आचार संहिता के दौर में कहा गायब हुए टाइगर
पंचनामा : उषा जोशी
आचार संहिता के दौर में कहा गायब हुए टाइगर, सुना है, आचार संहिता वाले दिन ही टाइगर ने अपने महकमे के निचले पायदान वाले खाकीवीरों को अपना शिकार बना लिया है।
लंबी चौड़ी स्थानांतरण सूची निकाल कर टाइगर खुद ना जाने किस जहां में खो गए। इससे उनसे प्रस्तावित कई खाकीधारी भरी दुनिया में तनहा हो गए।
सत्तापक्ष, विपक्ष और सजातीय बन्धु बांधवों सहित बड़ी संख्या में लोग टाईगर की दादागिरी से प्रभावित हो कर उन्हें यत्र तत्र ढूंढते रहे,
लेकिन टाईगर ने ना तो किसी का फोन रिसीव किया न ही किसी को दर्शन दिए, यहां तक कि टाईगर के बेहद करीबी अनेक लोगों के मुगालते दूर हो गए।
चर्चा यह है कि टाईगर ने बेचारे सबसे निचले पायदान वाले कांस्टेबलों पर न जाने क्या गुस्सा निकाला है।
बड़े वालों पर जोर नहीं चला तो टाइगर ने छोटे निरीहों को अपना शिकार बना डाला। मुफलिसी में टाइम पास कर रहे कांस्टेबल कहीं के नही रहे।
टाइगर ने कईयों को तो स्वयं की प्रार्थना पर ट्रांसफर कर उपकृत किया है लेकिन कइयों को प्रशासनिक आधार बता कर दूर के डूंगर दिखा दिए हैं।
देखना है इन छोटे खाकीवीरों की यह चिख चिख क्या रंग दिखाती है।
आती क्या खंडाला..
एक नामी राजनीतिक दल के एक सर्वेसर्वा से कुछ स्थानीय महिलायें आहत हैं, इन महिलाओं को ये सर्वेसर्वा सोशल मीडिया पर संदेश भेजकर बात करने को आग्रह कर रहे हैं।
कुछ महिलाओं ने तो सर्वेसर्वा के आग्रह पर कुछ संवाद किया मगर संवाद की भाषा जब संस्कृति की सीमा से बाहर होने लगी तो इन महिलाओं ने सर्वेसर्वा के जवाब देने बंद कर दिये।
सुना है सर्वेसर्वा जी रात में एकांत में आते ही महिला मित्र बनाने का सोशल मीडिया पर अभियान छेड़ देते हैं, और उनसे निजी संदेशों के जरिये बातचीत करते हैं।
सर्वेसर्वा की ये नादानी कुछ महिलाओं को अखर रही है, देखते हैं सर्वे सर्वा की ये कहानी आगे क्या रंग दिखाती है।
चुनाव का मौसम है, सर्वे सर्वा खुद ही संभल जाए तो बेहतर नहीं तो ये महिलायें जो सोच चुकी हैं, सर्वे सर्वा को बहुत भारी पड़ने वाला है, कसम से बता रहे हैं फिर ना कहना बताया क्यों नहीं।
सुन रहे हैं ना सर्वे सर्वा जी।
आज में ऊपर, आसमां नीचे
जब कोई मोहतरमा अपनी पर उतर आती है तो वह नियम कायदे भी भूल जाती है। ग्रामीण प्रशासन की चुनी हुई मुखिया मोहतरमा भी इसी रोग से ग्रस्त दिखाई दे रही हैं।
सुना है अब वे अपनी चेयर भी प्रशासनिक अधिकारी के कक्ष में स्थापित करवाना चाहती हैं।
जानकार लोगों का मानना है कि ग्रामीण कार्यालय में क्या क्या कार्य होते हैं और उनसे कैसे कैसे लाभान्वित हुआ जा सकता है यह जानकारी मोहतरमा को मिलने का कोई और तरीका नजर नहीं आया तो अब यह नया तरीका निकाला जा रहा है।
वैसे उलटी गिनती शुरू है और अब जितना नहाए उतना ही पूण्य की तर्ज मोहतरमा बेतुकी परंपरा डालने को आमादा है।
अब राज्य प्रशासनिक सेवा के अफसर साहब मोहतरमा को मौजूदगी कितनी बर्दाश्त कर पाएंगे यह समय के गर्भ में है।
छब्बेजी बनने की फिराक में मुखियाजी
उत्साह का अतिरेक कभी कभी बहुत बड़ी समस्या खड़ी कर देता है। मरुनगरी में पदस्थापित होने के बाद से ही चर्चाओं में शामिल रहने के शौकीन युवा जिला मुखिया किसी के कहने से साली छोड़ सासू से मसखरी की तर्ज पर चुनाव में पंगा ले चुके हैं।
चुनाव में ट्रेनिंग देने के विशेषज्ञों को हटाने का फरमान दे कर श्रीमान जी खुद फसते नजर आ रहे हैं।
चुनाव में प्रशिक्षण का काम शिक्षकों के ही जिम्मे है अन्य किसी विभाग के कर्मचारी चुनावी प्रशिक्षण देने में समर्थ नहीं है।
युवा मुखिया ने शिक्षकों को प्रशिक्षण में नहीं लगाने का फरमान तो फरमा दिया लेकिन अब अगर गुरुजन ट्रेनिंग से हट गए तो ईवीएम आॅपरेट होना महाभारत होने लगा।
धीरे धीरे से उठने वाले स्वर अब यह कहने लगे हैं कि ऊर्जावान मुखिया जी शहर में कोई भी पंचायती करके अखबारी सुर्खियां बटोरे, गुरुजनों को अगर छेड़ लिया तो बिना ट्रेनिंग चुनाव सपना बन जाएंगे।
नेताओं की चौखट पर जाने को मजबूर गुरुजी
रमसा से समसा बने शिक्षा महकमे में चंद समय पूर्व ही जुगाड़ लगा कर डेपुटेशन करवाने वाले व्याख्याता और प्रधानाचार्यों को समूचे प्रदेश के कार्यालयों से नई सरकार ने एक साथ हटा दिया और नए सिरे से प्रतिनियुक्तियों के लिए साक्षात्कार ले डाले।
येन केन प्रकारेण जुगत बिठा कर समसा में गोटी फिट करने वाले गुरूजन इस निराशा के दौर में एक बार फिर नेताओं की चौखट पर हैं।
कुछ गुरुजन तो साम दाम दंड भेद की नीति लगा कर वापस फिट हो गए जबकि कुछ अभाी बैरंग ही हैं। नई सरकार अपने लोगों को ओब्लाइज करके भिन्न भिन्न पुण्य कमाना चाहती है
जबकि कोशिस करके मुश्किल से पटड़ी बिठाने वाले गुरुवर एक बार फिर सचिवालय के गलियारों में हैं।
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