किसानों की बत्ती तो जलवाओ मंत्रीजी

PANCHNAMA-USHA JOSHI DAINIK NAVJYOTI BIKANER
PANCHNAMA-USHA JOSHI DAINIK NAVJYOTI BIKANER

पंचनामा : उषा जोशी

किसानों की बत्ती तो जलवाओ मंत्रीजी, जब कमल वालों की सरकार थी, वोटों के लिये किसानों को थोक में कृषि कनेक्शन स्वीकृत किये लेकिन अब हाथ वालों की सरकार ने कनेक्शन जारी करने में हाथ झड़का दिये हैं।

बिजली महकमा कमल वालों की सरकार द्वारा जारी सैकड़ों बिजली कनेक्शनों को लटका दिया है। किसानों को भगा-भगा कर परेशान किया जा रहा है।

कभी पोल, कभी तार, कभी इंसुलेटर तो कभी से वायर देते हैं। किसान बार बार चक्कर लगा कर पिकअप या ट्रेक्टर में समान ले जाने को विवश है लेकिन बिजली विभाग साल बीत जाने पर भी कनेक्शन देने के मूड में नही आया है।

किसानों की गेहूं सरसों की फसलों पर तो बिजली महकमें ने पानी फेर ही दिया है। अब लगता है नरमा कपास की फसलों को भी तरसना होगा।

बिजली विभाग के मंत्री जी के खुद के जिले में किसानों को कनेक्शन नहीं मिलना, ये अच्छी बात नहीं।

मेघवाल बनाम अन्य का चक्कर

बड़े चुनाव में मेघवाल बनाम अन्य का फेक्टर चकल्लस बन गया है।

जानकार लोग कह रहे हैं कि जो मेघवाल बड़ी सरकार के मंत्री जी से किनारा करके चलते थे आजकल मेघवाल बहाव में वापस उनके साथ आ गए हैं,

उधर फुसफुसाहट यह भी है कि मेघवालों के अलावा सभी लोगों को मंत्री जी के खिलाफ लामबंद करने के कद्दावर नेताजी के प्रयास और नहीं तो मंत्री जी की भाजपा से टिकट कटवाने का सामान तो कर ही चुके हैं।

केवल मेघवालों की लामबंदी से चुनाव तो जीता जाना संभव नहीं लिहाजा आलाकमान के माथे पर भी बल पड़ रहे हैं और सर्वमान्य उम्मीदवार की तलाश में नजरें इधर उधर दौड़ने भी लगी हैं।

मंत्री के भाग्य का पिटारा अभी बन्द है, देखना यह यह है कि कालांतर में अपने दमखम से अपने पुत्र को सांसद बनाने का इतिहास बना देने वाले कद्दावर इस बार मेघवाल जी नैया को डुबो सकेंगे या…

आगे आगे आप पीछे पीछे ढाक के पात

युवा अफसर जी अति उत्साहित हैं। आगे आगे ही बढ़ते जा रहे हैं, पीछे मुड़ कर भी नहीं देख रहे हैं, इनके उत्साह के फोटो वीडियो वायरल हो रहे हैं।

नेताओं की तरह वाहवाही मिल रही है,  पर साहब जहां पशुओं के लिए हरा चारा डालना प्रतिबंधित किया था वहां फिर से चारा डालना शुरू हो गया है, दारू का 8 बजे बाद मिलना फिर बदस्तूर जारी है, जिप्सम का खनन भी दुगुने जोश से जारी है।

सरगोशी के स्वर कह रहे हैं कि सिर्फ आगे ही आगे देख कर चलते ये अफसर किन नक्शे कदम पर हैं, कुछ अंदाज लगता है।

कालांतर में भी एक मोहतरमा बड़ी अफसर ने कुछ दिन तो नाके लगाए थे लेकिन बाद में ढाक के तीन पात हो गए थे, इन हीरो साहब के तीन पात तो तुरंत ही हो गए,

जैसे ही आगे निकले पिछे से वही किस्सा वही कहानी। माजरा क्या है राम जाने।

एस पी नीचे कलेक्टर ऊपर, दिव्यांग कहाँ जाएं

टाइगर ग्राउंड फ्लोर पर जबकि जिले का मुखिया फर्स्ट फ्लोर पर, बात हजम होने लायक है ही नहीं।

जिले के लोग तो हालांकि यूज टू हो चुके हैं, उनको मुखिया का ऊपर होना अब अजीब नहीं लगता, दिव्यांगों को भी कथित तौर पर जिला रसद अधिकारी के दफ्तर से इंटर कॉम पर मुखिया से बतियाने की सुविधा का बोर्ड लगा है

लेकिन जब कभी बाहर से कोई दिव्यांग आ जाये और मुखिया से मिलना चाहे तो यह ऊपर नीचे का मंजर नागवार गुजरता है। हाल ही में पीआईबी की कार्यशाला में एक दिव्यांग अफसर को मुखिया का आॅफिस ऊपर होना बहुत नागवार गुजरा,

वो सीढियां चढ़ कर जब नहीं मिल पाए तो पीड़ा कुछ यूं बयान हुई कि जैसे ही सूबे के निर्वाचित मुखिया से मिलेंगे सबसे पहले यह शिकायत करेंगे कि आखिर दिव्यांग

जिले के मुखिया से मिले तो कैसे मिले? अफसर जी का कहना है कि टाईगर का ऑफिस ऊपर होना चाहिए और मुखिया का नीचे ताकि फरियादी परेशान ना हों।

यह अलग बात है कि ऊपर सीढियां चढ़ कर रोज जाना अफसरों के लिए भी व्यथा का कारक है।