असत्य पर सत्य की जीत का प्रतीक नृसिंह मेला

narsingh mela

बीकानेर, (समाचार सेवा)। आज के सन्दर्भ में भगवान के वास्तविक अवतार की कल्पना करना तो मुर्खता होगी लेकिन अधर्म पर धर्म, असत्य पर सत्य व पाप पर पुण्य की जीत के प्रतीक अनेक धार्मिक मेले ऐसी वास्तविकता का अहसास कराते है, ऐसा ही मेला है भगवान नृसिंह का जो शहर के अनेक मौहल्लो मे मनाया जाता है।

बीकानेर शहर के लखोटियों चौक, डागा चौक, दुजारिया गली, नत्थूसर गेट के बाहर व लालाणी व्यास चौक में वैशाख सुदी चौहदस की शाम को हर बार भगवान नृसिंह का अवतार होता है । नृसिंह चौहदस का मेला मरू नगरी लखोटिया चौक में शनिवार दिनांक 28 अप्रेल 2018 को भरा जाएगा जिसके साक्षी बनेंगे हजारों शहरवासी जो अद्भुत स्वरूप धारण किये भगवान नृसिंह, दैत्य हिरण्य कश्यपु व भक्त प्रहलाद को नजदीक से देखते है और “हिरणा.किसना गोविन्दा प्रहलाद भजे“ के उद्घोष से समूचे वातावतरण को गुजायमान करके अपने साक्ष्य का प्रमाण देते है ।

नृसिंह लीला के रूप में मनाये जाने वाले इस मेले का मुख्य आकर्षण लखोटिया चौक है जहां इस लीला को देखने जन सैलाब उमडता है । बीकानेर स्थापना से पूर्व इस चौक के ऐतिहासिक नृसिंह मन्दिर की स्थापना नागा साधुओ ने की । यह स्थल उस समय तलाई के रूप में था जहां नागा साधु निवास करते थे धीरे धीरे यहां अन्य लोग बसने लगें तो नागा साधु यहां से पलायन कर गये तब इस मंदिर की गद्दी लखोटियों जाति के परिवार वालों ने सम्भाली ये लखोटिया जाति के लोग मुल्तान मैं व्यापार करते थे।

मुल्तान जों अब पाकिस्तान में है, भगवान नृसिंह की जन्म स्थली माना जाता है और यही एकमात्र स्थान था जहॉं भव्य नृसिंह लीला होती थी । जिसे देखने के लिए देश के अनेक हिस्सों से लोग जाया करते थें। लखोंटिया जाति के ये व्यापारी भी मुल्तान में इस लीला को देखा करते थे उनके मन में इच्छा जागृत हुई कि क्यों न ऐसी लीला यहॉं इस नृसिंह मंदिर में भी प्रारम्भ की जाय उन्होंने इसके लिए तैयारिया भी प्रारम्भ कर दी लेकिन मुखौटो की समस्या रही यहॉॅं मुल्तान जैसे मुखौटे तैयार करवाकर बीकानेर लाये । आज भी लीला के दौरान भगवान जैसे मुखौटे बनाने वाला कोई नही मिला और जो बनाये गये वो जचे नहीं तब ये लखोटिया व्यापारी काफी समय मुल्तान में रहकर वही की मिट्टी से नृसिंह व हिरण्य कश्यपु के मुखौटे तैयार करवाकर बीकानेर लाये ।

आज भी लीला के दौरान भगवान नृसिंह स्वरुप व हिरण्यसकश्यप स्वरुप धारण करने के जो मुखौटे है वे वही सैकडो वर्ष पुराने मुल्तान की मिट्टी के बने है। इन मुखौटों पर सोने की कलम का काम किया हुआ है जिसकी चमक वर्षों से आज भी बरकरार है इन्ही मुखौटो के कारण ये दोनो पात्र बडे आकर्षक लगते है जो वास्वविक दैत्य और नर-सिंह स्वरूप की अदभुत छटा बिखेरते है। इन्ही स्वरूपों को नजदीक से देखने के लिये हजारो की संख्या में लोगो की भीड उमडती है ।

लखोटिया चौक में सुबह से ही काले वस्त्र, हाथ में कौड़ा व राक्षसी मुखौटा पहना छोटा हिरणयकश्यपु का आंतक शुरू हो जाता है जो चौक व गलियो में उछलकुद करते हुवे अपने आंतक से हर किसी को डराता है यह क्रम शाम 5.00 बजे तक चलता है इसके बाद मेला धीरे धीरे अपने पूर्ण यौवन पर आता है । पांच बजे बाद पीला पिताम्बर, माथे पर चन्दन का लेप, गले मेें मोटो मिणियों की माला लेकर राम नाम का जाप करता नन्हा बालक भक्त प्रहलाद स्वरूप में चौक के पाटे पर रखी चॉंदी की कुर्सी पर विराजमान होता है।

