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गांधी के जन आंदोलनों ने किया था मज़दूरों को भीतर तक प्रेरित!

mahatma gandhi

डॉ.मेघना शर्मा

बीकानेर, (samacharseva.in)। अपने देश के हालात पर नजर दौड़ाएँ तो आज हमारे देश की आधे से अधिक आबादी शहरी तथा ग्रामीण सर्वहारा, अर्ध्दसर्वहाराओं की है।करोड़ों की आबादी वाले महानगर अस्तित्व में आचुके हैं, जहाँ कि गन्दी बस्तियों में करोड़ोंकरोड़ उजरती सर्वहारा भरे पड़े हैं।

और गौरतलब बात यह है कि आज हमारे देश के औद्योगिक मजदूरों में भारी बहुसंख्या युवा मजदूरों की है।यह युवा मजदूर पुरानी पीढ़ी के मजदूरों से भिन्न है।यह गाँवों से पुरानी पीढ़ी के मजदूरों जितना नहीं जुड़ा है। इस युवा मजदूर का सपना गाँव नहीं है।शहरों में भले लाख मुसीबतें हों लेकिन यह युवा मजदूर गाँव के नीरस, ठहरे, कूपमण्डूकी वातावरण में वापिस नहीं जाना चाहता। 

यूरोप में श्रम आंदोलन की शुरुआत औद्योगिक क्रांति के दौरान हुई थी जब कृषि क्षेत्र में रोजगार कम हो गए और औद्योगिक क्षेत्रों में अधिक से अधिक नियुक्तियां होने लगीं. इस विचार को भारी प्रतिरोध का सामना करना पड़ा. श्रमिकआंदोलन 19 वीं सदी के प्रारंभ से मध्य तक सक्रिय रहा और इस दौरान संपूर्ण औद्योगिक जगत में विभिन्न श्रमिक दलों का गठन किया गया।

हमारे देश मे श्रम आंदोलन अपेक्षाकृत रूप से देरी से शुरू हुआ। भारत में मजदूर संघ का अस्तित्व 19 वी. शताब्दी केउत्तरार्द्ध में आधुनिक उद्योगों की स्थापना के साथ शुरु होता है। रेलवे का निर्माण इस दिशा में प्रथम कदम था।आधुनिक उद्योगों के उदय के साथ ही कारखानों में अनेक बुराइयां जैसे कि काम करने के अधिक घंटे, आवास की असुविधा, कम वेतन, अत्यधिक असुरक्षा आदि देखने को मिली। कारखानों में सुधार हेतु प्रथम प्रयास समाज सेवी संस्थाओं द्वारा किया गया।

भारत देश मे श्रमिकों की कार्यस्थल के पर्यावरण को सुधारने, उनके वेतन व अन्य सुविधाओं के लिए सर्वप्रथम प्रयास करने का श्रेय श्री एम. एसबंगाली को जाता है, जिन्होने 1875 मे एक संगठन बनाकर इस दिशा मे प्रयास किया। यद्यपि उनके प्रयासों को कुछ विशेष सफलता नहीं मिली, पर उन्हे श्रम आंदोलन के जन्मदाता का सम्मान तो हासिल है ही। 

इस समय का एकमात्र समाजार पत्र मराठा (तिलक) ही मिलमजदूरों की रियासतों के लिए वकालत करता था।स्वदेशी केप्रमुख नेताओं में अश्विनीकुमार दत्त, प्रभात कुमार राय चौधरी, अपूर्व कुमार घोष ने मजदूर आंदोलन को अपना सहयोग प्रदान किया।बंगाल विभाजन के दिन मजदूरों ने समूचे बंगाल में हङताल रखी। 1908 को बाल गंगाधर तिलक को आठ वर्ष की सजा होने के बाद तत्कालीन बंबई केकपङा मजदूर लगभाग एक सप्ताह तक हङताल पर रहे, मजदूरों की यह हङताल उस समय की सबसे बङी राजनीतिक हङताल थी।

बी.पी. वाडिया द्वारा गठित मद्रास मजदूर संघ (1918) भारत का पहला आधुनिक मजदूर संगठन था। 1919 में अंतर्राष्ट्रीय श्रमसंगठन (ILO) में भारत की सदस्यता एवं राष्ट्रवादियों के असहयोग आंदोलन ने भारत में एक अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन के रूप में सामने आया। 1920 में एम. एन. जोशी, जोसेफ बैपटिस्ट तथा लाला लाजपत राय के प्रयासों से अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस की स्थापना हुई।

कांग्रेस में वामपंथी विचारधारा वाले नेता जैसेश्रीपाद अमृत डांगे, मुजफ्फर अहमद, पूरनचंद्र जोशी तथा सोहन सिंह ने कामगार किसान पार्टी की स्थापना की।सविनय अवज्ञा आंदोलन के समय कांग्रेस ने मजदूर और किसान कांग्रेस के हाथपाँव हैं, का नारा दिया।

