हैट्रिक राजनीति, कहीं खुशी, कहीं गम
पंचनामा : उषा जोशी
हैट्रिक राजनीति, कहीं खुशी, कहीं गम
इस बार के विधानसभा चुनाव में शहर की राजनीति चाय के प्याले में तुफान जैसी रही। हाथ वाले भाईसाहब का जब टिकट कटा था तो फूलवालों के समर्थकों ने जबरदस्त उत्सव मनाया।
मैदान खाली समझकर उन्होंने मान लिया कि उनके उम्मीदवार की तीसरी बार विधायकी की हैट्रिक तय है मगर हुआ उलटा हाथ वाले
भाईसाहब बाजीगर कहलाये वापस टिकट ले आये। तब फूल वालों ने कहा कि हाथ वालों की इस बार हार की हैट्रिक तय है, फिर उलटा हुआ।
हाथ वाले भाईसाहब जीत गए। अब हाथ वाले भाईसाहब के समर्थक जश्न की हैट्रिक की खुशी मना रहे हैं, पहली खुशी टिकट मिलने पर मनाई, दूसरी जीतने पर अब तीसरी मंत्री बनने पर मनाने की जोरदार तैयारी है।
हो गई ना हैट्रिक। जब से चिल्ला रहे थे हैट्रिक, हैट्रिक, हैट्रिक सामने वाले मार गए हैट्रिक। जय राम जी की।
परमेश्वर री लीला, परमेश्वर ही जाणे
जांगळ देश के दो दर्जन से अधिक थानेदार अब तक समझ नहीं पाये हैं कि एक दूर दराज गांव के थाने में आईबी वाले भाई कब सर्वे के लिये पहुंच गए। कब फीडबेक ले लिया।
सुना है ये थानेदार उन सौ लोगों को भी तलाश रहे हैं जिनसे आईबी वालों ने सर्वे के दौरान गोपनीय तरीके से पूछताछ की।
ये सारी कवायद इसलिये हैं क्योंकि गांव के एक थाने को देशभर का सर्वश्रेष्ठ थाना चुन लिया गया है।
उस थाने के थानेदारजी केन्द्रीय मंत्रीजी के हाथों पुरस्कार लेकर भी आ गए। अब अपने-अपने थाना क्षेत्र में सीसी टीवी, वाईफाई कनेक्शन, मुखबिरी तंत्र का तगड़ा तामझाम लगाकर बैठे थानेदार भाई अपनी कामयाबियों को ढूंढ-ढूंढ कर उनका पुलिंदा तैयार करने में जुटे हुए हैं।
गोपनीय सर्वे वालों की भी गोपनीयता से स्वागत की तैयारी कर रहे हैं। उनको अब भी उम्मीद है किसी दिन उनके थाने को भी कोई सर्वश्रेष्ठ घोषित करवायेगा।
अरे हां पुरस्कार पाने वाले थानेदारजी को हमारी भी बधाई, भले ही लोग कहें कि परमेश्वर की लीला परमेश्वर ही जानता है।
खाकी में बदलाव की बयार
नई सरकार में खाकी के बदलाव की बयार का आनंद लेने के लिये अब कई थानेदार खादी के नए आकाओं व उनके बडे समर्थकों के चक्कर निकालना शुरू कर चुके हैं।
बड़े अधिकारी बदलने शुरू हो चुके हैं।
अच्छा थाना पाने की आस रखने वाले नई खाकी और नई खादी के बीच समन्वय बनाकर अपने पत्ते खेल रहे हैं।
सभी को अच्छा और कमाई वाला टिकाउ थाना चाहिये। उसके लिये थोड़ी मेहन करनी पड़े तो क्या गम है।
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