीप सिंह मुंडे, डॉ. बसंती हर्ष, डॉ. अशोक बिश्नोई सहित अनेक शोधार्थी एवं विद्यार्थी जुडे़।