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ख़्वाजा के शहर में नहीं बोल सके नसीर, पुलिस बनी दर्शक, विदूषक, सहभागी

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अनिरुद्ध उमट
अजमेेेर, (समाचार सेवा)। ख़्वाजा के शहर में नहीं बोल सके नसीर, पुलिस बनी दर्शक, विदूषक, सहभागी नसीरुद्दीन शाह को गद्दार कहते मन प्राण से देश भक्त शूरवीरों ने आज ख़्वाजा के शहर में उन्हें बोलने नहीं दिया, यहाँ तक कि आयोजन स्थल पर भी नही आने दिया।


राजस्थान सरकार और पुलिस एक कलाकार को विमर्श की सुविधा देने में असफल सिद्ध हुई है। नारे, शोर, बदतमीजी, अपढता के उफान में सड़क पर पुतला दहन, आयोजन स्थल पर नारेबाजी करते जबर्दस्ती (पुलिस के संरक्षण में) प्रवेश किया।

जहां पुस्तक प्रदर्शनी, चित्र प्रदर्शनी थी वहां भारत माता के मान के रखवाले नारे लगा रहे थे।।।।।भारत मे अगर रहना होगा।।।।भारत माता।।।। नसीर अगर बिन बोले लौटे हैं तो उस शोर पर अनपढों की भीड़ पर उनका न बोलना भारी है।।
जो लोग विरोध कर रहे थे, या कर रहे हैं उन्हें पता ही नही नसीर ने कहा क्या था। आयोजन स्थल पर मेरे साथ अग्रज कवि नरेश सक्सेना थे, जिन्हें युवा शूरवीर घेर धमकाने लगे।
नरेश जी गुस्से में काँप रहे थे और भारत माता के लाल उन्हें किसी भी वक्त गिरा सकते थे। मैंने किसी तरह उन्हें किनारे किया।
मित्रो, ये भारत माता के लाल मंच पर चढ़ माइक छीन हिंसक नारे लगा शोर कर रहे थे। महिलाएँ-बालिकाएँ भयभीत थीं। पूरे प्रदर्शन के दौरान प्रशासन और पुलिस ने मूक गवाही दी व प्रदर्शनकारियों को पूरा संरक्षण दिया।
पुलिस ने उन्हें कहीं नही खदेड़ा, रोका। कहते हैं राजस्थान में राज बदल गया है। निज़ाम बदल गया है। ऐसा कोई परिवर्तन आज अजमेर में बौद्धिकों में नहीं दिखा। अजमेर में गम्भीर विमर्श हो रहा है।
मगर राज्य सरकार इस विमर्श के सूत्रधारों को आश्वश्त करने में असफल सिद्ध हुई है। यह उस सरकार के प्रति आरोप है जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की पैरोकार है।
यह विघ्न हमे चिन्तित, भयभीत करता है कि कैसा राज गया है और कैसा राज परिवर्तनकारी रूप में हमें छल रहा है।
महिलाओं, बेटियों बुजुर्गों की भरी पूरी उपस्थिति में ये आतंक क्या सन्देश देता है? नसीर का न बोल पाना ये जाहिर करता है कि हम कितने विकसित, परिवर्तन प्रिय हैं।
मीडिया के लिए ये घटना एक सनसनी है। उनसे उम्मीद भी नहीं। मित्रो, ग्लानि-शर्म उस समाज को आती है जो विवेकवान, उदार, खुली दृष्टि का होता है।
मित्रो, भारतमाता की मनःस्थिति के बारे में कल्पना करने की स्थिति में यदि अभी भी हम बचे हैं तो निश्चय ही ये बात हैरान करेगी कि हम किस तरह इस समाज मे जी रहे हैं। कला आज फिर अजमेर में जीती है।
सृजन ऐसे ही बचता है। मित्रो, कार्यक्रम में सत्र शुरू करते हुए मैंने खुल कर इस दुर्घटना का विरोध किया है। मंच से प्रशासन और पुलिस को दोषी मानते हुए उन्हें दर्शक, विदूषक, सहभागी कहा है।

बीकानेर के कवि व लेखक अनिरुद्ध उमट की फेसबुक वाल से साभार

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