व्यापारियों ने किया टाइगर का शिकार
पंचनामा : उषा जोशी, बीकानेर व्यापार उद्योग मंडल के दो गुटों में वर्चस्व की लड़ाई में कुछ व्यापारियों के हाथों टाइगर भी शिकार हो गए। सुनने में आया है कि जब कुछ व्यापारियों को एक बहादुर खाकीधारी साहब ने व्यापार मंडल की बैठक में जाने से रोका तो नाराज व्यापारी खाकीधारी की शिकायत लेकर टाइगर के पास पहुंच गए।
व्यापारियों का दुखड़ा सुन टाइगर व्यथित हो गए और एक व्यापारी के ही फोन से मौके पर तैनात खाकीधारी को हड़का दिया। टाइगर से सहानुभूति पाकर व्यापारी टाइगर के ऑफिस से बाहर आये और जिस व्यापारी के फोन से टाइगर ने अपने अधीनस्थ अधिकारी को फटकारा उसकी रिकार्डिंग सार्वजनिक करनी शुरू कर दी।
सुनते हैं कि मामले की जानकारी जब टाइगर को हुई तो उन्होंने पुन: उस व्यापारी को अपने ऑफिस में बुलाया, उसे थोड़ा चमकाया और उसके मोबाइल से वो रिकार्डिंग हटवा दी। दो गुटों में बंटे व्यापार मंडल की इस लड़ाई में खाकीधारी भी पिस कर रह गए। व्यापारियों ने टाइगर को भी इसमें फंसा लिया।
* हिंग लगे ना फिटकरी…
शहर के पास ऐसा थाना है जहां अपराध तो कम होते हैं मगर कमाई फिर भी तगड़ी होती है। साथ ही यहां नियुक्त थानेदार को यह कहने का भी मौका मिल जाता है कि साहब उनके लिये यहां अधिक काम नहीं है। वैसे इस क्षेत्र से जिप्सम के ओवरलोड ट्रक व ट्रेलर, बजरी के ओवरलोड ट्रक और तो और क्ले की ओवरलोड गाड़ियां खाकी के साये में निकलती है।
इलाके के थानेदारजी के खुश होने के लिये इतना ही काफी है मगर यहां के थानेदारजी है कि इसी बात का प्रचार करने में जुटे रहते हैं कि जी इस थाने में काम करने के लिये कुछ नहीं है। हालांकि थाने में कार्यरत कुछ लोगों की मानें तो थानेदारजी के भी दिखाने व खाने के दांत अलग अलग हैं। क्षेत्र के लोग थानेदारजी को खाकी का शातिर खिलाड़ी बताते हैं।
ये सीआई साहब भी घाट-घाट का पानी पिये हुए बताये जाते हैं। कईयों का पानी उतारना हो या किसी की आंखों में पानी लाना हो ये साहब अच्छी प्रकार जानते हैं। आला खाकीधारी भी सीआई साहब की कारीगरी को अच्छी प्रकार समझते हैं इसीलिये इनसे ऐसे ही काम लेते हैं जो और किसी के बस का नहीं होता है।
* मैं परेशां, परेशां, परेशां
अपने शहर के एक बहादुर थानाधिकारीजी पिछले एक साल से मैं परेशान, मैं परेशान, मैं परेशान की रट लगाकर सबके कान पका चुके हैं। इनके इस तकियाकलाम बन चुकी परेशानी से हर कोई परेशान हो रहा है। जबकि थानेदारजी जो अपने को परेशां बताते हैं पिछले एक वर्ष से शहरी थाने में आनंद ले रहे हैं।
कईयों ने तो कहा भी कि भाई इतने परेशान हो तो थाना छोड़ क्यू नहीं देते, मगर नहीं साहब तो जमे हुए भी हैं और अपने को परेशान भी बताये जा रहे हैं। वैसे सुना है थानेदारजी आये तो यहां आये तो गांव के किसी कमाई वाले थाने की थानेदारी करने के लिये मगर तब के टाइगर ने इन्हे शहर के थाने की कमान सौंप दी।
तब गांव का थाना पाने की जुगत में इनकी दाल नहीं गली थी। अब साहब दोनों हाथों से शहरी इलाके को समेटने में लगे हुए हैं और परेशानी का लबादा भी ओढ़े हुए हैं। भगवान इनकी परेशानी जल्द दूर करे, हम भी यही दुआ करते हैं।
* जिन्दगी है खेल कोई पास कोई फेल…
जांगळ देश बीकानेर में खाकी ने नया व्यापार शुरू कर दिया है। खाकीधारी व्यापार मंडल की बैठके हों या नगर निगम की साधारण सभा सब जगह लठ लेकर तैनात हो जाते हैं।
सबसे बड़ी बात यह है कि ये लठभांत खाकीधारी ना तो व्यापारियों को व्यापार मंडल की बैठक में शामिल होने देते हैं और ना ही नगर निगम के पार्षदों को साधारण सभा की बैठक में उपस्थित होने देते हैं।
कोई घुसने का प्रयास करता है तो ये उनसे पास मांगते हैं। व्यापारी को व्यापार मंडल की बैठक में जाने के लिये पास मांगा जाता है और पार्षद को नगर निगम की बैठक में शामिल होने के लिये भी पास दिखाना पड़ता है।
हंगामा होता है तो खाकी को बदनामी झेलनी पड़ती है।
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