स्कूलों में दूध का हो रहा दुरुपयोग, बाजार में गरीब के बच्चों को नहीं मिल पा रहा दूध : सुभाष आचार्य

milk in school
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स्कूली बच्चों को दूध की बजाय फल व काजू-बादाम देने की दी सलाह

बीकानेर, (samacharseva.in)। स्कूलों में दूध का हो रहा दुरुपयोग, बाजार में गरीब के बच्चों को नहीं मिल पा रहा दूध : सुभाष आचार्य, राजस्थान शिक्षक संघ (प्रगतिशील) के प्रातीय वरिष्ठ उपाध्यक्ष, सुभाष आचार्य के अनुसार स्कूली बच्चों को दूध देने के सरकार के निर्णय से स्कूलों में भारी मात्रा में दूध का दुरपयोग हो रहा है। अचानक दूध के भाव बढ़ने से गरीब बच्चों को बाजार में दूध भी उपलब्ध नहीं हो पा रहा है।

शिक्षक नेता आचार्य ने इस संबंध में राज्य के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत एवं शिक्षा राज्य मंत्री गोविन्द सिंह डोटासरा को पत्र लिखकर सुझाव दिया है कि स्कूली बच्चों को दूध देने के स्थान पर फल अथवा काजू-बादाम दिये जा सकते हैं। शिक्षक नेता सुभाष आचार्य ने अपने पत्र में मुख्यमंत्री से मांग की है कि राज्य की स्कूलों में कक्षा 1 से 8 तक के छात्र-छात्राओं को जो दूध दिया जा रहा है उसे तत्काल बंद किया जावे।

पत्र में बताया गया है कि स्कूली विद्यार्थियों को दूध का निर्णय पिछली सरकार ने अंतिम समय में बिना सोचे समझे लिया गया था। उन्होंने कहा कि यह दूध राज्य के बच्चों के लिए बहुत बड़ा खतरा बन रहा है। इसे तत्काल बंद करना अति आवश्यक है। इससे सरकार गरीब बच्चों को कुपोषण से भी बचा सकती है। आचार्य ने अपने पत्र में बताया कि जब दूध विद्यालयों में प्रारम्‍भ किया, उस समय राज्य में दूध के भाव 20-22 रूपये प्रति लीटर थे।

वर्तमान में राज्य में दूध के भाव 38-40 रूपये प्रति लीटर चल रहा है। उन्होंने बताया कि राज्य के वे बच्चे गरीब घरों के जिनकी आयु 1-3 वर्ष है, लगातार दूध से दूर होते जा रहे है। गरीब मंहगे भाव का दूध नहीं खरीद सकते। जबकि सरकारी स्कूलों के बच्चे दूध पीते भी बहुत कम है। छात्राऐं बहुत कम संख्या में दूध पीती है। ऐसे में स्कूलों में तो दूध का अनावश्यक दुरूपयोग हो रहा है वहीं, दूध मुहें बच्चों को बाजार में दूध नहीं मिल पा रहा है। मिल रहा है तो महंगा जो कि उन बच्चें के परिजन खरीद नहीं पा रहे हैं।

अचानक एक ही दिन में आदेश के बाद हजारों क्विंटल दूध स्कूलों में जाने से गरीब बच्चे दूध से दूर हो गये है। दूध देने वाली गायों को फैक्ट्री में तत्काल बनाया नहीं जा सकता। ऐसे में क्या सही है कि राज्य के बाजार से आम उपभोक्ताओं के उपयोग का हजारों क्विंटल दूध जिसका सदुपयोग भी नहीं हो रहा है फिर भी बाजार से गायब हो गया।

आचार्य ने कहा कि 1 से 5 वर्ष तक के बच्चों के लिए दूध नितान्त आवश्यक है। ऐसी स्थिति में 6 से 14 वर्ष के बच्चों हेतु विद्यालयों में दूध बंद करना उचित रहेगा एवं नन्हें बालकों के हित में रहेगा। सरकार चाहे तो दूध के स्थान पर प्रतिदिन फल या काजू-बादाम देवे जो अमीर लोगो का खान-पान है ताकि गरीब बच्चे दूध से वंचित ना रहे।। आचार्य के अनुसार दूध कार्यक्रम से विद्यालय की शिक्षण व्यवस्थाओं पर भी बुरा प्रभाव पड़ रहा है।