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मैं यातायात पुलिस की वर्दी बोल रही हूं.. सफेद झकाझक झक्कास

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बीकानेर । स्वास्थ्य एवं साहित्य संगम कवि चौपाल की 154 वीं कड़ी रविवार को वृद्धजन भ्रमण पथ परिसर में आयोजित की गई। कार्यक्रम की अध्यक्षता जब्बार बीकाणवी ने की।  मुख्य अतिथि श्रीमती मधुरिमा सिंह रहीं।

मुख्‍य अतिथि मधुरिया सिंह ने मैं यातायात पुलिस की वर्दी बोल रही हूं… सफेद झकाझक झकास रचना भी पेश की। केलाश ने क्या क्या करके दिखलाउ, जब्बार बीकाणवी ने ईश्वर से प्रेम करे… कु. लक्ष्मी भाटी ने रविवार की महत्ता का कविता में ढाला।

कार्यक्रम में फजल मोहम्मद ने इस संसार में प्रेम का कोई महत्व नही रहा.. रचना पेश की। नरेश खत्री ने जिन्दगी का सफर न जाने कैसे कट गया, पता न चला, श्रीमती कृष्णा वर्मा ने कैसे फिसल गया, लक्ष्मी का अवतार कहो या सरस्वती, राजकुमार ग्रोवर ने फांसी के तख्ते पर वीर भगतसिंह बोला… मां मेरा रंग दे बसन्ती चोला रचना पेश की।

पुखराज सोलंकी ने रोशनी की तलाश में भटक रहा बचपन, बिन आखर के ज्ञान में लटक रहा है बचपन, अजीतराज ने तुम क्यों देना चाहते हो मुझे, जुगलकिशोर पुरोहित ने शब्द ही आधार है काव्य का, कवि चौपाल बेमिसाल है विद्वानों की है महासभा रचना पेश की।

डॉ. तुलसीराम ने मैं हंसता हूं जीवन भर…, किशननाथ खरपतवार ने कितनी प्यारी है मां, नेमचंद गेहलोत ने मुझे ऐसा पति देना भोला भण्डारी… जिसे पति सेवा की हो बिमारी, हनुमंत गोड़ ने तेरे आने की आहट से मेरी दुनिया बदलती है रचना सुनाई।

बाबूलाल छंगाणी ने म्हने क्यों नहीं मिल लुंठों सम्मान कई म्हारे तरकश में कोनी तीर कमान, कसिम बीकानेर ने नहीं है राहते मुझ को… इसी को दोस्तो दुनियां में.., प्रकाशचन्द वर्मा ने इसी को कहते है क्या प्यार, कृष्णा वर्मा ने तू प्यार का सागर है गीत पेश किया।

रामेश्वर द्वारकादास बाड़मेरा साधक ने जब घर के देवी देव है तृप्त उन्हें मंदिर जाने की क्या जरूरत  कविता वृद्धजनों के आदर स्रेह अनुशान पर केन्द्रित थी।

विशिष्ठ अतिथि नेमचंद गहलोत, डॉ प्रकाशचन्द वर्मा थे। हाजी मोहम्मद, कादर खान, लक्ष्मी भाटी, वेदान्त, राजेन्द्र शर्मा, मैना देवी, नेमीचंद पंवार, अकतर खां, मोहनलाल, रजबुदिन, नरेश सिधीं उपस्थित थे।  श्रीगोपाल स्वर्णकार ने धन्यवाद दिया संचालन कैलाशचन्द्र टाक ने किया।

समारोह में गत माह 23 मई को साहित्यकार लेखक कवि डॉ.बस्तीमल सोलंकी भीम (राजसंमद) का देहान्त हो जाने पर कवि चोपाल के साहित्य कवियों ने दुख: प्रकट किया एवं दो मिनट का मोन रखा।

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