पंचनामा : उषा जोशी 

Panchnama Usha Joshi1
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आभारी हैं सरजी, प्रफुल्ल कर दिया आपने 

पंचनामा : उषा जोशी, भला हो बीकानेर के आईजी व कलक्टर का जिन्होंने अपने महकमों ही नहीं बल्कि पूरे बीकानेर संभाग की प्रदेशभर में होने वाली थू-थू से बचा लिया, वरना बीकानेर के कप्तान व उनकी खाकी सेना ने तो प्रदेश में भर बीकानेर का नाम डूबोने के प्रयास में कोई कसर नहीं छोड़ी थी।

Panchnama Usha Joshi
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जिस बीकानेर में दिन दहाड़े फायरिंग हो रही हो, हिस्ट्रीशीटर सीधे-सीधे पुलिस को ही धमकी दे रहे हों, लोगों के घर जला रहे हों वहां पुलिस कप्तान की टीम बजाय अपराधियों को पकड़ने के दो कलमकारों को उनके ही घर के आगे रात में बातचीत करने के दौरान शांति भग करने के आरोप में गिरफ्तार कर लाती है और रातभर उनको हवालात में प्रताड़ित करती। इस घटना के विरोध में कलमकारों ने जब एकजुट होकर सरकारी कार्यक्रमों के बहिष्कार करने की घोषणा की तो आईजी तथा कलक्टर ने कलमकारों का पक्ष जानने के बाद तुरंत एक्सन लेते हैं।

जांच कमेटी बनाई। थानेदार को जांच तक हटाया। आईजी, कलक्टर के इस कदम से सभी ने राहत की सांस ली। वरना कप्तान साहब तो किसी भी परिणाम की चिंता किए बगैर सभी कलमकारों से दो दो हाथ करने को तैयार ही बैठे थे।

खादीधारियों की शरण में थ्री स्टार खाकीधारी 

पुलिस मुख्यालय से सब इन्सपेक्टरों के थानों में भी इन्सपेक्टरों के लगाने के आदेश के बाद से सत्ता पक्ष के खादीधारियों तथा पुलिस कप्तान के यहां थ्री स्टार खाकीधारियों की भीड़ बढ़ने लगी है। जांगळ देश बीकानेर की बात करें तो यहां सब इन्पेक्टरों वाले थाने कोतवाली, बीछवाल, देशनोक, गजनेर, कोलायत। नापासर, छतरगढ़, सेरुणा, कालू, जामसर, जसरासर, दंतौर, पांचू कुल 13 थाने हैं जबकि थानेदारी पाने वाले सीआई की संख्या इससे लगभग डबल है। मुख्यालय के इस साल भर के थाना रूपी तोहफे को हर सीआई पाना चाहता है। अब तक पुलिस लाइन सहित इधर उधर कोनों में ड्यूटी  दे रहे इन्सपेक्टर एनी हाउ थाना पाने की जुगाड़ में जुट गए हैं।

इनका मानना है कि एसएचओ तो एसएचओ ही होता है क्या बड़ा थाना क्या छोटा थाना। वहीं अनेक सब इन्सपेक्टर पुलिस मुख्यालय के ऐसे आदेश से दुखी हैं। गम गलत कर रहे हैं।

बोरिया बिस्तर समेट लो सीआई साहब! 

नयाशहर थाने के सीआई साहब का बोरिया बिस्तर सम्हालने का टाइम आ गया है। इन सीआई साहब से ना तो लाने वाले खादीधारी खुश है ना महकमे वाले आला खाकीधारी। प्लान के अनुसार तो बीच सितंबर में उनका जाना तय है। वैसे भी उनके इलाके में वारदात हो जाए तो क्षेत्र के लोग तथा महकमे के आला अधिकारी भी उनको सूचना देने की बजाय पास के थाने के थानेदार को सूचना देते हैं।

क्योंकि ये सीआई साहब बगैर वर्दी हवाई चप्पल, टी शर्ट व लोअर पहने ही वारदात स्थल का मुआयना करने पहुंच जाते हैं। इन सीआई साहब की हर समय ‘थोड़ी-थोड़ी’ लिये रहने की आदत से भी महकमे के लोग परेशान हैं। हालांकि सीआई साहब ईमानदार हैं। पुलिस के पंच व प्रपंच इनको नहीं आते हैं। ऐसे में ये अपना बोरिया बिस्तर बांधे ही रहते हैं। बस आदेश का ही इनको इंतजार रहता है।

ये डीपी-डीपी क्या है 

जिले के पुलिस महकमे में डीपी कोड वर्ड बहुत चर्चा में है। सुना है आला खाकीधारी किसी भी आला व सामान्य खाकीधारी के बारे में कोई भी बड़ा निर्णय लेने से पहले यह पता कर लेते हैं कि संबंधित खाकीधारी डीपी वाला है या डीपी वाला नहीं। उसी हिसाब से खाकीधारी के पक्ष या विपक्ष में निर्णय किया जाता है। शहर के थानों में भी डीपी के थाने व बगैर डीपी वाले थाने के नाम से पुकारे जाते हैं।

आला अधिकारी कहते हैं कि इस कोड वर्ड से प्रमुख कार्यों की छंटनी हो जाती है तथा काम को करने में आसानी होती है मगर कोई यह नहीं बता रहा कि डीपी कोड का मतलब क्या है। बस यही कहा जाता है पुलिस में अभी डीपी युग है। प्रयास है जल्द इस कोड को डिकोड कर लूंगी।

एसपी की पीसी और कलमकार 

शहर में इन दिनों पुलिस कप्तान की एक पीसी की चर्चा जोरों पर है। सुना है कुछ समय पूर्व पुलिस कप्तान ने कलमकारों को एक   मर्डर मिस्ट्री सुलझने पर बातचीत के लिये बुलाया। कलमकार पहुंचे। सवाल शुरू ही किए तभी कप्तान बोल पडे जो कुछ प्रेसनोट में दिया है वहीं हमें कहना है, और कोई सवाल का जवाब नहीं दिया जाएगा। कलमकारों ने कहा सर प्रेसनोट मेल ही कर देते बुलाया क्यों। सर फिर भी चुप ही रहे।

पॉलिसी तो लागू करते रहो सर जी 

एक पुलिस अधिकारी की एक जिले में अधिकतम चार साल रहने की पॉलिसी बनी हुई है मगर कई पुलिस अधिकारी  आज भी इस पॉलिसी के तहत बाहर जाने की बजाय तिकड़में भिड़ाकर उसी जिले में जमे हुए हैं। कई तो ऐसे हैं जो चार साल पूरा होने के बाद जाने को भी तैयार है मगर महकमा अभी उन्हें भेज भी नहीं रहा। इससे दूसरे खाकीधारियों को परेशानी हो रही है। समझ गए ना आप।

किसने कहने से हो रही पेड़ों की कटाई 

गजनेर थाने के सामने के स्कूल ग्राउंड पर लगे कीकर व बबूल के पेड़ों को किसकी परमिशन से काटा जा रहा है ये थाने वालों को भी पता नहीं है। थाने वालों ने तो खुद स्कूल व उसके ग्राउंड को अपना माल खाना बना रखा है। ऐसा कैसे चलेगा कप्तान साहब, लोग बुरा मान रहे हैं।