डॉ शीरानी की खिदमात बेमिसाल
बीकानेर । {समचर सेवा} डॉ शीरानी की खिदमात बेमिसाल, टोंक से आये जाने माने उर्दू साहित्यकार,लेखक,कथाकार,समीक्षक और शिक्षाविद् डॉ अजीज़ुल्लाह शीरानी का रविवार को होटल मरुधर हेरिटेज में पर्यटन लेखक संघ- महफिले अदब द्वारा सम्मान किया गया।बीकानेर के नुमाइंदा साहित्यकारों ने उन्हें सम्मानस्वरूप शाल ओढ़ाया गया तथा श्रीफल पेश किया और गुलपोशी भी गई ।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार सरदार अली परिहार ने कहा कि डॉ शीरानी ने उर्दू साहित्य में बेमिसाल खिदमात अंजाम दी हैं।शीरानी ने उर्दू में सशक्त कहानियां लिखी हैं।वे सृजन के साथ अनुवाद विधा में भी दक्ष है ।
मुख्य अतिथि उर्दू शाइर ज़ाकिर अदीब ने कहा कि डॉ शीरानी को उर्दू से गहरी मुहब्बत है। उनकी यही मुहब्बत उनकी किताबों और रचनाओं के रूप में सामने आ रही है । डॉ ज़िया उल हसन क़ादरी ने “डॉ शीरानी-शख्सियत और खिदमात”विषयक पत्रवाचन करते हुए कहा कि शीरानी साहब की घुट्टी में उर्दू मिली हुई है।उर्दू उनके खून में शामिल है।क़ादरी ने कहा कि उर्दू के विद्याथिर्यों के मार्गदर्शन के लिए लिखी शीरानी की पुस्तकें भारतवर्ष में मशहूर हैं।शीरानी ने राजस्थान के उर्दू साहित्य पर भी खूब लिखा है । उनकी विविध विषयों पर क़रीब पचास पुस्तकें हैं।
इस अवसर पर आयोजित काव्य गोष्ठी में ज़ाकिर अदीब ने “बना के छोड़ा उसे हमने मील का पत्थर”, वली मुहम्मद गौरी “वली” ने “वक़्त रोकेगा समन्दर की रवानी एक दिन”,रहमान बादशाह ने “ठोकर ना मारिये मुझे पत्थर नहीं हूँ मैं”, डॉ कृष्णलाल बिश्नोई ने राजस्थानी दोहे “खावै माल मलीदा”,डॉ ब्रह्मराम चौधरी ने “बीमारियों से सदियों लड़ा”,असद अली असद ने “जो उसूलों की बात करता था”,जुगल किशोर पुरोहित ने “रंग भरो नीरस में”,
राजकुमार ग्रोवर ने “रोते हुओं को हंसा दे जो”,गोपाल कृष्ण अग्रवाल ने “किसी का कोई नहीं दुनिया में”,डॉ जगदीशदान बारहठ ने “कुछ देना सीखें”, शारदा भारद्वाज ने “वो साज़िश का अपनी असर देखते हैं” और हनुवंत गौड़ “नज़ीर” ने “हमने गैरों की रस्मे-उल्फ़त निभाना छोड़ दिया” सुना कर दाद लूटी।सञ्चालन डॉ ज़िया उल हसन क़ादरी ने किया।
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