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सच्ची आलोचना स्वीकारना लेखकों का धर्म : राजपुरोहित

Accepting true criticism is the religion of writers Rajpurohit

बीकानेर, (समाचार सेवा)। सच्ची आलोचना स्वीकारना लेखकों का धर्म : राजपुरोहित, अंतरराष्‍ट्रीय राजस्थानी समाज की ओर से सोमवार को कोरोना काल में राजस्थानी उपन्यास साहित्य पर ऑनलाइन गोष्ठी का आयोजन किया गया।

गोष्ठी में राजस्थानी लेखक देवकिशन राजपुरोहित ने कहा कि राजस्थानी उपन्यास में भाषा, शिल्प और कथ्य के स्तर पर आज संख्यात्मक गणना भले काम हो, किंतु उपन्यासकारों ने विधा के विकास के लिए बहुत गंभीरता से काम किया है।

उन्होंने कहा कि सच्ची आलोचना को स्वीकारना लेखकों का धर्म है। राजपुरोहित ने कहा कि उपन्यास के जितने भी प्रकार भेद संभव है वे राजस्थानी में भी मिलते हैं। उपन्यासकार नवनीत पाण्डे ने कहा कि राजस्थानी उपन्यास विधा के विकास के लिए हमें आलोचना को खुले मन से स्वीकार करना होगा।

जोधपुर की उपन्यासकार संतोष चौधरी ने कहा कि राजस्थानी उपन्यास में महिलाओं की भागीदारी पहले की तुलना में अब काफी अधिक हुई है। चौधरी ने कहा कि महिला उपन्यासकारों ने स्त्रियों के भीतरी और बाहरी संघर्षों का जीवंत प्रभावशाली चित्रण किया है।

ऑनलाइन गोष्ठी का संचालन कवि आलोचक डॉ. नीरज दइया ने किया। डॉ. दइया ने कहा कि राजस्थानी उपन्यास को देश-विदेश के उपन्यास के साथ चलना होगा और नई चुनौतियों को स्वीकार करते हुए हमें आलोचना को अंगीकार करना होगा। संगोष्ठी में साहित्यकार बुलाकी शर्मा, राजेन्द्र शर्मा ‘मुसाफिर,

डॉ. लहरी मीणा, श्याम जांगिड़, डॉ. जितेंद्र कुमार सोनी, दीनदयाल शर्मा, मीरा कृष्णा, सुखदेव राव, मधुर परिहार, छत्रमल छाजेड़, ममता आचार्य, शंकर धाकड़, जितेंद्र कुमार रावत, संजू श्रीमाली, चंद्रशेखर जोशी, कंचन चौधरी, बी.एल. पारस आदि ने चर्चा में भाग लिया।

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