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अब लेखक की कलम से अंगारे निकले ताकि संस्कृति को नष्ट होने से बचाया जा सके – सोमगिरिजी

akhil bhartya sahitya parishad

बीकानेर, (समाचार सेवा)। शिवबाडी स्थित लालेश्‍वर महादेव मंदिर से जुडे संत स्‍वामी संवित सोमगिरिजी महाराज ने कहा कि वर्तमान समय में लेखक की कलम से अंगारे निकले तभी संस्कृति को नष्ट होने से बचाया जा सकेगा। सोमगिरी महाराज शनिवार को बीकानेर के पशु चिकित्सा विज्ञान विश्वविद्यालय के सभागार में अखिल भारतीय साहित्य परिषद के दो दिवसीय प्रादेशिक अधिवेशन व साहित्यकार समारोह के शुभारंभ समारोह को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने राष्ट्र विचार रखने वाले  साहित्यकारों को मां भारती का सच्चा पुत्र बताया तथा अपना आशीर्वाद दिया।

उद्घघाटन सत्र में स्वामी सवित सोमगिरि जी महाराज ने आशीर्वचन कहते हुए बताया कि हमारे यहां  5 हजार वर्ष पूर्व सरस्वती नदी बहती थी। यहाँ के रेत के दौरे सागर रूपी वेला को लिये हुये हैं।  उन्‍होंने कहा कि सारा जगत महाकाव्य हैं। साहित्य समाज को संस्कृत करता है।  सांसारिक तनाव से मुक्ति के लिए वह समाज में सद्विचारों की स्थापना के लिए साहित्य की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है।

उन्होंने कहा कि समाज में सत्साहित्य के माध्यम से मानवीय गुणों का विकास किया जा सकता है।साहित्य समाज का दर्पण हैं से आशय समाज को दिशा देने से है। स्वामी जी ने कहा कि अखिल भारतीय साहित्य परिषद सभी उत्सवो  का आयोजन करती हैं एवम सभी महापुरषो की जयंती को  पर्व रूप में मनाती हैं।

ऐसा लगातार  करते हुए   साहित्य की अलख जगाए  हुए है तथा साहित्यकार वह हैं  कि जो किसी भी तथ्य के गहराई अर्थात मूल में चलता चला जाता हैं तथा अपनी लेखनी से मां शारदा को प्रकट करता है। लेखक साहित्य की गहराई को जानकर पटल पर रखता हैं। समाज विभाजन रुपी साहित्य को स्वीकार नही किया जा सकता हैं।

हमारे समक्ष बहुत चुनोतियाँ हैं। साहित्यकारों को जोड़ने के लिए साहित्य रूपी दर्शन की आवश्यकता होती हैं। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि एवं अखिल भारतीय साहित्य परिषद के राष्ट्रीय संगठन मंत्री श्रीधर पराड़कर ने कहा कि शब्द के सामर्थ्य की पहचान करके साहित्यकार समाज को सही दिशा दे सकते हैं। उन्होंने कहा कि साहित्य परिषद समाज में सद्विचारों की स्थापना के लिए प्रयत्न करता है।

साहित्य के माध्यम से समाज के उज्जवल पक्ष को प्रकाशित करना परिषद का प्रमुख धैय है। राष्ट्रीय चित्रों के माध्यम से देश के गौरवपूर्ण अतीत का स्मरण और वर्तमान की समस्याओं के समुचित समाधान तथा स्वर्णिम भविष्य के निर्माण के लिए साहित्य परिषद देशभर में निरंतर साहित्यिक आयोजनों के माध्यम से समाज को जगाने का कार्य कर रही है। उन्होंने कहा कि आज के साहित्य में फलश्रुति गायब है।

यही वजह है कि विभक्ति का ज्ञान रखने वाला वक्त नहीं बन पाता साहित्य कारों को अपने समाज की समृद्ध परंपराओं बुनियादी मूल्यों और अतीत का ज्ञान होना चाहिए ताकि देश काल परिस्थिति के अनुरूप यथोचित साहित्य का सृजन किया जा सके। राजस्थान साहित्य अकादमी के अध्यक्ष डॉक्टर इंदुशेखर तत्पुरुष ने नई पीढ़ी के युवाओं से साहित्य की समृद्धि से जुड़ने का आह्वान करते हुए कहा कि साहित्य केवल समाज का दर्पण भर नहीं है बल्कि यह समाज को श्रेष्ट बनाने की साधना का दूसरा नाम है।

