Home SAHITYA GATIVIDHI डॉ. मनमोहन सिंह यादव के राजस्थानी कथा संग्रह ‘‘पड़खाऊ’’ का हुआ लोकार्पण

डॉ. मनमोहन सिंह यादव के राजस्थानी कथा संग्रह ‘‘पड़खाऊ’’ का हुआ लोकार्पण

Dr. Manmohan Singh Yadav inaugurated Rajasthani story collection "Pardakhau"

– राजस्थानी भाषा मान्यता में हम हो रहे पड़खाऊ – भाटी

बीकानेर, (समाचार सेवा)। डॉ. मननोहन सिंह यादव के लिखेराजस्थानी कथा संग्रह ‘‘पड़खाऊ’’ का विमोचन मंगलवार को पूर्व काबिना मंत्री देवीसिंह भाटी के मुख्‍य आतित्‍य में हुए समारोह में किया गया।

इस अवसर पर पूर्व मंत्री भाटी ने कहा कि राजस्थानी भाषा की मान्यता में बड़े स्तर पर दस्तावेजीकरण तो हो रहा है किंतु प्रत्यक्ष परिणाम सामने आने में देरी क्यों हो रही है, यह आज का प्रमुख प्रश्न है? उन्‍होंने कहा कि हम अपनी ही भाषा को बोलने में संकोच करते हैं, जो बोलना चाहते हैं वो मान्यता की आवाज बुलन्द कर रहे हैं लेकिन वर्षों से जुबान का ताला नहीं खुला।

लेखक डॉ. मनमोहन सिंह यादव ने कहा कि साहित्य उनके जीवन में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। विशिष्‍ट अतिथि नोखा विधायक बिहारीलाल विश्नोई ने मनमोहनसिंह यादव के राजस्थानी साहित्य को दिए योगदान को मूल्यवान बताया। बिश्‍नोई ने कहा कि अब आंदोलन से मान्यता की बात करनी आवश्यक हो गई है।

नगर विकास न्यास के पूर्व अध्यक्ष महावीर रांका ने कहा कि ऐसे आयोजन न सिर्फ भाषा व संस्कृति में योगदान देते हैं बल्कि युवा पीढ़ी को साहित्य के प्रति तत्पर करने में भी आगे रहते हैं। समारोह में महाराजा गंगासिंह विश्‍वविधालय बीकानेर की राजस्‍थानी विभाग की प्रभारी, कवयित्री कथाकार डॉ. मेघना शर्मा ने कहा कि साहित्य समाज का आईना है और साहित्य संस्कृति की जड़ से गहरे तक जुड़ा हुआ है।

डॉ. मेघना ने कहा कि राजस्थानी मान्यता के साथ-साथ राजस्थानी दूसरी राजभाषा का दर्जा देने की बात युवा शक्ति को समझाना आवश्यक है, क्योंकि यही वही पीढ़ी है जो भाषा आंदोलन को आगे ले जाएगी। साहित्यकार गिरधरदान रतनू ने लोकार्पित पुस्तक पर विस्तृत टिप्पणी करते हुए इसे लोक से जुड़ा बताया और कहा कि ग्रामीण संस्कृति के साथ-साथ वर्तमान सवालों की पड़ताल करते हुए पड़खाऊ राजस्थानी साहित्य को एक अनमोल देन साबित होगा।

हिन्दी विश्वभारती अनुसंधान परिषद के मानद सचिव डॉ. गिरिजाशंकर शर्मा ने अपने उद्बोधन में ऐसी साहित्यिक गतिविधियों को वर्तमान युवा पीढ़ी का पोषक बताया।  मुख्य वक्ता भवंरसिंह सामौर ने कहा कि यह संग्रह अपने आप में अनूठा कार्य है, जो राजस्थानी संस्कृति को तो पोषित करता ही है।

साथ ही साथ मान्यता आंदोलन की आवाज इन मायनों में बुलन्द करता है कि लगातार रचित साहित्य से भाषा का उत्थान एवं संवर्धन दोनों ही संभव हो सकता है।  मंच संचालन ज्योति प्रकाश रंगा ने किया।