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ऊंट बतावे लम्बाई, साफो रौब दिखावे…

Lokesh Safa

बीकानेर, (samacharseva.in)। ऊंट बतावे लम्बाई, साफो रौब दिखावे, गहणा पेरोड़ी नारी ने देखण ने, देश-विदेशी आवे। सही है। वर्तमान में बीकानेर में चल रहे ऊंट उत्‍सव में देश विदेश के पर्यटकों को यही सब देखनें को मिलने वाला है।

इसका कारण भी है कि वर्तमान पी‍ढी के युवा संस्कृति कर्मी लोकेश व्यास राजस्थान की अद्भूत संस्कृति बचाने में लगे है। केसरिया पगडी बनी रहे, पगड़ी सम्भाल जट्टा पगड़ी सम्भाल इस प्रकार की कविता अथवा सिनेमा के लोकप्रिय गीत हमें अपनी पाग-पगड़ी और देश की अद्भूत संस्कृति का महत्‍व बताते हैं। बीकानेर के 18 वर्षीय युवा संस्कृति कर्मी लोकेश व्यास पिछले 8 वर्षो से पाग-पगड़ी, साफा बांधने का कार्य कर रहे है।

विभिन्न प्रकार के साफे बांधने की कला में माहिर व्यास ने अभी तक हजारों साफे निःशुल्क बांध दिये। उनका कहना है, मेरा उद्देश्य केवल समाज में साफे की साख बचाएं रखना है। व्यास ने अपनी इस कला का श्रेय अपने गुरूपिता गणेश लाल व्यास को दिया। किकाणी चौक स्थित व्यास परिवार पिछले 4 दशक से अधिक समय से समाज में निःशुल्क साफा बांधने का कार्य कर रहा है।

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व्यास ने बताया कि गणगौर महोत्सव में ईसर व भाये के लिए, श्री कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर लड्डू गोपाल के व विभिन्न अवसरों पर विभिन्न प्रकार के साफे भी बांधते है। व्‍यास के अनुसार मुकुट हो या पाग-पगड़ी यह हमेशा से ही मनुष्य की आन-बान-शान की प्रतीक कहलाती थी है और रहेगी।

परखनली में साफा संस्कृति

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संस्कृति कर्मी युवा लोकेश व्यास ने बताया की राजस्थान कि संस्कृति को बचाने के लिए वह कार्यक्रमों में अतिथियों को परखनली में साफे डाल कर भेंट करते है। परखनी में ऐसे साफे केवल 1 सेंटीमीटर से भी कम की परिधी पर बंधे होते है। अतिथि की जितनी बार परखनली पर नजर जायेगी उतनी बार वह राजस्‍थान की साफा संस्कृति को याद करेगा।

ये है पाग, पगड़ी, पेचा, साफा संस्कृति

मरूप्रदेश में पाग, पगड़ी, पेचा, साफा और फेंटा यह सभी शब्द एक दूसरे के पर्याय है। बस सिर पर बांधने की शैली एवं उत्सवों के आधार पर इनका नामकरण किया गया। पाग, पगड़ी एवं पेचा मरूप्रदेश की मूल संस्कृति के शब्द है जबकि साफा एवं फेंटा पश्चिमी संस्कृति के शब्द है। पाग-पगड़ी  को उश्णीश या शिरोवेष्टनः आदि शब्दों से भी पुकारा जाता है। इन पाग-पगड़ी को सिर पर पेच देकर बांधने से पेचा नाम का नामकरण हुआ। ‘पाग’ या ‘पगड़ी‘ दोनो शब्द राजस्थान की संस्कृति में विशेष महत्व रखते है।  

कवि भरत व्यास कहते है

यह मुकुट हमें किस्मत युग के, वीरों की याद दिलाता है

तू संज्ञाहीन रंगों में,भी रक्त ऊफनसा जाता है

सब जग में धाक रहे, मानवता भी आवाक रहे

सबसे ऊंचा मस्तिष्क इसका सबसे ऊंची पहचान रहे केसरिया पगडी बनी रहे, केसरिया पगडी बनी रहे।

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