लोगो में भक्त प्रहलाद के पैर छुकर आर्शीवाद लेने की होड मच जाती है । वहीं कुछ ही समय पश्चात काले वस्त्र व दैत्य का मुखौटा घारण किया हिरण्यकश्यपु का बडा स्वरूप निकलता है जो फिर से अपना आंतक फैलाना शुरू कर देता है इसी दौरान खम्भ फाडकर आधा नर और आधा सिंह सा स्वरूप धारण करके भगवान नृसिंह प्रकट होते है तब चहू और नृसिंह देव की जय, प्रहलाद भक्त की जय के जयकारो का सिलसिला प्रारम्भ हो जाता है । उधर हिरण्यकश्यपु समुचे चौक में उछलकुद करके भक्त प्रहलाद पर प्रहार करने का प्रयास करता है जिसे बचाने के लिये नृसिंह भगवान पलट वार करते है तो हिरण्यकश्यपु भाग जाता है ।इस तरह भगवान नृसिंह और दैत्य हिरण्यकश्यपु के मघ्य तीन कुश्तियां होती है इस दौरान भगवान नृसिंह तख्त पर नाचते है वहीं हिरण्यकश्यपु मोहल्ले के आस-पास गलियों में हाथ में कौड़ा लिए नाचता है।

अन्तिम कुश्ती के दौरान भगवान नृसिंह दैत्य हिरण्यकश्यपु को अपने नाखुनो से चीर कर वध कर देते है उसी क्षण मोहल्ले की छतों से पुष्प वर्षा होती है और नीचे भीड नृसिंह देव की जय प्रहलाद भक्त की जय, हिरणा किसना गोविन्दा प्रहलाद भजे के जयकारो से वातावरण को गुजायमान कर देते यही वो मार्मिक क्षण होता है जिसका भीड बेशब्री से इन्तजार करती है ।

लखोटिया चौक मेले की एक विशेषता यह भी है कि यहां लीला के दौरान एक बार वस्त्र व मुखौटा धारण करने के बाद वह किरदार उसी को निभाना पडता है और अब तक का इतिहास रहा है कि इस चौक में सैकडो वर्षो से आज तक भगवान नृसिंह की कृपा से पात्र बदलने की नौबत नहीं आयी है यह बात मौहल्ले के डॉ. चन्द्रषेखर श्रीमाली ने बतलायी उन्होने यह भी बतलाया कि हिरण्यकश्यपु भक्त प्रहलाद व भगवान नृसिंह का स्वरूप मौहल्ले के ही जाये जन्में व्यक्ति धारण करते है अन्य नहीं । डॉ. चन्द्रषेखर श्रीमाली स्वयं भगवान नृसिंह का स्वरूप धारण चुके है उनके अनुसार मौहल्ले केे स्व. शंकर लाल श्रीमाली (भाया महाराज), स्व. गोपाल दास व्यास (पंच), नथमल व्यास, गोरधन व्यास,मनोज बिस्सा इत्यादि भी अनेक दफा नृसिंह व हिरण्यकश्यपु का किरदार निभा चुके है । इस बार किसके भाग्य में क्या लिखा है यह तो चौवदस की शाम चार बजे ही पता चलेगा ।

लखोटियों चौक मे मेले की तैयारी परवान है, मोहल्लेवासी इस हेतु एक महीन पूर्व तैयारी शुरू कर देते है इसके तहत मन्दिर में रंग-रोगन, कागज की फरिया बना कर मोहल्ले में बांधना साथ ही पूरे मोहल्ले में लाइट डेकोरेशन करवा कर मोहल्ले की सजावट का कार्य किया गया है।

वहीं दूसरी और मोहल्ले के पाटे पर पात्र बनने के कयास लगने शुरू हो जाते है, क्योंकि एक महीन पूर्व पात्र नगे पैर, तेज धूप में अपना अभ्यास करना शुरू करते है।

मेले के दिन शाम को पंचामृत तथा पंसारी का प्रसाद वितरण किया जाता है साथ ही मेले के दौरान मेलार्थीयों के लिए ठण्डे पानी तथा शर्बत आदि की व्यवस्था की जाती है।