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शास्त्रीय गायिकी के बेताज बादशाह मास्टर मदन

Master Madan, the uncrowned king of classical vocals

बीकानेर, (समाचार सेवा) शास्त्रीय गायिकी के बेताज बादशाह मास्टर मदन, मेरी उम्र के मित्र मास्टर मदन का नाम जानते होंगे। आज 28 दिसंबर को इस भूले-बिसरे गायक की जयंती है। अपने ज़माने के जाने-माने ग़ज़ल और गीत गायक थे मास्टर मदन। शास्त्रीय गायिकी के बेताज बादशाह इनका जन्म: 28 दिसंबर 1927 को जालंधर, पंजाब में हुआ था।

मास्टर मदन एक ऐसे गायक-कलाकार थे जो 1930 के दशक में अपूर्व ख्याति अर्जित कर मात्र 15 वर्ष की उम्र में 1940 में इस दुनिया से रुखसत हुए। अपने जीवन में हालांकि उन्होंने कई गाने गाए होंगे मगर उनके गाये केवल 8 गानों की ही रिकॉर्डिंग हो पाई, जो आज उपलब्ध हैं।

इन गानों में भी मात्र दो गाने खूब लोकप्रिय हुए और मास्टर मदन की गायिकी को अमर कर गए। ये दो गाने हैं: “यूँ न रह-रह कर हमें तरसाइये” और “हैरत से तक रहा है।” आठ साल की उम्र में मास्टर मदन को  ‘संगीत-सम्राट’ कहा जाता था। मास्टर मदन के बारे में उनके एक प्रशंसक की ये पंक्तियाँ पढ़ने लायक हैं।

‘सिर्फ साढ़े चौदह साल जीने वाले उस कलाकार की तान, टीस की एक टेर है। एक कोमल, बाल्यसुलभ स्वर जिसमें हर पहर की पीड़ा है। उफ! कैसा आलाप! कैसे सुर! कैसा अदभुत नियंत्रण!’ मास्टर मदन की ख्याति और लोकप्रियता का अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि 1940 में जब एक बार गांधीजी शिमला गए थे तो उनकी सभा में बहुत कम लोग उपस्थित हुए।

बाद में पता चला कि ज्यादातर लोग मास्टर मदन की संगीत-सभा में गाना सुनने चले गए थे। ऐसी  प्रसिद्धि थी मास्टर मदन की। तेरह-चौदह वर्ष की आयु तक पहुंचते-पहुंचते मास्टर मदन का नाम और उनकी ख्याति भारत के कोने-कोने तक पहुँच चुकी थी। उनके जीवन का आखिरी संगीत-कार्यक्रम कोलकता में हुआ था।

उन्होंने राग बागेश्वरी में “विनती सुनो मोरी अवधपुर के बसैया” को भावविभोर और पूर्ण तन्मयता के साथ गाया। श्रोता मंत्र-मुग्ध हुए। उन्हें नकद पुरस्कार के अलावा शुद्ध सोने के नौ पदकों से सम्मानित किया गया। दिल्ली लौटने पर अगले तीन महीनों तक आकाशवाणी के लिए गाना जारी रखा।

इस बीच उनकी तबीयत खराब रहने लगी। ज्वर टूट नहीं रहा था। 1942 की गर्मियों में वे शिमला लौटे और 5 जून को उनकी मृत्यु हो गई। कहते हैं कि उस दिन शिमला बंद रहा और श्मशान घाट तक की उनकी अंतिम-यात्रा में हजारों की संख्या में उनके प्रशंसक शामिल हुए।

इस बात का सहज ही अंदाज लगाया जा सकता है कि अगर मास्टर मदन जवानी की उम्र तक भी जिंदा रहते, तो जाने उनकी गायिकी किस मुकाम तक उनको पहुंचा देती! अपनी अद्भुत और हृदयग्राही गायिकी की वजह से बालक मदन ‘मास्टर’ कहलाने लगा था।

-Shiben Raina

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