पूर्वागृहों को समाप्त कर ही जानसकते हैं वेदों को – चंचला पाठक
NEERAJ JOSHI बीकानेर, (समाचार सेवा)। लेखिका डॉ. चंचला पाठक ने कहा कि वेद को पढना है या जानना है तो हमें ऋषि दृष्टि को समझना होगा। हमारे पूर्वागृहों को समाप्त करना होगा तभी हम वेद को जान सकते है।
डॉ. पाठक रविवार को अजित फाउण्डेशन की मासिक संवाद श्रृंखला के तहत संस्था सभागार में आयोजित वेद की सामान्य अवधारणा और प्रचलित भ्रांतियां विषय पर अपने विचार रख रही थीं।
उन्होंने कहा कि वेदो की प्रारम्भिक भाषा बहुत ही सरल है। वैदिक संस्कृत के बोल हमारी बोलियों से काफी मिलते-जुलते है। वेद हमारे लिए इसलिए महत्त्व है कि जब हम बौद्धिक बात करते है तो उसके उत्तर एवं महत्त्व हमें तर्कपूर्ण वेद में मिलते है।
वेद छंदमय है। चाहे वह काव्य में लिखा गया हो या गद्य में दोनो जगहों पर छंदों का उपयोग पाया गया है। डॉ. चंचला के अनुसार वेद को जब आप पढते है तो उसमें भौतिकवाद एवं आध्यात्मिकवाद दोनो देखने को मिलेगें।
भौतिकवाद की दृष्टि से भौतिकवाद मिलेगा वहीं दूसरी आध्यात्मिक दृष्टि से आपको आध्यात्म मिलता है। कार्यक्रम की अध्यक्ष्यता कथाकार एवं वरिष्ठ साहित्यकार मालचंद तिवाड़ी ने की। उन्होंने वेदो के इतर रामायण एवं महाभारत जैसे महाकाव्यों की बात करते हुए कहा कि इन महाकाव्यों ने भी वेदो को समझने के लिए काफी अच्छा कार्य किया है। डॉ. अजय जोशी ने आभार ज्ञापित किया।
श्रोताओं ने प्रश्न पूछकर जिज्ञासाएं शांत की
कार्यक्रम के दौरान जुगल किशोर पुरोहित, दीपचंद सांखला, डॉ. अजय जोशी एवं कमल रंगा ने प्रश्न पूछकर अपनी जिज्ञासाएं शांत की। कार्यक्रम के आरम्भ में संस्था समन्वयक संजय श्रीमाली ने संस्था की गतिविधियों पर प्रकाश डाला।
कार्यक्रम में कमल रंगा, राजेन्द्र श्रीमाली, डॉ. अजय जोशी, महेश उपाध्याय, अमन पुरोहित, गिरिराज पारीक, योगेन्द्र पुरोहित, मो. फारूक, जुगल पुरोहित, मनीष जोशी, चन्द्रशेखर सेवग, विनीता शर्मा, डॉ. कृष्णा आचार्य, हरिगोपाल हर्ष, गणेश रंगा, सपना ओझा, पूजा गोदारा, दिनेश पुरोहित, योगेष हर्ष, शोभा जोशी, हनुमान कुशवाह, दिनेश पुरोहित उपस्थित रहे।
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