डॉ इंदुशेखर तत्पुरुष  ने कहा कि जितना आप पढेगे उसके बाद लिखेगे तो गहराई ज्यादा होती हैं। साहित्य चरित्र गढ़ता हैं। राम के चरित्र कितने धीर, कितने गम्भीर, कितने चिंतनशील को साहित्य बताता हैं और हम पढ़ते हुए रोने लगेगे ।यह साहित्य का सामर्थ्य हैं।

दूसरे सत्र साहित्य का सामर्थ्य व हमारा अधिवेशन में मंच संचालन मोनिका गोड़ ने किया। अखिल भारतीय साहित्य परिषद के प्रदेश अध्यक्ष डॉक्टर अन्नाराम शर्मा ने  परिषद का प्रतिवेदन प्रस्तुत करते हुए अब तक हुए विभिन्न कार्यक्रमों में गतिविधियों पर प्रकाश डाला उन्होंने कहा कि साहित्य परिषद प्रदेश भर में साहित्य की अलख जगाने के लिए समर्पित भाव से प्रयासरत हैं।

उन्होंने कहा कि साहित्य परिषद प्रदेश भर में साहित्य की अलख जगाने के लिए समर्पित भाव से प्रयासरत हैं। उन्होंने आगंतुक अतिथियों का परिचय देते हुए परिषद की ओर से उनका स्वागत भी किया। उद्घाटन समारोह में भारतीय जनता पार्टी के शहर जिला अध्यक्ष डॉक्टर सत्य प्रकाश आचार्य, महापौर नारायण चोपड़ा ने भी शिरकत की।

दो दिवसीय प्रादेशिक अधिवेशन व साहित्यकार समारोह में प्रथम सत्र में साहित्य का सामर्थ्य और हमारा अधिष्ठान विषय पर चर्चा की गई।  दूसरे सत्र में साहित्य का सामर्थ्य राष्ट्रबोध पर मुख्य वक्ता डॉक्टर मोहनलाल गुप्ता ने कहा कि राष्ट्रीय विचार का बौद्ध साहित्य को सही दिशा प्रदान करता है। कार्यक्रम में ओम प्रकाश भार्गव ने बीज वक्तव्य दिया।

कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉक्टर सुरेंद्र सोनी ने की वही मंच पर डॉक्टर विमला सिंघल ने सानिध्य प्रदान किया। इस सत्र का संचालन डॉक्टर ममता जोशी ने किया। तीसरे सत्र में वर्तमान सामाजिक सांस्कृतिक चुनौतियां और युवा लेखन पर बीज वक्तव्य देते हुए प्रदुमन कुमार वर्मा ने आज के समय की चुनौतियों के मद्देनजर युवा लेखन की विविध आयामों पर प्रकाश डाला। मुख्य वक्ता डॉक्टर गोविंद शरण शर्मा ने समकालीन युवा लेखन के परिदृश्य पर विस्तार पूर्वक चर्चा करते हुए कहा कि आज का युवा अपने परिवेश के प्रति पूर्णतया सजग और सतर्क है।

कार्यक्रम में श्रीमती आशा शर्मा ने अपने विचार रखे। इस सत्र की अध्यक्षता डॉ शैलेंद्र स्वामी ने की और मंच संचालन का दायित्व डॉक्टर अखिलेश ने निर्वाहन किया। आज की संगोष्ठी से मुख्यरूप से बात निकल कर आयी कि किशोर व युवा साहित्यकार नवोदित रचनाकार कियात्मक व अनुकरणात्मक लेखन नही करता  वह सद साहित्य नही है।

लेखन से पूर्व लिखने का उद्देश्य व सांस्कृतिक मूल्यों व निष्ठा की पहचान होना आवश्यक हैं अपनी जमीन पर खड़े होकर स्वाध्याय करने व बाद में लिखा गया लेखन ही सार्थक बनेगा। इससे पूर्व प्रादेशिक महाधिवेशन एवम सहित्यकार सम्मेलन में शनिवार को अधिवेशन की  विधिवत शुरूआत सरस्वती पूजन दीप प्रज्ज्वलन  सरस्वती वंदना के साथ की गई।

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