करोडों की संपत्ति पर कब्जा करने की साजिश नाकाम!
बीकानेर, (समाचार सेवा)। करोडों की संपत्ति पर कब्जा करने की साजिश नाकाम। बीकानेर में महिला शिक्षा तथा महिला रोजगार को बढावा देने के उद्देश्य से स्थापित श्री बीकानेर महिला मंडल की करोड़ों रुपये की संपत्ति पर कब्जा करने की साजिश को सहकारिता विभाग ने लगभग नाकाम कर दिया है।
महिलाओं द्वारा संचालित इस संस्था के संविधान को बदलकर अधिकतर पुरानी सदस्याओं की सदस्यता समाप्त कर संस्था पर कब्जा कर लेने की प्रक्रिया को सहकारिता विभाग ने भी नकार दिया है।वर्ष 1949 में शुरू हुई इस संस्था में कुल 207 सदस्याएं थीं जिनमें बिड़ला घराने की मालकिन प्रियंवदा बिड़ला भी शामिल है।
इसकी संपत्ति को लेकर संस्था के मूल मालिकों के बीच अदालत में विवाद चल रहा है फिर भी संस्था की एक पूर्व पदाधिकारी ने गजेन्द्र सिंह व उनके पिता कानसिंह के साथ साजिश रचकर बिना साधारण सभा की बैठक बुलाए नई कार्यकारिणी का गठन कर लिया और संस्था पर अपना कब्जा कर लिया।
नगर के प्रतिष्ठित सेठ रामगोपाल मोहता ने महिलाओं को सहारा देने के उद्देश्य से जूनागढ़ के पीछे करीब नौ हजार वर्गगज जमीन अपनी बेटी रतन देवी दम्माणी के अनुरोध पर बीकानेर महिला मंडल को दे दी।
रतनदेवी दम्माणी के निर्देशन में शुरू में नामी घरानों की महिलाएं इसमें आर्थिक सहयोग देने के लिए सदस्य बनीं थी जिनमें प्रियंवदा बिड़ला के साथ कोटा की महारानी शिवकुमारी और बांगड़ समूह की महिलाएं भी शामिल थीं। इस संस्था ने महिला शिक्षा की अलख जगाकर हजारों महिलाओं को शिक्षित व समर्थ बनाया था।
राजस्थान सरकार के अनुदान से चलने वाली इस शिक्षण संस्था के अधिकतर सदस्य बीकानेर से बाहर रहते हैं। इसी का फायदा उठाकर संस्था की पूर्व कर्मचारी लता रानी गोस्वामी ने ही इस संस्था के साथ घात कर बिना मूल ट्रस्टियों को विश्वास में लिए नए सदस्यों को शामिल कर लिया।
साथ ही गजेन्द्र सिंह व उनके पिता कानसिंह राठौड़ के साथ मिलीभगत कर संस्था को डेढ़ करोड़ रुपये लेकर उन्हें सौंप दिया। इसकी रिकॉर्डिंग भी सामने आ गई है। इसके लिए कानसिंह की पत्नी ओम कंवर को अध्यक्ष और बेटे गजेन्द्र सिंह की पत्नी श्रीमती प्रेम कंवर को मंत्री बनाकर कब्जा कर लिया।
इन दोनों सास-बहू की आड़ में कानसिंह के पुत्र गजेन्द्र सिंह ने संस्था पर अपना अधिकार जमा लिया और जूनागढ़ के पीछे और आसानियों के चौक स्थित संस्था में अपनी व्यावसायिक गतिविधियां शुरू कर दी है जिससे इस संस्था से जुड़े हजारों लोगों के बीच यह चर्चा का विषय बन गया है।
प्रियंवदा बिड़ला को मृत्यु के 12 साल बाद डाक से भेजी सूचना
संस्था के संविधान में स्पष्ट प्रावधान है कि बिना साधारण सभा की बैठक बुलाए नीतिगत निर्णय नहीं लिए जा सकेंगे लेकिन इस पर कब्जा करने वालों ने जीवित और मृत सदस्यों के नाम डाक से लिफाफे भेजना बताकर संविधान में संशोधन कर लिया।
कागजी कार्रवाई की पूर्ति के लिए बैठक की सूचना प्रियंवदा बिड़ला को भी वर्ष 2016 में डाक द्वारा भेजना बताया गया है जबकि प्रियंवदा बिड़ला की मृत्यु 2004 में ही हो गई थी।सहकारी विभाग में जब संस्था के संविधान में संशोधन की सूचना भेजी गई तो जांच के बाद विभाग ने प्रस्ताव को नामंजूर कर दिया।
इससे संस्था पर कब्जा करने की सारी प्रक्रिया ही अवैध हो गई है। इस मामले में मूल मालिकों के वंशज मुंबई में रहने वाले राजेन्द्र मोहता से संपर्क किया गया तो उन्होंने आश्चर्य व्यक्त किया और कहा कि अभी तक यह मामला अदालत में विचाराधीन है तो इस संस्था में बदलाव नहीं किया जा सकता है।
वरिष्ठ पत्रकार श्री श्याम शर्मा की रिपोर्ट
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