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राजस्‍थान का सियासी संकट हल हो गया

Pilots forced to surrender due to strong siege of Gehlot

नीरज जोशी

बीकानेर, (samacharseva.in)। राजस्‍थान का सियासी संकट हल हो गया। इस संकट के हल होने का यदि पूरा श्रेय किसी को जाता है तो वो केवल और केवल मुख्‍यमंत्री अशोक गहलोत को जाता है। यह गहलोत की घेराबंदी ही रही कि सचिन पायलट को आलाकमान के सामने आत्‍मसमर्पण को मजबूर होना पड़ गया।

गहलोत ने अपना किला मजबूत रखते हुए पायलट व उसका समर्थन करने वाली भाजपा मंडली के षडयंत्र का पूरी तहर पर्दाफाश करने के लिये राजनीति, कूटनीति, कानूनी, जबानी, हर तहर से पायलट खेमे को घेरे रखा। यह जरूर है कि पायलट की मदद कर रहे भाजपा नेताओं को उनका स्‍थान दिखाने के प्रयास में गहलोत ने सचिन पायलट को उपमुख्यमंत्री और प्रदेशाध्यक्ष पद से हटाने, उनके समर्थक विधायकों को मंत्री पद से हटाने, पायलट को भी निक्‍कमा और नाकारा कहकर उसे खासी खरी-खोटी सुनाने में कोई गुरेज नहीं किया। यदि इस लडाई में गहलोत चारों और से हमलावर नहीं होते तो भाजपा मंडली पायलट को किसी ना किसी रास्‍ते से बरगलाने में सफल हो सकती थी।

चारों खाने से चित्‍त करने की ही रणनीति रही

यह गहलोत की दुश्‍मन को चारों खाने से चित्‍त करने की ही रणनीति रही कि उन्‍होंने जबानी, तुफानी और कानूनी चालें चलकर दुश्‍मन के बच निकलने के चारों और के रास्‍तों पर अवरोधक लगाकर ऐसी पटखनी दी कि सचिन पायलट व भाजपा मंडली को ना निगलते बना और ना उगलते। तब सचिन को कांग्रेस आलाकमान के सामने आत्‍मसमर्पण करने के अलावा अपनी भविष्‍य की राजनीति को बचाने का कोई रास्‍ता नजर नहीं आया। आज अशोक गहलोत के इस विशाल होम करते समय उनके हाथ भी जले होंगे मगर पार्टी की शुदि़ध के लिये एक विशाल होम के लिये यह सब जरूरी था।

गहलोत ने एक तीर से दो निशाने लगाए

गहलोत ने जो भी कदम उठाये वो पायलट व भाजपा मंडली के षडय्ंत्र को पर्दाफाश करने के लिये आवश्‍यक थे। आज लंबे एकांतवास के बाद अगर सचिन पायलट मीडिया के सामने कुछ बोलने का साहस कर पा रहे हैं तो यह भी गहलोत के कारण ही है यदि वे गहलोत के हमलों से सहमे नहीं होते तो भाजपा मंडली के शरण में जाकर अब तक अपना पूरा राजनीतिक केरियर बर्बाद कर चुके होते। गहलोत ने एक तीर से दो निशाने लगाकर पार्टी से बागी हुए विधायकों की रणनीति फेल कर दी तो अपनी ही पार्टी के भटके हुए विधायकों को भाजपा की ओर जाने से भी रोक लिया।

इस नई राजनीति के एक महीने के घटनाक्रम में अशोक गहलोत एक ऐसे विजेता बनकर सामने आये हैं जो किसी भी तरह के संकट, आपदा, आपात परिस्थितियों से पार्टी को बचाने का काम बखूबी कर सकते हैं। गहलोत का यह रूप देखकर प्रदेश की जनता भी अं‍चभित होने के साथ ही अब गहलोत पर और भरोसा करने लगी है। गहलोत ने जिस तरह से इस लडाई को लडा और जीता उसकी हर ओर तारीफ हुई है।

पायलट के कारण ही प्रदेश में दुबारा सत्‍ता में आई

पायलट पहले भी अपनी ही राजनीति चमकाने के प्रयास में जुटे रहे और अब भी वे यही काम कर रहे हैं। यह सही है कि सचिन पायलट ने प्रदेश कांग्रेस के अध्‍यक्ष पद पर रहते हुए पार्टी का काम किया। मगर यह ऐसा भी नहीं है कि कांग्रेस यहां सचिन पायलट के कारण ही प्रदेश में दुबारा सत्‍ता में आई हो या पायलट ने ही यहां गांव गांव में कांग्रेस की नींव डाली थी।

प्रदेश के लोगों का कांग्रेस को समर्थन देना ना देना का सिलसिला लंबे समय से चलता आ रहा है, इस सिलसिले में किरदार बदलते रहें हैं बस। हां गहलोत ने यह जरूर साबित कर दिया है कि वे कांग्रेसी हैं और कांग्रेस के लिये ही हैं। पायलट अब शायद ही इस बात का जवाद देना चाहेंगे कि यदि उन्‍हें अशोक गहलोत से कुछ नाराजगी थी तो उन्‍होंने भाजपा की शरण में जाकर क्‍यों गहलोत को घेरने की कोशिश की।  

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