भारत छोङो आंदोलन के समय 9 अगस्त, 1942 को गांधीजी के गिरफ्तार कर लिये जाने पर दिल्ली, कलकत्ता, मद्रास, कानपुर, लखनऊ, बंबई, नागपुर, अहमदाबाद, जमदेशपुर, इंदौर, बंगलौर आदि में श्रमिकह ङतालें हुई।ब्रिटिश साम्राज्यवाद के अंतिम वर्षों में समूचे देश के आर्थिक मुद्दे को लेकर हुई हङतालों की संख्या में अभूतपूर्व वृद्धि हुई, इन हङतालों में डाक तार विभाग की हङताल सर्वाधिक प्रसिद्ध थी।

वर्तमान मजदूर संगठनो की शुरुआत प्रथम विश्वयुद्ध के बाद मानी जासकती है।युद्ध के दौरान मजदूरों मे अपने अधिकार पाने, अपनी महत्ता जानने और अपनी सुविधाओं को पाने की जागृति की लहर पैदा हुई।  सन 1934 मे पंडित हरीनाथ शास्त्री की अध्यक्षता मे हुए एक सम्मेलन मेआल इंडिया रेड ट्रेड यूनियन कांग्रेस समाप्त कर दी गयी। 1938 मे आल इंडिया ट्रेड यूनियन फेडरेशन का भीइंडियन नेशनल ट्रेड यूनियन कांग्रेस मे श्री वीवी गिरि (जो बाद मे भारत के राष्ट्रपति भी बने) के प्रयासो से विलय हो गया।

देश के सबसे बड़े श्रमिक संगठन भारतीय मजदूर संघ की स्थापना महान विचारक स्वदत्तोपन्त ठेंगड़ी द्वारा प्रख्यात स्वतंत्रता सेनानी लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक  केजन्म दिवस 23 जुलाई 1955 कोहुई।भारत के अन्य श्रम संगठनों की तरह यह किसी संगठन के विभाजन के कारण नहीं बना वरन एक विचारधारा के लोगों का सम्मिलित प्रयास का परिणाम था।

यह देश का पहला मजदूर संगठन है, जो किसी राजनैतिक दल की श्रमिक इकाई नहीं, बल्कि मजदूरों का, मजदूरों के लिए, मजदूरों द्वारा संचालित अपने में स्वतंत्र मजदूर संगठन है। 

अन्य मजदूर संगठनों का नारा है– चाहे जो मजबूरी हो, माँग हमारी पूरी हो!

भारतीय मजदूर संघ का नारा है– देश के हित में करेंगे काम, काम के लेंगे पूरे दाम्!

भारतीय मजदूर संघ के छोटेबड़े प्रत्येक कार्यक्रम काशुभारम्भ इस प्रकार के गीत से होता है

मानवता के लिए उषा की किरण जगाने वाले हम,

शोषित, पीडित, दलित जनों का भाग्य बनाने वाले हम।

हम अपने श्रम सीकर से ऊसर में स्वर्ण उगा देंगे,

कंकड पत्थर समतल कर कांटों में फूल खिला देंगे।

सतत परिश्रम से अपने हैं वैभव लाने वाले हम,

शोषित, पीडित, दलित जनों का भाग्य बनाने वाले हम।

अन्य किसी के मुंह की रोटी हरना अपना काम नहीं,

पर अपने अधिकार गंवा कर, कर सकते आराम नहीं।

महत्वपूर्ण बात यह है कि आजका युवा मजदूर पढ़ालिखा है।यह पढ़ालिखा युवा मजदूर राजनीतिक रूप से आसानी से शिक्षित हो सकता है और सर्वहारा क्रान्ति की विचारधारा आसानी से आत्मसात कर सकता है।आज देखा जाए तो मजदूर आन्दोलन के हर पहलू पर निरन्तरता परपरिवर्तन का पहलू हावी है। जरूरत आज इस बात की है कि एक सच्चे वैज्ञानिक के समान आज की देशदुनिया की बदली हुई परिस्थितियों को स्वीकार किया जाये, उनका अध्ययनविश्लेषण किया जाये, उन्हें समझा जाये तथा उन्हें बदलने के नये तौरतरीकों तथा रूपों के बारे में सोचा जाये।  सिर्फ सोचा ही न जाए, इस सोचविचार से जो नतीजे निकलें, उन्हें मजदूर आन्दोलन संगठित करने की व्यावहारिक कार्रवाइयों में लागू किया जाये।

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डॉ.मेघना शर्मा

इतिहासकार, कवयित्री कथाकार

डायरेक्टर, सेंटर फॉर वीमेंस स्टडीज

महाराजा गंगा सिंह विश्वविद्यालय, बीकानेर

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