एक अनार सौ बीमार
पंचनामा : उषा जोशी
* एक अनार सौ बीमार
सीजन के हिसाब से हम भी इन दिनों खाकी से खादी की ओर शिफ्ट हो रहे हैं। लोग अभी खाकी की बजाय खादी वालों के कारनामों को सामने लाने की फरमाइश अधिक करने लगे हैं।
जांगळ देश के खादी वालों का हाल भी चुनाव वाले राज्यों के नेताओं की तरह सेम टू सेम है। सभी जगह एक अनार सौ बीमार की बीमारी जीका वायरस से भी अधिक फैल रही है।
नेता बनने की इस बीमारी का इलाज कोई टीका नहीं बल्कि टिकट है।
एक क्षेत्र में एक पार्टी अपने एक ही नेता को टिकट देती है मगर अपनी बीमारी का इलाज कराने के लिये टिकट रूपी दवा पाने के लिये एक दल के लोग दूसरे दल में भी बराबर ट्राइ करते हैं,
ऐसे में दल बदलने के इस मौसम के बावजूद टिकट नहीं पाने वाले स्वतंत्र उम्मीदवार बनकर अपना टिकट खुद छापने की भीतर ही भीतर तैयारी कर रहे हैं।
एक क्षेत्र में असली व नकली टिकट कई बन सकते हैं मगर विधानसभा में तो एक को ही प्रवेश मिलना है। जंग जारी है। जय खादी।
* शहर में बढ़ी राम राम सा की लहर
इन दिनों जनता जनार्दन सबकी माई बाप बनी हुई है। नेता बनने वाला हर कोई भाई-बहन सूरज की पहली किरण के साथ डूबते सूरज की अंतिम किरण तक मिलने वाले सभी लोगों राम राम सा करने में जुटा है।
जनता भी सभी को आर्शीवाद देने में कोई कसर नहीं रख रही है। हां कई लोग जरूर हैं जो राम राम सा करके जाने वाले सज्जन सज्जनी की कुण्डली खोलकर बैठ जाते हैं और पाटे पर उसके जीतने नहीं जीतने या फर्जी घोषित करने की भविष्यवाणियां करनी शुरू कर देते हैं।
चुनाव का सीजन ही है ऐसा है ना पुलिस की जरूरत ना कोर्ट की चुनाव लड़ने का आतुर नेता कई क्षेत्रों में छोटे-मोटे झगड़े-टंटे तो यूं ही मिटा देते हैं
और बड़े टंटे इसलिये नहीं होते क्यूकि बड़े बेईमानजी खुद टिकट की दौड़ में बिजी रहते हैं।
खुणा राजनीति करने वाले हुए परेशान
शहर में आम चुनाव क्या आ गए खुणा राजनीति (कोर्नर पॉलिटिक्स) करने वालों की परेशानी बढ़ गई है।
आम दिनों में खुणा राजनीति करने वालों को शहर में अच्छे अच्छे खुणे कहीं भी मिल जाते हैं मगर इस चुनावी साल में शहर के सारे खुणे रिजर्व हो चुके हैं या फिर उन खुणों में लोग पहले से ही अपना कब्जा कर चुके हैं।
एक नेताजी तो खुणा राजनीति के चक्कर में घर के बाथरूम में खुणा राजनीति करते करते घर के सभी ऐसे स्थलों का दौरा करते हुए छत पर पहुंच गए मगर जब छत पर भी घिर चुके एक कार्यकर्ता उन्हें किसी दूसरे खुणे में ले जाने जाने लगे तो नेताजी व कार्यकर्ता दोनों ही धड़ाम घर की छत से सड़क पर आ गिरे।
गांव बसा नहीं…
गांव बसा नहीं .. ये कहावत भी इन दिनों टिकट के इंतजार में बैठे नेताओं के लिये फिट बैठती है।
अनेक ऐसे दावेदार हैं जिन्होंने सोशल मीडिया पर अपने ऐसे ऐसे वादे लोगों से करने शुरू कर दिये हैं जो पता नहीं वे पूरा कर पायेंगे कि भी नहीं।
पूरा सोशल मीडिया चोहे चिड़िया वाला हो या फेस की बुक वाला सब नेताओं के वादों से भरा हुआ पड़ा है।
दिक्कत ये कि नेता भले कितने ही वादे करे मगर उसकी बखिया उधेड़ने वाले भी सोशल मीडिया पर उनकी जमकर धुलाई करने से नहीं चूक रहे है।
Share this content: