— कवि पृथ्वीसिंह बैनीवाल । बीकानेर, (samacharseva.in)।
करवाचौथ की यह व्रत कथा है, ये पतिव्रता धर्म सत्यकथा है।
पति की दीर्घायु का यह प्रतीक है, धर्म बल से मृत्यु पर जीत है।।
महिला अखण्ड सौभाग्य है, कथा में व्याप्त पति का भाग्य है।।
सप्त पुत्र और पिता साहूकार था, शानदार उसका व्यापार था।।
धर्म परायणा एक सुपुत्री थी, सेवाभाव भलाई की वो कत्री थी।।
कार्तिक कृष्णा चतुर्थी जब आई, सात बहु संग सेठानी भी आई।।
तीनों ने किया चौथ का व्रत, चंद्रोदय तक भूख सहनी थी शर्त।।
भोजनहित भाइयों ने बहन को, किया आग्रह था भोज करण को।।
चन्द्रोदय अर्ध्य दे भोजन करूं, तब तक मैं व्रत को अटल करूं।।
भाई बहन से प्रेम बहुत करते थे, बहन को भूखा न देख सकते थे।।
सातों भाई गये नगर के बाहर, पेड़ में अग्नि कर किया चाँद तैयार।।
पेड़ की अग्नि में चाँद दिखाया, झूठ से बहन ने भोजन कराया।।
पुत्री भोजन हेत किया अनुरोध, भाभियां भोज से किया विरोध।।
नंनद ने भाभिय़ां की अनसुनी थी, भोजन से हुई आफत दुगनी थी।।
तब व्रत करवाचौथ हुआ भंग, गणेशजी तब हुए बहुत अप्रसन्न।।
बेटी का पति हुआ तुरंत बीमार, है घर में धन बीमार का शिकार।।
जब धन-दौलत से हुए लाचार, झूठ बना बदहाली का आधार।।
पता होवै बेटी निज गलती का, किया पश्चाताप तब गलती का।।
क्षमा प्रार्थना गणेश भगवान से, प्रण फिर व्रत का लिया ध्यान से।।
किया व्रत फिर विधि विधान से, क्षमा मिले श्रीगणेश भगवान से।।
सब उपस्थितों का किया सम्मान, गुरु कृपा जाग गया स्वाभिमान।।
बेटी भक्ति से प्रसन्न गणेश, आशीष दिया सुख समृद्धि रहे हमेश।।
गणेशजी करवाचौथ दिया वरदान, पाया उसके पति ने जीवनदान।।
करै चौथ व्रत से पति हो दीर्घायु, रहे स्वस्थ व मिलै स्वच्छ प्राणवायु।।
करवा चौथ कृपा जीवन महान, ‘पृथ्वीसिंह’ करे सादर नवण प्रणाम।।
चौथ व्रत है सुखी जीवन का प्रतीक, पावे अकाल मृत्यु पर जीत।।
— कवि पृथ्वीसिंह बैनीवाल
बीकानेर (राजस्थान)
9518139200, 9467694029
