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रहस्य और रोचकता अंत तक बरकरार रखना ही लघुकथा की आत्मा : नदीम

नदीम अहमद नदीम

एमजीएसयू के राजस्थानी विभाग में लघुकथा शिल्प पर संवाद कार्यक्रम आयोजित

बीकानेर, (समाचार सेवा)। रहस्य और रोचकता अंत तक बरकरार रखना ही लघुकथा की आत्मा : नदीम,लघुकथा के आकार का फलक बड़ी रचना जैसा आभास देने वाला होना चाहिए व व्यंग्य लघुकथा की मारक क्षमता को बढ़ाने का कार्य सम्पादित करता है ।

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लघु कथाकार नदीम अहमद नदीम को सम्‍मानित करती, डॉ. मेघना शर्मा

यह कहना था ख्यात लघुकथाकार नदीम अहमद नदीम का, वे महाराजा गंगा सिंह यूनिवर्सिटी के राजस्थानी विभाग द्वारा लघुकथा शिल्प पर आयोजित संवाद कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के तौर पर बोल रहे थे । उन्होंने कहा की लघुकथा की आत्मा को यदि ज़िंदा रखना है तो रहस्य और रोचकता को अंत तक क़ायम रखना आवश्यक है । उन्होंने सभी प्रतिभागियों के लिए अपना एक लघुकथा संग्रह अपनी ओर से भेंट करने की भी घोषणा मंच से की l

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लघुकथा शिल्प पर आयोजित संवाद कार्यक्रम को संबोधित करती डॉ. मेघना शर्मा

इससे पूर्व स्वागत भाषण में बोलते हुए विभाग प्रभारी डॉ. मेघना शर्मा ने कहा की लघुकथा कम से कम शब्दों में बड़े से बड़े सन्देश प्रसारित करने की क्षमता रखती है, वह सूक्ष्मता से सन्देशपरक होने के साथ साथ अधिक प्रभावी भी होती है ।

आयोजन प्रभारी डॉ. नमामीशंकर आचार्य ने बताया की संवाद कार्यक्रम के तुरंत बाद राजस्थानी लघुकथा लेखन प्रतियोगिता का आयोजन किया गया जिसमें विद्यार्थियों ने बढ़चढ़ कर भाग लिया, उन्होंने मंच से प्रतियोगिता के नियम और मुख्य वक्ता का परिचय पढ़कर सुनाया ।

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लघुकथा शिल्प पर आयोजित संवाद कार्यक्रम

उन्होंने बताया कि प्रतियोगिता में शामिल विद्यार्थियों की रचनाओं को विषय विशेषज्ञ द्वारा जंचवाकर विजेताओं को बाद में मंच से पुरस्कृत किया जाएगा ।

संयोजनकर्ता डॉ. गौरीशंकर प्रजापत ने कहा कि राजस्थानी लघुकथा में शीर्षक, शिल्प सभी में कसावट होती है और उसके माध्यम से साधारण मनुष्य का जीता जागता चित्र प्रस्तुत होता है ।

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लघुकथा शिल्प पर आयोजित संवाद कार्यक्रम

आयोजन में विभाग सदस्य राजेश चौधरी, डॉ.मनोज आचार्य, रामावतार उपाध्याय के अलावा विद्यार्थियों में छात्रसंघ उपाध्यक्ष कन्हैयालाल, अनु, प्रीती, अलका, संगीता, वीरेंद्र, पवन, दिनेश, उमा, भावना, प्रवीण, दिलीप आदि उपस्थित थे ।

विभाग के सदस्यों ने मुख्य वक्ता नदीम अहमद नदीम का सम्मान भी किया, अंत में धन्यवाद ज्ञापन डॉ. गौरीशंकर निमिवाल ने दिया ।

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